पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२३३

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सन् १८७१ में श्रीमान प्रिंस आफ वेल्स के पीड़ित होने पर कविता रचना काल सन् १८७१ जय जय जगदाधार प्रभु, जग-व्यापक जगदीस । परम ननस्वे कहत है, दीन बचन अति भाखि ५ जय जय प्रनतारति-हरन, जय सहस-पद-सीस ।१ विनवत हाथ उठाय के, दीजै श्री भगवान । करुना-वरुनालय जयति, जय जय परम कृपाल । जुबराजहिं गत-रुज करौ, देहु अभय को दान । सुद सच्चिदानंद-घन, जय कालहु के काल ।२ तिनके दुख सों सब दुखी, नर-नारिन के बंद । सब समर्थ जय जयति प्रभू, पूर्ण ब्रहम भगवान । तासोो तुरतहि रोग हरि, तिन कहें करहु अनंद (७ जयति दयामय दीन-प्रिय, क्षमा-सिंधु जन-जान ।३ | जिनकी माता सब प्रजा-गन की जीवन-प्रान । हम है भारत की प्रजा, सब बिधि हीन मलीन । तिनहि निरोगी कीजिये, यह बिनवत भगवान ।८ तुम सो यह बिनती करत, दया करहु लखि दीन ।४ | बेग सुनें हम कान सों, प्रिंस भए आनंद । हाथ जोर सिर नाइ के, दाँत तेरे तून राखि। | परम दीन हवे जोरि कर, यह बिनवत हरिचंद ।९ ॥श्री जीवन जी महाराज॥२ रचना काल सन् १८७२ हरि की प्यारी कौन ? देह काके बल धावत ? कहा एदन में परि विशेषता बोध करावत ? कहा नवोढ़ा कहत ? ठाकुरन को को स्वामी ? सुरगन को गुरु कौन ? बसत केहि पल रिसि नामी ? हरि-वंशी-धुनि सुनि सकल ब्रजबनिता का कहि भजै? वह कौन अक को गुननहूँ किए रूप निज नहि तजै ।१ अश्व-पीठ कह धरत? कौन रवि के जिय भावत ? राजा के दरबार समहि सुषि कौन दिआवत ? नवल नारि मैं कहा देखि जुव-जन मन लोभा ? को परिपूरन ब्रह्म ? कहा सरवर की शोभा ? घन विद्या मानादिक सूगुन भूषित को बग-गुरु रह्यौ ? इन सब प्रश्नन को एक ही उत्तर श्री जीवन कहौ ।२ ३ चतुरंग बीस, तीस, चौबीस, सात, तेरह उन्निस कहि । सैतालिस, बासठ, छप्पन, चारूक, दस, पच्चीस, बयालिस, सत्तावन लहि । उनतालिस, पैतालिस कहिय ।१ इक्कावन, छत्तिस, इक्किस, एकतिस, सोलह, खट। पैतिस, एकतालिस, अट्ठावन, बावन को गठ। बारह दै. सत्रह, सत्ताइस, तैतिस गिन कट । छियालीस, एकसठ, पचपन, चालिस, तेइस अठ। पच्चास, साठ, तैंतालिस, सैंतिस, चौदह, उनतिस, चौवालिस, चौतिस, उनचासो । चौबन, चौसठ लहिय । उनसठ, तिरपन, तिरसठ, अड़तालिस प्रकासो । १ नवम्बर १८७१ में टाइफाइड से पीड़ित होने के कारण कई दिनों तक प्रिंस की दशा गम्भीर हो गयी थी। उसी समय यह कविता लिखी गयी थी। -सं० २ जिन श्री जीवन जी महाराज के अशेष गुण से पत्र में लिखे गए है उनके नाम की मैंने एक अंतापिका बनाई है, कृपा करके प्रकाश कीजिएगा । इस अंतलापिका में १६ प्रश्न के उत्तर चार ही अक्षर से निकलते हैं। अथ क्रम से उत्तर ।।१ श्री २जी ३५ ४ न ५ श्री जी जीव ७वन ८वजी ९ नव १० जीन १२ वनजी १२ नजीव १३ नव श्री १४ श्रीजीव १५ जीवन १६ श्री जीवन । (२ सितम्बर सन् १८७२ की कवि वचन सुधा से) ३ ३ अगस्त १८७२ की कविवचन सुधा में प्रकाशित भारतेन्दु के अन तीनों छप्पयों को याद कर लेने से चतुरंग का खिलाड़ी खेल के चौसठो घर पर घोड़ा दोड़ा सकता था । किसी जमाने में चतुरंग राज परिवार का प्रिय खेल था। छोटे प्रबंध तथा मुक्तक रचनायें १९३