पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१७८

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ग्रीष्म ऋतु . किन्नर अरू गंधर्व अपसरा तुम्हारो ही जस गावै । फूल्यो अति आज ।४६ बाजन बिबिध बजाइ तुम्हे सब करि मनुहारि जगावें । जग के मंगल काज होत नहिं बिनु तुव उठे कृपाल । दान-एकादशी और बावन द्वादशी तुव जागे सबही जग जागत तासों उठहु दयाल । दान लेन द्वै ही जन जान्यो । निद्रा तजहु रमापति केशव चहुँ दिसि मंगल माचै । पंकज-नयन बिलोकि बिमल जस 'हरीचंदह' बाँचै ।४१ तीन पैर कहि छोटे पग सों उन छल करि कै देह बढ़ाई । कै तुम नन्दराय के ढोटा के बावन बलि छल ठान्यो । तुम गोरस के मिस कछु और रस लीनो छलिकै बृजराई । वे छोटे कपटी तुम खोटे एकहि से विधि रचे सँवारी । झीनो पिछौरा सोहै आयु आति झीनो पिछौरा सोहै । 'हरीचंद' वे तो बावन रहे तुम छप्पन निकसे गिरधारी।४७ चंदन लेप नंदनंदन-तन देखत ही मन मोहै । पारिजात मंदार रही लसि फूल-छरी कर लीन्हे । दान एकादशी सांझ समय वन तें बनि आवत गोधन आगे कीन्हें । देखे आजु अनोखे दानी । गोरज छुरित अलक सब सुंदर ब्रज-बालन दरसायो । जाचक-पन में इती ढिठाई लाल कौन यह बानी । 'हरीचंद' मुख-चंद देखिकै बासर-ताप नसायो ।४२ रार करत कै गोरस माँगत सो कछु बात न जानी । दीनता, यथारूचि 'हरीचंद' कुल-दीपक ढोटा कौन रीति यह ठानी ।४८ सम नाथ ओर को करिहैं। नित्य, टोड़ी हमसे हीन दीन जनहू पै कौन कृपा बिसतरिहै । देखी जू नागर नट, ठाढो जमुना के तट, को निज बिरद सम्हारन कारन दौरि दीन दुखहरिहै । पर मग कोउ चलन न पाये। जानि क्षुधित 'हरिचंद' असन को भेजि क्षुधा परिहरि है।४३ काहू को हरत चीर, काहू को गिरावै नीर, अशीष, कान्हारा काहू की ईंडरी दुरावै । श्याम बरन तन सीस टिपारो तिहारो घर सुबस बसो महरानी । सोभा कहि नहिं आवै । कीरति जू तुम्हरे घर प्रगटी वृज-जननी ठकुरानी । 'हरीचंद' हँसि हँसि नयनन आवत जाके भये सकल सुख बरसे जिमि सावन को पानी । तन-मन सबहि चोरावै ।४९ अति आनंद भयो गोधन में हम यह आगम जानी । मकर संक्रांति का और संक्रांति के दिन कोउ गावे कोउ देत बधाई वेद पढ़त मुनि ज्ञानी । गायबे को पद, 'हरीचंद प्रगटी श्री राधा मोहन के मन-मानी ।४४ राग यथा-रुचि दीनता, यथा-सचि दुतिय नृप भानु छठी तजु मान । तेई धनि धनि या कलयुग में जिन श्री जाने बिट्ठलनाथ । करन चतुर्थ सदा सौतिन हिय कटि पंचमी सुजान । जीवन जगत सुफल तिनहीं को जौन बिकाने इनके हाथ । तो सम माती नाय और कोउ नव मन दम तु बाल । धरम-मूल इक इनकी पद-रव इनके दासहि सदा सनाथ । तुव बिन आठ बेदना पावत व्याकुल पिय नंदलाल । भक्ति-सार इनको आराधन इनहीं को गावत श्रुति गाथ दसम केतु पीड़त पिय को अति निज दुख अगिनि बढ्यय । इनके बिनु जे जीवत जग में ते सब श्वास लेत जिमि भाथ । करु अभिषेक अमृत एकादस कुच पिय के हिय लाय । 'हरीचंद' चलु सरन इनहिं के रिकै चरनन पर निक द्वादश बिनु जल तिमि हरि तुव बिन लग तनि प्रथम न नेक माथ ।४५ 'हरीचंद' हवै तृतिय पिया सँग करु संक्रमन बिवेक ।५० सेहरा यथा-छचि नित्य, यथा-रुचि दुलह श्री बृजराज फूलि बैठे कुंजन आज | फूलन को सेहरो फूलन के अभरन के सब साज । दोउ मिलि पौढ़े सुख सों सेज । फूलि सखि गीत गावे देव फूल बरसावै फूल्यो सकल समाज करत भावती रस की बतियाँ बाढ़े मदन मजेज | फूली श्रीराधाप्यारी देखि फूली बृजनारी 'हरीचंद' बतियन ही कछु अनरस हवै गयो प्रिया रही करि मान भारतेन्दु समग्र १३८