पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१६०

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सदुखिया अखियन को सुन्दर रूप दिखाओ रे। मिति करिहे पिय मन-भायो १२ फाग चल तेहजार रंग सब जियहिजरा हो। को दस मेटे करि के दया उन जाइले आवै हो । 'हरीनंद' पिय लाइ इते मोहि मरत जिआये हो ।२० रहरीचंद तोहि परि नचाऊँ मीर बनूं ब्रज-बालन में।८, 'हरीचद हिय हौस मिटै क्यौ अब यह ऐडी चाल ।१३ काफी रे रसिया तेरे कारन ब्रज में भई बदनाम । परि आए फांके-मस्त होली होयरी। घर में भूजी भांग नहीं है तो भी न हिम्मत पस्त । ऐसी होरी कोक खेलस घेडी जेसी तू खेलत श्याम । होती होय रही करत न लाज बकत मनमानी गर लावत पर-याम । महंगी परी न पानी बरसा बजरी नाही सस्त । 'हरीचद' कष्ट काम और नहि एक एहै सब जाम ।१४ धन सब गया किल नहि आई तो भी मंगल-कस्त भीमपलासी होली होय रही। फिर गाई रस की सोइ गारी। बरबस कायर आलसी ये पेट-परस्त । सूझत कुछ न बसत माहि ये भे खराब ओ सस्त । मदन वसीकर सिद्ध मन्त्र श्री सवन परी पनि आजि हहारी। आनु भोरहि भोर खरी निसरी । फेर ओट डफ की करि चितई गोरी काहू गाढ़े छैल के पाशे परी चितवनि प्रेम भरी सोइ प्यारी। चोली-अंद खुले केस तेरे शूटे 'हरीचंद हिय लागी चटपट रैन सुरत-संग्राम जरी। और लाल अधर रंग फीको व्याकुला भई लाज की मारी ।१५ चोटी सिथिल तेरी फूल झरी। सोरठ का मेल 'हरीचंद' सगरी निसि जागी ब्रज के नगर तेने कान्हा. ऊधम मचायो रे । अंग सिथिल अलसान भरी ।१० होरी के मिस कुल-नारिन को गेह छुड़ायो रे । ब्रज की होरी करत फिरत निज मनमानी गढ़ लाब ठहायो रे । अरे गोरी जोबन मद इठलाती, 'हरीचंद' पिय बाट कलत हठि कंठ लगायो रे ।१६ चले गत मस्त सी चाश। मेरे निकट तू आउ होस तेरी सबै पुजाऊ रे । अरे गोरी गिने न काह यो मदमाती, निज यस के रस ले अधरन को गर लपवऊँ रे । फिरत उतानो बाल ।। काम-उमंग निकासि भुजन कांस हियो सिराकरे । गरे गोरी मत इतनो गरवावे. 'हरीचंद' अपनो करि छाँडै तब घर जाऊँरे ।१७ यह अब टेट्रो गांव काफी अरे गोरी अहि रेल वह आये. प्यारे होरी है के जोरो मोहन जाको है नाँव ।। जो तुम निधरक मुकेई परत हो मानत नाहिं निहारी । अरे गोरी गर लावे मनमानों करि, मद तेरो देव कहा कहेंगी देखनवारी जो मेरी दुलरी तोरी । से गोरी 'हरिचंद' संग लीने. 'हरीचद मुख चूमि भजन की बदी कौन नै होरी १८ बिहाग या काफी डफ बाले मेरो निकट प्रायो। अरे कोड लाइ मिलायो रे, प्रान-पिया मेरे साथ । सुन री सखी मेरो नाम लेह के मधुरे सुर गारी गायो । केसे मरो जोबन मेरो उमग्यो मरत जिलाओ रे । मेरे घर के बार खरोखे अविरन सो मारग छायो । 'हरीचंद'अब घर न रोगी श्याम विनु होरी न भावे हो। सिंदुरा काफी मेरी जाँखिन भरि न गुलाल लाल मुख निरखन दे। होरीह में काहें करत यह मुख-दरसन जंजाल । पील काफी लंगर छैल झागवार ११ हरीचंद दुख-अगिन दहकि रही पाइ बुझात्रोरे ।१९ प्रीति रोति नहिं जानत प्यारी मदमातो रस-ख्याल । अपने रंग रंगी अंखियन में भारतेन्दु समग्र १२०