पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२०२

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VO छतरी यज कहास चक्र सुर-नर-गन मोहै। कहि 'हरिचंद' मान सीता रस करि हित भूमि गई।११८ कत्र कंज केलि करत डोलत हरि राई। -Mere आजु भई कीरति के कन्या बाजत रंग-प्रधाई। कैसे रैन कटे बिन पिय के नीद नहीं आती नर-नारी सब है मिलि आई कीरति घर छवि छाई चेत चांदनी देख भया दुख सची मेरा दूना । अति आनंद कहन नहिं आवै 'हरीचंद' पनि जाई।१११ार कामदेव ने अंग अंग मेरा जला जला भूना । पिया बिन मैं उघ जीना। मलार काँ जाऊँ क्या कर दिखाता सारा जग सूना । मनोरच करत द्वार पर ठाढ़ी। धरनि में मैं समाय वाली। | करि करि ध्यान श्याम सुंदर को पुलकावलि तन बाढ़ी। कैसे रैन कटे बिनु पिय के नींद नहीं आती। ऐहेरी या मारग सो हरि कमल-नयन घनश्याम । लगा मास बेसस ससी दिन गर्मी के आए बेनु बजावत कमल फिरावत हँसत गरे बन-दाम । सब संजोगियों ने बसखाने घर में लगवाए । करि करि बहु पकवान मिठाई भरि भरि राखत थार । फूल के बंगले बनवाए अपने हाथ पॅथि बनावत रचि फूलन के हार । चंदन शेष फुहारे यूटे गुलाब छिरकाए। | बारे मेरे स्थ ठाटो करि मोको अति सुख देहे । करूं मैं क्या वियोग-माती । जो हम रचि रचि के राखे है सो प्रभु रुचि सो बैहैं । केसे रैन कटे बिनु पिय के नीद नहीं आती। दै बीरा आरती करोगी व्यवने हाथ डुलेहें जेठ मास गरमो सखि पड़ती बढ़ी पीर मारी। तन मन धन योद्यावर करिहे देखि देखि सुख पैहैं। दिन नहि करता किसी भांति घबराती में नारी । जो कहुँ धन घरसन लागे ताहि निवारन शर। भई मेरे जीवन की स्वारी। भीजत उतरि मेरे घर ऐहैं जहं सुख को सत्र सार। बारी प्रैस छोड़ के मुझको विछुड़े बनवारो। सुफल काम सब मेरो हथेहे जो कछु चित्त विचारेउ । हाय करि रोती पधिताती कैसे रेन कटे बिनु पिच के नीद नहीं आती। ऐसे ग्वालिनि करति मनोरथ रथ को हरि निहारेउ । हरि आये पादरहू आये बरषन लाग्यो पानी । बारड़ मास पिया बिन खोए रोइ रोइ हारे । बन बन पात पात करि दैदा मिले नहीं प्यारे । ताके घर प्रभु उतरि पधारे भीजत आपुहि जानी । अति आनंद भदो ताके चित मिलि प्रभु अति सुख दोनो। मेरे प्रानों के रखवारे 'हरीचंद मुखड़ा दिखलाओ आंखों के तारे । 'हरीचंद प्रभु अन्तरजामी सुफल मनोरथ कोनो ।१२० पीर अब सही नहीं जाती। कान्हरा केसे रेन कटे पिनु थिय के नींद नहीं आती ॥११५ वह निधि धर्महि से पाई। कीरति मैया तू बड़-मागिनि जो तेरे घर आई । ऐ में कैसे जाउँ ए दिलजानी हो जाये ध्यान भरत सरचयिक समु समाधि बहाई । देखो रिमझिम बरसत पानी सो निधि तजि पैठ पाम को बरसाने में आई। जो मेरी मौजे सुरुख चूंदरी तो घर सास रिसानी । जाते आज विहरत आनेद भरि श्री गोकुल के राई । 'हरीचंद पिय मोहि बचाओ पीत पिछोरी तानी ।११६ सो निधि धार बार उर धारके हरीबंद पति जाई ।१२१ सारंग सारंग अब जनमत हो आनंद भयो । रय चढ़ि नंदलाल पिय करत है बन फेरा । श्री वृषभानु-भवन के भीतर सब सुख आम नयो । आयु सची लालन सँग बिहरिवे को बेरा । गाँव गाँध ते टोको आयो भीतर भवन लयो । रतन-खचित सुंदर रथ दिव्य वरन सोहै । 'हरोचर अनंद भयो अति दुध बाहि दूरि भयो ।११७ ब्रज में रस-निधि प्रगट भई। हाई घन घटा चारु आनंद बरसायें। | चन्द्रभानु नृप भाग फले अब प्रगटी सुता नई । प्रमुदित धनश्याम तहाँ राग मलार गावें। | हरि राधा को प्रेम परम जो सोच मूरति चितई और कोक संग नाहिं हरि अरू प्रज-नारी । हाँफत रख अपने हाच राधा सुकुमारी । यथा-सचि हरीचंद जगत रूप लखि के बलि जाई ।१२२ इक बात नई सुनि आई। यथा-सचि