पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२११

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सब कुछ उसने खोया जिसने तुझे न ऐ दिलबर पाया । मजा न पाया बयाँ जिसका गूग का गुड़ खाना । अंधा है वह जिसको यह नूर नहीं कुछ दिखलाया । जब से यार ने अपने इश्क की मैं से मुझे सरशार किया। हर जा पर गर नहीं हो तुम तो फिर य तमाशा कैसा है। अपनी नरगिसी निमानी आखों का बीमार किया ।' तुम्हीं छिपै हो तो यह सब जुहुर प्यारे किसका है । भोली सी उस सूरत पर मुझको निसार सौ बार किया । तुझे कोई काबे में हाजिर कोई दैर में बतलाता । जुल्फ दिखाकर पेंच में लट के झट गिरफ्तार किया । भूले हैं सब अक्ल में बेशक हनके फर्क पड़ा। तब से जब कुछ छोड़ हुआ उस मस्ती से मै दिवाना । अरे नहीं एक-जाई तू तो हाजिर रहता है हर जा। मजा न पाया बयाँ जिसका गूंगे का गुड़ खाना । फिर बकने से भला इन बातों के हासिल है क्या । कोई मुझे कहता काफिर बे-ईमाँ कोई बतलाता । बेवकूफ है 'हरीचंद' जो इसमें कुछ भी कहता है । कोई मुझसे बोलने में भी जबाँ से शरमाता । तुम्हीं छिपे हो तो यह सब जुहूर प्यारे किसका हैं ।२ हाल देखकर हंसता कोई तर्स कोई मुझपर खाता । छुड़ा के दोनों ईमाँ मुझको जहाँ में काफिर ठहराया । कोई मुझको आनकर रो रो कर है समझाता । दैरो हरम को इबादत को क्यों मुझसे छुड़वाया । पर मैं क्या समदूं कि रंग में अपने हूँ खुद मस्ताना । पिला पिला के शराब क्यों मस्ताना मुझको बनवाया । मजा न पाया बयाँ जिसका गूंगे का गुड़ खाना । बना के मेरा तमाशा क्यों आलम को दिखलाया । यह वह शै है जिसकी खोज में हर कोई हैरान रहा । अपना अपना क्यों मुझको दुनियाँ में प्यारे कहलाया । हर शखसों ने आज तक इसकी बाबत बहुत कहा। था जो छोड़ना तो फिर पहले क्यों मुझको अपनाया । कोई मजाजी कहता हकीकी नाम किसी ने है रक्खा । कोई मसजिद कोई बुतखाने में नित है जाता । कहाँ गई वह बातै प्यारी प्यारी तेरी ऐ दिलदार । पै हमने तो सीधा ताका उस साकी का मैखाना । कहाँ गया वो तुम्हारा आगे का सा मुझ पर प्यार । मजा न पाया बयाँ जिसका गूंगे का गुड़ खाना । कहाँ गई वह मीठी निगाहै हर दम जो थी दिल के पार। यह वह रंग है जिसमें रंगा उसपर न दूसरा रंग चढ़ा। कहाँ छिपाया निमानी सूरत तू ने मेरे यार । यह वह मैं है न उतरा महशर तक भी जिसका नशा । दिखा के अपना जल्वा फिर क्यों रुख फेरा क्यों शरमाया। बगैर इसमें डूबे किसी को जरा न इसका पता लगा । था जो छोड़ना तो फिर पहले क्यों मुझको अपनाया । बिन मस्ती के इश्क के कोई नहीं हुशियार बना । क्यौं वह मैं थी मुझे पिलाई जिसका न उतरै कमी नशा। 'हरीचंद' क्या इससे हासिल है व फकत हमने जाना । दो आलम में मुझे ऐ प्यारे क्यों बदनाम किया । मजा न पाया बयाँ पिसका गूंगे का गुड़ खाना ।५ काफिर क्यों कहलाया मुझको दैरो हरम दोनों से गवा। खाक किया सबको तब यह अकसीर है कमाया हमने । हम-चश्मों में किया क्यों मुझे मेरे प्यारे रुसवा । सबको खोया यार अपने को तब पाया हमने । मेरे इश्क कानक्कार दो आलम में क्यों बजवाया । अपना बेगाना किया दोस्त को दुश्मन ठहराया हमने । था जो छोड़ना तो फिर पहले क्यों मुझको अपनाया । दीन व ईमाँ बिगाड़ा धरम सब डुबाया हमने । होके तुम्हारा गुलाम अब मैं किसका प्यारे कहलाऊँ। काम रज से रहा चैन दम भर न कहीं पाया हमने । आके तुम्हारे दर पे प्यारे किसके घर पर जाऊँ। दोनों जहाँ के ऐश को खाक में मिलाया हमने । इसी शर्म में मरता हूँ मैं अपना नाम क्या बतलाऊँ। जिसका नाम है शरम उसी को जग में शरमाया हमने । अपने दिल को यार किस तरह कहो मैं समझाऊँ। सबको खोथा यार अपने को तब पाया हमने । यही चाल थी तो फिर क्यों तू गरीब-परवर कहलाया । जब से दिल में मेरे वह दिलबर जलवा-अफरोज हुआ । था जो छोड़ना तो फिर पहले क्यों मुझको अपनाया । मिला मजा वह नहीं इस दुनिया में सानी जिसका । अब तो न छोडूं तेरा कदम प्यारे जो होनी हो सो हो । जब से आँखों में उसके मिलने का मेरी छा गया नशा । यार निबाहो तुम भी बाकी हैं जिंदगी के दिन दो । सब कुछ भूला कुछ ऐसा हासिल मुझको हुआ मजा । कहाँ मैं जाऊं किसको ढूँ, किसका होकर रहूँ कहो । काम किसी से रहा न ऐसा नशा है जमाया हमने । मैं तो प्यारे तुम्हारा हूँ तुम मेरे प्यारे हो । सब को खोया यार अपने को तब पाया हमने । 'हरीचंद' मेरा है मैं उसका हूँ यह था क्यों फरमाया । छिपान उसका इश्क-राज आखिर को सब कुछ फाश हुआ था जो छोड़ना तो फिर पहले क्यों मुझको अपनाया 18 | बे-दीनी का व शुहरा हुआ कि काफिर सब ने कहा । दिल में दिलबर ने जल्वा दिखला के बनाया मस्ताना। | हुई यहाँ तक बरबादी घर-बार खाक में सभी मिला । १७१ फूलों का गुच्छा 14