पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२०

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(३) पत्र जीवन के अत्यन्त आत्मीय क्षणों की उपलब्धि होते हैं । भारतेन्दु का पत्र साहित्य भी उनकी आत्मीयता, सरलता निष्छलता और उनके मौजी स्वभाव को बड़े सहज भाव से उदघाटित करता है । अपने निकट मित्रों से लेकर भारतेन्दु जी ने देशी विदेशी अनेक विद्वानों को पत्र लिखें हैं । इनमें से कुछ ही अब उपलब्ध हैं। जिन लोगों को वे बहुधा लिखा करते थे उनमें हैं: -सर्वश्री गोस्वामी राधाचरण, प्रेमधन जी, कविराज श्यामलदास, काशिराज ईश्वरीप्रसाद सिंह, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजेन्द्रपाल मिश्र, केशवचन्द्र सेन, कृष्टोदास पाल, बंकिम बाबू आदि । भारतेन्दु ऐसा व्यक्ति तो अंध रूढ़ियों के खिलाफ खड्गहस्त था, परम्पराएं खुद उससे किस प्रकार चिपकी थी, यह कहानी इन पत्रों के "श्रीनामों" और इनमें व्यवहृत कागजों से स्पष्ट हो जाती ग्रह नक्षत्रों के अनुसार ही वह प्रतिदिन कागजों का व्यवहार करते थे रविवार को गुलाबी कागज पर लिखते थे और उसपर यह मुद्रित रहता थाः भक्त्त कमल दिवाकराय नमः, सूर्यवंशविकासाय श्री रामायनमः मित्र पत्र बिन हिय लहत छिनई नहि विश्राम । प्रफुलित होत कमल जिस नित रवि उदय ललाम ।। सोमवार को ग्रह के अनुसार सफेद कागज व्यवहार में लाया जाता था उस पर छपा रहता था:- श्री कृष्णचन्द्राय नमः, श्री चन्द्रचूडाय नमः ससि कुल कैरव सोम जय कलानाथ द्विजराज । श्रीमुखचन्द्र चकोर, श्री कृष्ण चन्द्र महाराज । बंधुन के पत्रहि कहत अर्घ मिलन सब कोय । आपहु उत्तर मेजहु पूरी मिलनौ होय ।। मंगल ग्रह के अनुसार मंगलवार को लाल कागज पर वे लिखते थे । उस पर छपा रहता था:- मंगल भगवान विष्णु, मंगलं गुरुड़ध्वजः मंगल पुण्डरीकाक्षं, मंगलायतानो हरिः बुधवार को कागज हरा होता था और उस पर छपा रहता थाः बुधजन दर्पणा में लखत दृष्टि वस्तु को मित्र । मन अनदेखी वस्तु को यह प्रतिबिम्ब विचित्र ।। गुरुवार को हलके पीतवर्णी कागज पर यह शीर्षक रहता था । श्री गुरुगोविन्दाय नमः श्री गुरवे नमः आशा अमृत पात्र प्रिय विरहातम हिय छत्र बचन चित्र अवलंबप्रद कारज साधक पत्र । शुक्रवार का कागज फिर सफेद होता था और उस पर अंकित रहता था: - कवि कीर्ति यशसे नमः अट्ठारह