पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१६४

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KONE अपनरभ्र सो पप चाँदनी मिणिकं लगत सुहायो । | लाल कियो गोपाल गाल को दे केसर पिचकारी। कहूँ कटी कहूँ सघन कटी कई कदम तारका छाई | चोआ नंदन वुश्का बदन केसर मृगमद रोरी । कहुँ वितान कहुँ कुष-मंडप कई छई छांह मन-माई । अंबर गुलाण कमकमा कमकुम भर धनसार झकोरी ।। कई कदरा सिलार्मान बेनी विविध रतन सोपाना । मोजि कपोषण कोऊ भाजत है धाइ फेट कोउ खोल 1 झरना झरत बिमल जल के जहे करत हंस का गाना | कोउ मुख चूमि रहत ठोड़ी गांह इक गारी है थोले । फले सकल फल अमूल सरिस कहै कई मौर विस्तारा। इतनेहिं उत्त सो सखा-जूथ सब जि जि खेलन भाए । कई फान पै मत्त मंवरगन उड़त करत झकारा । बाँधे पाग सुरंग पेंट मैं रंग रंग असन बनाए । कई घाट छतरी कहूँ राजै सीलप्त सुभग तिबारी । फेटन पै तुर्रा की मलर्कान मोर-पैखाधा सोहै । कहुँ बाराका विधी अति कोमल स्वच्छ स्वेत सुखकारी । बेन सींग दल झांझ टोल उफ बाजन मुनि मन मोहै । कहुं कहभूकं तरोधर जला में मनु निज प्रिय को मेंटे। गावत गारी आंबर उड़ावत धूम मचावत होलें । मुकुर माह सोभा सि अपनी कै जिय को इस मेटे । परि नेत तेहि जान देत नहि हो हो होरी वोलें । कई कई कड तलाव बावरी भरे फाटक से नीरा । तिनों काह प्रजराज लाडिले सखियन धोखा दीन्हो । कहूँ भीगा लहरत अपने रंग देखि दरत भूग-पीरा । मैं प्यारी के सँग भावत हो इन श्रीहि गहि सीन्हो । त्रिविध पौन जब से पराग मधु चहूं दिसि भनि झकोरे । भाइ धरी इनको इक इक करि रंग में सबन भिजायो। बिहपल हवै मन-अध करत तम गंध लिए जब नौरे । गारी दै मन-भायो कार के बहु विधि नाच नचाओ। कृणे उर्लान कमाण अस कोई कई सैशाल सुहाई। वे अषला सबला भई भारो इनको सब मद गारौ । कारडव जा-रुक्कट सारस विहरत तह मन लाई । आज हराइ इन्हें होरी में रंग के पिचुका मारौ । मोर चकोर सारिका मुकगन निर्माप्त कल कराह मचाई। सुनत ग्यास मदमाते गहिरो खेल मचायो डार द्वार प्रति बोट कोकिलन शाम-बधाई-गाई । धुंधर करि गुलाल की चहुँ दिसि रंग-नीर वरसायो । सरसो तसो खेतन सोहें कुसुम फूल बह फूले। एक बोरि के मगमद द्वारत हक लावत धनसारा । नव पल्लास कचनार देव विरहीवन के हिय हले। चोभा तेल फुलेल एक से अतर भिजावत धारा सखिन जानि होरी को आगम पथ गुलाब ष्टिरकायो हरित आरन पंडुर श्यामल रंग रंग गुलाल उड़ाई। कियो देर गुलाल को रंगन होड भरायो | विच विच विविध सुगंध नित बुक्का बगरत मन-भाई। तोरि गुप्ताव पारिन मारग सोहत है अंत छायो । | कबहुँ बादले रंग रंग के कर्तार मिहीन उड़ावै । अगर धूप औरन दै अगर सुवास बसायो । तरनि किरिन मिलि अति अधिः पानदान भारी पिकवानी मुरछल पर अझनी फूल चगेर माल बहु विजन ले मृगमद चन सानी । पावत चमकि सबन मन भावे । परिमल अंबर मृगमन पीसे सने कपूर सुहाए लिये सकल सुख-साज सहेली सरस कतारन लादी। मॉल मेणि केवरा धूर में मोरिन पूरि उड़ाए । मानई मदन-सदन विसुकरमा चित्र पूतरी कादी। कोल गावत कोउ नाचत आय कोक भाव बलाये । | केसर सीटि चरचि रोरी सो ले रंग सों नहवायें । चोला चाट चोटि अगन तापर बिदुली लायें। कोउ मृदंग बीना सुर-मंडल तान उपग प्रजापै । गारी देत निलब उफ बाजत ऊँचे राग जमायो । खेलत गेंद कई कोउ नट सी कला अनेकन साचे श्रीख-मिचौनी होत तहाँ इक परसि और को मावे | गाँव रहयो सुर वर दाबन हो शब्द सनायो। हा शब्द सुनायो । छड़ी शिए इक खड़ी अदय सो सबइ तमाम जनाये। रहत एक मॅपर निरवारनकारी एक निरखि बशि लाये। हा करि करि छर्डि भावत तह दोउ होरी खेतन परम प्रेम-रंग भीने । नारि नरन को नारि बनावत न नारिन नर साजे । कारवाई। भाले ! एकन के गहि रहत एक एकन को इक मुख माई । करत निपट पट-राहत एक का अलसात छक्के मद लोचन बाँह धोह में दोने । फूल-छड़ी की मारि परत तब लाल उठत अकुलाई । गाँठ जोरि घर अदन चीति के चूमि चूमि मुन्ना अपनो आपुनो चूध आरग करि खेलाल सध मिति गोरी । पुनि हो हो कार रेलि पेलि तिय-दलहि भजावत बाई । जान न देह प्रान-प्यारे को यह कहयो लशित किसोरी अवनि अकास एक रंग देखियत तरुन अरुनई छाई । रोपि मध्य डाँडो जे कहिकै विजय-निसान बाई लता पत्र प्रति रंगे रंग सों हक ग परत सखाई। कियो तेल आरंभ सखी प्यारी की आज्ञा पाई पटे अटारी अटा झरोखा मोखा छाजन छाते । धरन लगों मनमोहन पिय को थेरि घेरि प्रज-नारी । मार्ग सहित सुरंग गुलाल सो लाल सबै दरसाते । भारतेन्दु समग्र १२४