पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१९४

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भारी बनवारी बिना मुरझाईभरे सलाय नदी नद नारे मिटी राह सारी। -W* सों परखत जल-धार लेत परनि छिपाय । यह रितु रुसन की नहि प्यारी । रोर रोर दादुर-रव कोकिल कल झीगुर मनकारन देखु न छाय रहे घन मुकि कि भूमि छई हरियारी मिलि चारहु दिसि तुम शाह घोर सी मचाय । सोरो पवन चलत गराई काम बढ़ायन-हारी 'हरीचंद गिरिधारी राधा प्यारी साय लगाय बन उपवन सब भए सुढाषन औरहि छवि कटु धारी । ऐसी समे रहे मिलि कंठ लपटाय ।५२ | फूली जुही मालती मईकी सुनि कोकिल किलकारी । तेरेई पमान-हित पावस प्रकल आयो लाहकि लहकि लपटी सब बेली पीतम-गल भुज द्वारी । उठि चलि प्यारी देखि दाई अंधियारी भारी । मगन भए बड़ जीव सबै जब तब तूं रहति क्यों न्यारी। पथ दिखाइ वामिनी रही चमकि तेरे गवन हेत 'हरीचब' गर लगु पीलम के गाढ़े भुज भरि नारी ।५७ स्खन संग मिले क्यों न निसि अति कारी कारी । सावनी गोप सवे गेह गए हो गयो इकत कुंज पिय बिनु सधी नींद न आवे साँपिन सी भई रैन । सीरी पोन चलि रही देखि प्यारी प्यारी । 'हरोचद' मान छोड़ि उठि चतु साथ मेरे व्याकुल तहy अकेली पीतम बिनु नहि चैन । कैसे में जीऊ बिनु प्यारे ही बरसत टप टप नैन । बैठे बाट हेरि रहे पिय गिरधारी बारी ।५३ "हरीचंद' कटत न सावन मारत मोहन मैन ।५८ ख्याल मलार तिताला धुरपत टोड़ी या गौड़ मलार चौताला |ए घिरि घिरि के मेघवा बरसे. पिय बिनु मोरा जियरा तरसे। ताई ताई तायेई नाचे री मदन-मोहन रास रंग बड़ी बड़ी बूंदन बरसत पायो घेरि पे वधुन संग लाग डांट लेत उरप-तिरप महामोद बढ्यो चहुँ दिसि तें छायो चपला चमकि मेरे प्रान परसे । ब्रज-जुपतिन-मध्य आनंद राँचै री। मोफत पवन चोर पुरवाई अति अंधियारी कई | तत्तथा तत्तथा ततधा बाजे मृदंग तरस तकिटया पंच न सखाइ इन उत चुगनूं चमकत दरसे । | तस्टिया तकिटया छवि लखि महा मोद री। पंच न लखा इत उत जुगनूं चमकत दरसे । अलाग लाग लेत गावत गुनिजन बंधान 'हरीचद' पिय गरवां शगाओ मेरे तन की तपन तान मान बंध्यो चिरक्यो लय बिच बिच बुझाओ तोहि मिलि मेरो मन हरसै 1५४ बाजे मुरति सुख साँचे री छवि सधि शिव मोहे आय नाचत बजाय दसरी चाल की देखो दन बरसे दामिनि चमके चिरि डिमि दिमि डिमि डिमिर डिमिर जस तहाँ आए भदरा गरें से लग जाडो 'हरीचंद बिमल यांचे री । ताथेई० ।५० 1 घन की गरज सुन उमगत मेरो विय लावनी ऐसी समे मोहि मत तरसाओ। बरसा रितु सधि सिर पर आई पिय विदेस हाए । भरि गई नदी भूमि भई ह ई हरी हरी हमें अकेली छोड़ आप कबरी सों विक्षमाए । मग भए अगम दूर मत जाओ। 'हरीचंद' बलिहारी मिश प्यारे गिरधारो ! पूरो मनोरथ तपत बुझाओ । देखो०। ५५ । ख्याल मलार ताल झपक पिया बिनु विरह-वरसा आई। सघन घन वामिनि दमाक संग चमकि जुगनूं रमकि बदरन झमकि बरसत बूंद अति झर लाई। पपीहन पी पी रट लाई । मुधि कर पीतम प्यारे की मेरी अँखियाँ भरि आई बिरह से दरको सखि हाती । | पिया पिन में व्याकुल तड्यूँ नीद नहीं आती । | वाग बगीचे हरे भरे सब फूली फुलवारी । संदेसे भी नहिं भेजषाए वादे पर पादा मूठा कर अब तक नहि आए | विषा विना में व्याकुल तड़पू नींद नहीं आती रात अंधेरी पंथ न सूझै धोर घटा छाई । रिमझिम रिमझिम बूंदै बरसे झोके पुरवाई । | रैन कारी हारी भारी लाई अंधारी बिनु पिया बिहारी गिरधारी के प्यारी घबराई । 'हरीचंद न धीर धरै पीर भई सूरदासी मलार आडा वा तिताला विपति यह पड़ी सखी भारी। भारतेन्दु समग्र २५४