पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१६९

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तेरो कंसराय सो मामा । तेरी माय करी बे-कामा । तेरी रोहिनी तजि घर-बारा । अब ब्रज मैं करत बिहारा । तेरो नंद बहुत जस पायो । जिन बिरधापन सुत जायो । तुम सकल गुनन में पूरे । नट बिट सब ही बिधि हरे । इमि कहत हँसत ब्रज-नारी । 'हरिचंद' मुदित गिरिधारी ।५९ बिहाग रे निकर मोहिं मिल जा तू काहे दुख देत । दीन हीन सब भाँत तिहारी क्यों सुधि धाइ न नेत । सही न जात होत जिय ब्याकुल बिसरत सब ही चेत । 'हरीचंद' सखि सरन राखि कै भत्यो निबाहयो हेत।६५ काफी अब तेरे भए पिया बर्बाद के। दगे नाम सों यार तिहारे छाप तेरी सिर ऊपर ले । कहाँ जाहिं अब छोड़ि पियारे रहे तोहि निज सरबस दे। 'हरीचंद' ब्रज की कुंजन में डोलेंगे कहि राधे जै ।६६ सिंदूरा राग देस बिहारी जी मति लागौ म्हारे अंक । या गोकुल रा लोक चवाई तुम तो परम निसंक । म्हारी गलिअन मति आओ प्यारा रूप भीख रा रक । 'हरीचंद' धारे कारन म्हाने लाग्यौ छै जगरो कलंक ।६० आज कहि कौन रूठायो मेरो मोहन यार । बिनु बोले वह चलो गयो क्यों बिना किए कप प्यार । कहा करौं हौं कछु न बनत है कर मींड़त सौ बार । 'हरीचंद' पछितात रहि गई खोइ गले को हार ।६७ बिहारी जी काँई छे तम्हारो यहाँ काज । तुम सौतिन रे मद रा मात्या रंग रंगीला साज । रैन बसे जहाँ वहीं सिधारो म्हाने तो लागे छे घणी लाज । 'हरीचंद' थारे चरनन लागू छिमा करौ महाराज ।६१ राग कलिंगड़ा बिहारी जी घूमै छो थारा नैणा । कौन खिलार संग निसि जाग्या कहा करो छो सैणा । कौन रो यह लाया छौ रे प्यारे रंगन रोयौ उपरैणा । 'हरीचंद' 3 जनम रा कपटी कौन सुनै थारे चैणा ।६२ राग धनाश्री लाल मेरो अँचरा खोलै री। गुरजन की नहिं मानै लाज मेरो अचरा खोलै री। पनियाँ लेन हौं निकसी मोसों हँसि हँसि बोले री । मीठी मीठी बात सौं प्यारो अमृत घोले री । 'हरीचंद' पिय साँवरो संग लागोई डोलै री ३३ असवारी तुम मम प्रानन ते प्यारे हो तुम मेरे खिन के तारे हो । प्राननाथ हो प्यारे लाल हो आयो फागुन मास । अब तुम बिनु कैसे रहोंगी तासों जीव उदास । प्रान-प्यारे यह होरी त्योहार । हिलि-मिलि रमट खेलिये हो यह बिनती सौ बार । प्रान-प्यारे अब तो छोड़ी लाज । निधरक बिहरी मो सँग प्यारे अब याको कहा काज । प्रान-प्यारे जो रहिही सकुचाय । तौ कैसे के जीवन बचिहै यह मोहिं देहु बताय । प्रान-प्यारे जग में जीवन थोर । तो क्यों भुज भरिकै नहिं बिहरी प्यारे नंदकिशोर । प्रान प्यारे तुम बिनु जिय अकुलाय । ताप सिर पै फागुन आयो अब तो रहयो न जाय । प्रान-प्यारे तुम बिन तलफै प्रान । मिलि जै हौं कहत पुकारे एहो मीत सुजान । प्रान-प्यारे यह अति सीतल छाँह । जमुना-कूल कदंब तरे किन बिहरौ दे गल-बाँह । प्रान-प्यारे मन क हदै गयो और । देखि देखि या मधु रितु मैं इन फूलन को बे-तौर । प्रान-प्यारे लेहु अरज यह मान । छोड़हु मोहि न अकेली प्यारे मति तरसाओ प्रान । प्रान-प्यारे देखि अकेली सेज । मुरछि मुरछि परिहौं पाटी पै कर सों पकरि करेज । राग सहाना तेंडे मुखड़े पर घोल घुमाइयाँ । साँवलिये साजन छल-बलिए तुझ पर बल बल जाइयाँ । हुई दिवाणी मोहन दा जो इशक जाल गल पाइयाँ । 'हरीचंद' हँस हँस दिल लीता अब यह बे-परवाइयाँ ६४ मधु मुकुल १२९