पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१७३

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AA बिरह, ठुमरी अकुलात गुजरिया, दुख ते भरी । निको सुधि तन को नहिं जब ते लागी हरि की तिरछी नजरिया । तलफत रहत बिरह-दुख भारी देत कोउ नहिं पिय की खबरिया । 'हरीचंद' पिय बिन अति व्याकुल रोवत सूनी देखि सेजरिया ।८ बिहाग कोटि मन विज्ज़ इक साथ ही गिरि परी । भयो अति घोर भुव सोर भारी । सिंधु-जल उच्छत्यो गिर पर्वत-शिखर वृक्ष जड़ सों सबै दिये उजारी। देव-दानव-मनुज गिरे भय भागि वस्त्र टि गये कान सुधि तनक नाहीं । आजु असमय प्रलय देखि शिव चौकि के शुल धरि भ्रमत इत उत लखाही । सृष्टि को क्रम संग जानि विधि बावरी मूंड पे हाथ धरि बहुत रोयो। दिसा दहिबो लगी भयो उपका-पात दित मूति तेज अगिन खोयो । त्रस्त मधुकर पिवत नाहि मधु वृक्ष को गऊ निज बत्स-गन नाहि चाट । हवि अग्नि नहिं हरत डरत तह पौन नहि गौन करि सकत नभ धूरि पाटें । कित माया नटी भूनि निज नट-कला जगत-गात जीव जड़ रोकि लीनी । रम शृंगार निज करत ही रहि गई मनों सब चातुरी हारि दीनी । जगत जाको खेल बनत बिगरत निक भौंह के इत सों उत हलन माहीं । सोई त्रैकोक्यात आजु कोप्यो जबै तबै अब सबै कह सरन नाही । मारि हरिनाच्छ उर फार कर नखन सों भार हर भूमि अति शोक टार्यो । गोद प्रहलाद अहलाद-पूरब लियो चाटि मुख चूमि जल नयन हार्यो । राज्य दै अभय पद आप पद्मा सहित गये बैकुछ जय जगत छायो । प्रम परधान परिनाम मन उर। भक्त-वत्सल नाम साँच पायो । आजु रस कुंज-महल में बतियन रैन सिरानी जात । जाल रध्र तें भरित चाँदनी चलत मंद कछ् सीतल बात । सनसनात निसि झिलमिल दीपक पात खरक बिच-बीच सुनात । रगमगे दोऊ भुज दिये सिरान्हे आलस-बस मुसकात जंभात । मधुर बिहाग सुनात दूर सो, लपटि रहे विकत सब गात । 'हरीचंद' दोऊ रूप-लालची सिथिल तऊ जागे न अघात १९ ग्रीष्म ऋतु, फूल के शृंगार को पद आजु सखी फूले हरि फूल कुंज माही । प्यारी को सँग लिये दीन्हें गल-बाँहीं। फूलन के अंगन सब अभरन अति सोहैं । देखि देखि ब्रज-जन के मन को अति मोहैं । बिछिया पग राई बेलि चित की गति हरती । पंकज को पायजेब पायजेब करती । मदनबान फूलन की कटि किंकिनी राजै। लियन की चोली मधि यौवन अति भ्राजै । चपक की कली बनी चंपाकली भारी । फूलन के हार कंठ सोहत रुचिकारी । झांबया कर फूलन के बाजूबंद दोऊ । फूलन की पहुंची कर राजत अति सोऊ । फूलन की चूरी इमि कोऊ कर साजै । चंदन के हार मनहुँ लपटि लता राजै । पल्लव बसी अँगुरिन में मुंदरी छबि देहीं देखत ही मोहन मन हाधन सों लेहीं। करना के करनफूल करन बीच धारे । झुमका दोऊ झूमत लाख मानों मतवारे । सदा संकटहरन अकर कारन-करन कृपा-कर नाम जिय जौन धारै 1 सत्रु-संताप-जय-जातना-तापहर अचल बर घाम निज सो बिहारै । सदा प्रभु सर्वदा गर्वहर अभय-कर जनन-उर सौख्य-कर दुःखहारी । पीर 'हरिचंद' की हरहु करुनायतन त्रसित सैल काल तव सरनधारी ७ राग सग्रह १३३