पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१६८

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रूप-भीख मांगन के कारन छाँनि फिरत बन-बनवाँ । रूप-दिवानी कल न परत कहुँ बाहर कबहुँ अंगनवाँ । 'हरीचंद' पिय-प्रेम-उपासी छोड़ि धाम धन जनवाँ ।५४ काफी तुम बने सौदाई, जगत में हँसी कराई । जाव प्यारे तुम हमसे न बोलो जिय न जलाओ सदाई । सूनी सेज बस में सो रहूंगी तुम मत आओ यहाँई । तुम बने सौदाई, जगत में हंसी कराई । सममावत मानत नहिं नेकहु करि अपने मन-माई । रहो खुशी से वहीं जाय के जहं मुख अबिर मलाई । तुम बने सौदाई, जगत में हँसी कराई । प्यारे कियो और को प्यारी इत उत प्रीति लगाई । अपने मन के मले भए हौ झूठी बात बनाई। तुम बने सौदाई, जगत में हँसी कराई। हमहिं लजावत मिलत और से जियरा जरावत आई । 'माधवी' फाग प्रान-सँग खेलि रहौंगी में विष खाई। तुम बने सौदाई, जगत में हँसी कराई ।५५ मध ठाढ़े सुंदर स्याम साथ ले गोरी । बाढी छबि देखत रंग रंगीली जोरी । गुन गाइ होत 'हरिचंद' दास बलिहारी । बूंदाबन खेलत फाग बढ़ी छबि भारी ।५६ होली की ग़ज़ल गले मुझको लगा लो ए मेरे दिलदार होली में । बुझे दिल की लगी मेरी भी तो ये यार होली में । नहीं यह है गुलाले सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे । य आशिक की है उमड़ी आहे आतिशबार होली में जबाँ के सदके गाली ही भला आशिक को तुम दे दो। निकल जाए य अरमाँ जी के ऐ दिलदार होली में । गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो । मनाने दो मुझे भी जाने-मन त्यौहार होली में । अबीरी रंग अबरू पर नहीं उसके नुमायाँ है । अबीरी म्यान में है मगरबी तलवार होली में । है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुमे कुच हैं। बने हो खुद ही होली तुम तो ऐ दिलदार होली में । 'रसा' गर जामे मै गैरों को देते हो तो मुझको भी । नशीली आँख दिखला कर करो सरशार होली में ।५७ होली की लावनी बिहाग बिनु पिय आजु अकेली सजनी होरी खेलों । बिरह उसाँस उड़ाइ गुलालहिं दृग-पिचकारी मेलौं । गावौं बिरह धमार लाज तजि हो हो बोलि नवेली । 'हरीचंद' चित माहिं लगाऊं होरी सुनो सहेली 1५८ धमार इत मोहन प्यारे उत श्री राधा प्यारी । बूंदाबन खेलत फाग बढ़ी छबि भारी ।ध्रु० सब ग्वाल बाल मिलि डफ कर लिए बजावें । इत सखियाँ हरि को मीठी गारी गावें । पचरंग अबीर गुलाल कपूर उड़ावें । पिचकारिन सो रंग की बरसा बरसावें । लाख हँसत परस्पर राधा-गिरिवरधारी । बूंदाबन खेलत फाग बड़ी छबि भारी । इक ग्वालिन बनि बलदेव श्याल दिग आई। कर पकरन मिस पकर्यो हरि करि चतुराई । यह लखत सखी सब घेरि घेरि के धाई। गहि लिए श्याम रहिं बहु बिधि नाच नचाई। फगुवा दै छूटे कोऊ बिधि बनवारी । बृंदावन खेलत फग बढ़ी छवि भारी । बंसी लै भागति हरि की कोऊ नारी । तब मोहन हा हा खात करत मनुहारी । सो लखि के कोऊ हसत खरी दै तारी । भागत कोउ गाल गुलाल लाइ दै गारी । सो छबि लखि कै कोउ तन मन डारत वारी । बूंदाबन खेलत फग बढ़ी छबि भारी । चहुँ ओर कहत सब हो हो हो हो होरी । पिचकारी छूटत उड़त रंग की झोरी । आज है होरी लाल बिहारी । आज तोहिं हम देहैं नई गारी । तोहि गारी कहा कहि दीजै । अगिनित गुन क्यौं गान लीजै । तेरो चंद बंस को धारी। जाने भोगी गुरु की नारी । तासों बुध भयो संकर जाती। जासों तेरे कुल की पांती तेरी कुल-जननी इला रानी । तामै दोऊ सुत मुद-दानी । तेरी बेस्या सी कुल-माता । जाको नाम उरबसी ख्याता । जदुराज बड़े हैं ज्ञानी । जिन दीनी अपनी जवानी । । TOY भारतेन्दु समग्र १२८