पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२२

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eyekte उसकी पाण्डुलिपि उपलब्ध नहीं है। ... महाप्रभु के जीवन के प्रति कुछ जिज्ञासाएं इस पत्र में की 10 गयी हैं। पत्र गोस्वामी राधाचरण को लिखा गया था । "पूज्य चरणेषु, श्री रूप सनातन गोस्वामी जी की जाति क्या थी? श्री महाप्रभु का जीवन चरित्र बंगला से हिन्दी किया है । उसमें यवन लिखा है । मैंने कायस्थ सुना है । हमारे निज सम्प्रदाय के ग्रंथों में भी कायस्थ लिखा है । इसका उत्तर अतिशीघ्र दीजिए । श्री शचिदेवी और विष्णुप्रिया कब तक जीवित रहीं यह भी लिखिएगा। दासानुदास हरिश्चन्द्र इस सन्दर्भ में एक दूसरा पत्र और है। शतकोटि दण्डवत प्रणामानंतर निवेदयति, बाबू राजेन्द्रपाल मित्र ने एक प्रबन्ध में इस बात का खंडन किया है कि महाप्रभु जी मध्वयतावलंबी थे। इनमें प्रमाण उन्होंने यह दिया है कि यताधर विरुद्ध तन्नास्माकमादणीयं । कहते हैं कि मध्व मत के ग्रंथ ही श्रीधर के विरुद्ध है । इसका क्या उत्तर हे? वैष्णवदीक्षा आपने कब और किससे लिया था ? मैं इन दिनों महाप्रभु के चरित्र का नाटक लिखता हूँ, इसी के लिए इन बातों के जानने की जल्दी है ।" - यह पत्र वस्तुत: भारतेन्दु जी के व्यक्तित्व की आडी तिरछी रेखाओं में रंग भरते हैं । उनका बहुआयामी रचनाकार उन पत्रों में दिखायी पड़ता है। उनका अध्ययन केवल पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित नहीं था । समाज को बहुत दूर तक दखन का उनमें ललक थी। इसी का परिणाम थी वे यात्राएं जिन्हें उन्होंने रेल के सेकेण्ड क्लास से लेकर बैलगाड़ी तक से की थी। (फस्ट क्लास का टिकट उन दिनों राजाओं नवाबों और अग्रजा का रिजर्व रहता था) ।। बैलगाड़ी की यात्रा में खाये हिचकोरे उन्हें बहुत दिनों तक याद रहे । उन्हान । हिलत डुलत चलत गाड़ी आवै, झुलत सिर टुटत रीढ़ कमर झोका खावै । इन यात्राओं का परिणाम यह था कि उनकी अभिजात्य रुचि लोकरुचि का आर वे मूलत: कवि थे । उनका कवि कभी यह मानने को तैयार नहीं था कि ब्रजभाष किसी और भाषा में कविता हो सकती है । उनकी काव्य प्रतिभा प्राचीन परम्पराम कही वह सूर के स्वर में स्वर मिलाकर गाती थी: - उधौ जो अनेक मन होते । तो इक श्याम सुन्दर को देते. इक ले जोग संजोते ? हंया तो हुलौ एक ही मन सो. हरि ले गये चुराई हरी चन्द कोऊ और खोजि के, जोग सिखावह जाई । को तैयार नहीं था कि ब्रजभाषा के अतिरिक्त भी काव्य प्रतिभा प्राचीन परम्परा में आकण्ठमग्न थी। बीस