पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१९०

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YOR. सुनत नहीं मेरी बानी । श्री राधाय समेतो शिखिशेखर शोभाशाली म ही अनोखे विदेस-जपेया 'हरीचद' सैनानी ।१२ | गोपीजन-विधुवदन-धनज-अन मोहन मताली । न जाय मो सो ऐसो झोका सहीलो न जाय । गायति निज दासे 'हरिचंद गल-जालक माया-जालो।१५ मुलाओ धीरे डार लागे भारी बलिहारी हो | हरि हरि धोर समीरे विहरति राधा कालिंदी-तीरे । बिहारी मो से ऐसो भोका सहीलो न जाय । जति का कलरव केकापति-कारंडष-कोरे । देखो कर धर मेरी छाती धर घर करे वर्षति चपला चार चमत्कृत सघन सुघन नीरे । पग दोउ रहे चहराय हाय । गायति निज पद-पद्यरेणु-रत 'हरीचंद' निपट में लो डर गई प्यारे कविवर 'हरिश्चंद्र' धीरे ॥१८ मोहि लेह फट गर लगाय । न जाय० ॥१३ मलार सोरठ मेरे गल सो लग जाओ प्यार घिरि आईबदरिया घोर । मेरे नैनों का तारा है मेरा गोविंद प्यारा है बड़ी बड़ी बूंदन वरसन लागों बोरात दादुर मोर । यो सूरत उसकी भोली सी वो सिर पगिया मठोली सी, विपुरी चमक देखि जिय डर पैपवन चलत झकझोर । वो बोली में उठोली सी बोलि इग वान मारा है। व धुंधरवालियाँ ऋतके व भोकेवातियां पलके, 'डरोचद' पिय कंठ लगाओ राखो अपनी कोर १९ मेरे दिक्ष बीच हलके छुटा घर-बार सारा है। आव घन अगगग गरजे हो सुनि सुनि के जिय लरजे । दरस सुख रैन दिन लूटे न छिन भर तार यह टूटे बड़ी बड़ी बूंद घिरि घिरि घरसै बिजुरी तरजे । लगी अब तो नहींटे प्रान 'हरीचंद' वारा। समय पिय कंठन लागत मानत नाहि मेरी अरजे। मेरे नैनो का नारा है, मेरा गोबिन्द प्यारा है ।१४ 'हरीचंद' पिय जात विदेसवाँ कोई नहीं बरजे ।२० मेरी डरि जी सो कडियो बात हो बात । साचन आयो मन-मापन पिय विनु रहयो न जाय । तुम बिन बज सूनो मेरे प्यारे अब धन की गरज सुन लरजी मिशन को जिय ललचाय । देख्यो नहि जात हो जात। | खबर न आई पिय प्यार की करों मैं कौन उपाय । सूखी लता पेड़ मुरझाने गठ 'हरोचद' पिया को जो पाऊँ लेहुँ मै गरवार लाय ।२१ भई दुघरे गात होगात । ऊयो जी मिशायो पियारे को हहिं सुनाओ न जोग । जमुना जरित वृन्दावन उजरयो पीरे भए सब पात हो पात । हम नारी जोग का हो हमरे लेखे सो रोग । अरसा अई बन हरे भए वसुदा-नंद विकदा रोअत है फिरे पंची लोग। कहि कहि के हालात होतात । 'हरोचद' लाओ मेरे श्यामहि मिटै बिरह-दुख-सोग।२२ सो दुख देख्यो जान न नैनन | ऐसे सावन में साँपलिया मोरा जोबन लूटे जाय । देखि दुखी तुव मात हो मात । नेन-बान घायल करि दीनों जुलुफन बीच फंसाय । प्रव-नारिन की दसा कहा कहाँ | मुख मोरा चूमि करै मन-मानी गरवा लेत लगाय । रोअत बातल रात हो रात । 'हरीचंद मिशि जाओ पियारे करो खड़ा सा मुसशाय ॥२६ सरबस रस लेके हरिचंद' बेदरदी न हम सों घात हो पात ।१५ मलार की ठुमरी एतो हरि जी सों कहियो रोग हो रोय कुंजन में मोहिं पकरीरी। तुम बिन रहत सवा प्रव-सुंदरि ऐ माई री होठ मोहन पिया गरे लागे ओसुधन मा पट धोष हो धोय। जो जो जिय आई सोइ करी री। निसि-दिन विरह सतावत व्याकुल में निकसी दधि बेचन कारन रही है सप सुख खोच हो सोय । जोचकि आइ गही गिरधारन बरजि रही री। 'हरीचंद अब सहि न सकत दुख मेरो घरज्यो न मान्यो होनी होय सो होय हो होय ।१६ संस्कृत की कजली 'हरीचंद' अति लंगर कन्हाई, हरि हरि हरिरिह विहरत कुर्व मन्मथ मोहन बनमाशी । करत फिरत बज में मन-माई. बरजोरी कर बहियाँ धरोरी भारतेन्दु समग्र १५०