पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१८८

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AR OFW फुल्यो धज को सकल समाज । । खसित निसानायक पश्चिम दिसि हरीचंद' मिति नाचत गायत आधी सो बढि रेन चली ढलि । मिले भक्त-जन तजि जग-लाज ।१६९ असनसिना-धुनि सुनियत कहुँ कहे सीरी पवन चली सुगंध लि । आजु अज घर पर बजत बधाई। चलि किन कुंजभवन तू भामिनि द्विज-अपुले नंदनंदन प्रगटे लक्ष्मण भट घर आई। अपनी सौतिन को छलबल अलि । फेर वह लीला सोई रस निज जन हेत दिखाई। 'हरीचंद' से अधम जानि निज तारे भुज गहि पाई ।१४० प्रथम मान पुनि सहजहि मिलियो सुनि मान को पद, यथा-गचि बेरिनि रहि जैहे जति जति । कसि कंचुकि नयनन काजर नेक निहास नागरी हो बशि । नूपुर टाँड़ि अतर अंगन मति । इती रुखाई प्रान-पिया पे मान न | विन विशव उठि मिलु प्यारे सो कस सिख मान री उठि पणि । घिरह-दवागि मिले श्रम-जल दणि । फूलत लय विरचत उत्त प्यारो भाग भरी अनुराग भरी सखि पीतम विरह-हुतासन जात चलो गलि । सरस सोहाग फलन फलि । तू इत बैठी भौह तनेतन नहि 'हरीचंद' सचि-साथ गमन छवि सोहात मोहि यह रुखो कति । नयनन ते नहिं जाइ कबहुँ टशि ।१४१ वर्षा-विनोद [हरिश्चन्द्र-चंद्रिका और मोहन चन्द्रिका सं.२ सं. २-६ में सन् १८८० में प्रकाशित | वर्षा-विनोद चिर पिर कजली रिमझिम चम चम चपला चमके चन भमके प्यारी मूलन पधारो मुकि आए बदरा । ओदो सुरुख चुनरि तापे श्याम चदरा । अकि झुकि बिरछन परसे। सूनी सेज परी में व्याण देखो बिजुरी चमक्के बरसे अदरा । 'हरीचंद तुम बिन पिय अति कदरा ११ पिय की सूरत नहि दरसे। बिनु हरिचंद' घिवरवा सावन में अगगग आगगग आगग घन गरजे हाय मोरा जिवरा तरसे ।३ सुनि सुनि मोरा जिय लरजे। मन-मोहना हो फूले झमकि हिंडोर । जुगनूं चमके बाद रमके एक तो सावन ए दूजे धन उनए बिजूरी दमके फमके तरजे। ऐसी एमय जो परदेशका तीजे फूल नए एए फूले चहुँ ओर । चलु खाज तजुरी देखु चमके विजुरी पिय नाह मानन मोरो अरते। ऐसन नहिं कोई पटुवा गहि के बग-पाँति जुरी मोरा करि रहे सोर । सोभा कहाँ कसरी मैं तो देखत हारी विष हरिचदहि' जो बरजे ।२ भई वशिहारी 'हरिचद' तन तोर । बाप भारतेन्दुसमन १८