पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रहिं सब बज-गोपिका तन-मन-धन वारी। IANS आनेद अति परगट भयो दुख दूरि यहावे। अब में प्रगटे आइ कन्हाई। 'हरीचंद' श्री राधिका-पद पै बलिहारी ७ नाचत ग्वाल करत कोतूहल हेरी देत कहि नंद दुहाई। "शिरकत गोपी गोप सबै मिति आजु तो आनंद भयो का पै कहि जादै। गावत मंगलचार प्रधाई। भूले सब गोपि-ग्वाल इत उत बहु डोले । आनंद भरे देश कर-तारी गति बाढयो अति हिय हुलास जय जय मुख बोले । पहिरि पहिरि सुरंग सारी आई अज-नारी । सुरगन कसुमन भार खाई। देत दान सम्मान नद अति गाय हिय मोद भरी दे दै कर-सारी । हुलास कछु बरनि न जाई । दान देत भानु राय जाको जो भाये । 'हरीचंद' जन जानि आपुनो 'हरीचद आनंद भरि राधा गुन-गावै ७८ देत सब बहुत बधाई ७२ कान्हरा यथा-सचि आई भादों की उजियारी। अबु अाज होत कुलाहल भारी। आनंद भशे सकल ब्रज-मंडल बरसाने वृषभानु गोप के श्री राधा अवतारी । प्रगटी श्री खूपभानु-दुलारी। गावत गोपी रस में ओपी गोप बजावत तारी। | कीरति जू की कोच सिरानी आनंद-गगन गिनत नहि काहू देत दिशतत गारी । जाके घर प्यारी अवतारी। देत दान सम्मान भान जू जनक माल मनि सारी 'हरीचद' मोहन जू की चोरी जो जाँचत सासों बदि पाया हरीचंद' पणिहारी।७३ विधना गरि संवारी १७९ आयु बरसाने नौवत बाजे। अधुन ग्वाला कोऊ नहिं जाई कहता. पुकारि सुनी री भैया कीरति कन्या जाई । बीन मृदंग दोश सहनाई गह गह इंदुभि गाजे । लावहु गाय सिगरि बन्छ सह सुबरन सीग महाई । सब ब्रज-मंडल शोभा बादी घर घर सब सुख सावें। मोर-पख मखतून झूल परि अंग अंग चित्र कराई। | 'हरीचंद' राधा के प्रगटे देव-वधू सब ला 100 आयु ब्रज आनंद बरसि रह्यो। आप उदय साँचो सष गावहु मितिकै गीत बधाई । 'हरीचंद' वृषभानु थमा सो बहुत निछावरि पाई ।७४ आनंद-मगन नहीं सुधि तन की सब दुख धरि बाल्यो । | प्रगट भई त्रिभुवन की शोभा सुख नहि जात कल्यौ । आनंद सुख हेरि हेरि हरीचद' आनंदित तेहि छन चरन की सरन गया।८१ जन-जन गावत देश बधाये नचत पिटौरी फेरि फेरि । उनमत गिनात न ग्याल कट ब्रज सुंदरि राखी धेरि घेरि । आबु कहा नभ भीर भई ? हेरी दे दे घोलत सबही ऊँचै सुर सो टेरि टेरि । | सजनी कौन फूल वरसावे सुख की थेति थई ।? शिरकत हसत हँसावत धावत सतत दधि-वत हरिऔर बालाक से चारह को आये ? तीन नयन को को है ? | ओडि बघंवर सरप लपेटे जटा धरे सिर सोडै ।। | सीन चार अरू पंच सप्त पटमुख के मिलि क्यों नाचे ? तन- -मन वारत बेरि बेरि ७५ अनूपम को यह वेदहि बाँचे आनंद आजु भयो बरसाने जनमी राधा प्यारी चू । त्रिभुवन सुखधानी ठकुरानी जननी उनक-दुलारी चू । | बीन बजावति कौन सुगाई हंस चढ़ी क्यों होले ? को वह पत्र बजाय रही है जज बोले। सुर नर मुनि जेहि ध्यान धरत है गावत बेद पुकारी जू । सो 'हरिचद' बसत बरसाने मोहन प्रान-अधारी वृ७ि६ | को यह लिये तमूरा ठादी को नाच का इत आवै कोड़ बात न पूछत पुनि नम तो चलि जाये ? अति आचरज भरी सब तन में बात करें प्रज-नारी, राग बिलावल प्रगट भई वृषभानु राय पर मोहन-मान-पियारी । आयु मौन वृषभानु के प्रगटी श्री राधा । दूरि भई है री सखी त्रिभुवन की आधा । आनंद चढ़यो कहत नहिं आवै कवि की मति सकुचाई । राधा-श्याम-नरन-कब-रख'हरीनद' यशि जाई ।८२ को कवि जो हवि कहि सके कछु कहि नहिं आवै । आजु प्रगट भई श्री राधा आजु प्रगट मई। गोपिका मिलि घर-घरन सों भानु-नगर गई 'हरीचद' ऐसो मुग निरखत चे को गाये? वर्षा विनोद १५७