पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२३४

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अड़तिस, बत्तिस, हरिचंद' पंद्रह, सुपाँच, बाईस लहि । अट्ठाइस, ग्यारह, छबिस, नव, तीन, अठारह, एक कहि ।२ चतुर जनन को खेल चारू चतुरंग नाम को । तामै चपल तुरंग चलत दय अर्ड धाम को । जिमि कोउ विज्ञ सवार बाजि चढ़ि ब्यूह माह धसि । फेरै तेहि सब ठौर कठिन यद्यपि चाबुक कसि । तिमि चौंसठहू घर मैं फिरै बाजि अंक सब ये कहहु । 'हरिचंद' रसकि जन जानि एहि नित चित परमानंद लहहु ।३ 6 TINA Sitemap देवी छद्म-लीला बनारस प्रिं प्रेस में सन् १८७३ में प्रकाशित । देवी छम-लीला श्रीराधा अति सोचत मन में। कौन मांति पाऊँ नंद-नंदन पिया अकेले बूदाबन में । वे बहु-नायक रस के लोभी उनको चित्त अनेक तियन में। घेरे रहति सौति निसि बासर छौड़त नाहिं एकह छन में। हमरे तो इक मोहन प्यारे बसे नैन में तन में मन में। 'हरीचंद' तिन बिन क्यों जीवें दिन बीतत याही सोचन में ११ तव ललिता इक बुद्धि उपाई । | सुन री सखी बात इक सोची सो मैं तुम सों कहत सुनाई । हम सब बनत ग्वाल अरु पंडित देवी आपु बनहु सुखदाई । तिन सों जाय कहत हम अदभुत बंदावन देवी प्रगटाई। अति परतच्छ है वाकी ताको देखन चलहु कन्हाई । 'हरीचंद' यह छल करिके हम लावत तिनकों तुरत लिवाई ।२ यह बात राधा मन भाई 1 बेनु श्रृंग पुनि लकुट कमल लै चार भुजा तहं प्रगट दिखाई। माये क्रीट मोर-पखवा को सारी लाल लसी सुखदाई । रतनन के आभरन बने तन जिनपै दृष्टि नाहिं ठहराई । मौन साथि दोउ नैनन थिर करि मूरति बनी महा छबि छाई । 'हरीचंद' देविन की देवी आज परम परमा प्रगटाई ।३ तब सखियन निज भेष बनायो । कोउ बचि ग्वाल बनी कोउ पंडा पुरुषन ही को रूप सुहायो । बंदाबन में सब मिलि पहुंची जहं मन-मोहन घेनु चरावत । तिन सों जाइ कहन यो लागी सुनहु लाल इक बात सुनावत । अचरज एक बड़ो भयो बन मैं बट तर इक देवी प्रगटानी । अति परतच्छ कला है वाकी महिमा कडून जात बखानी । इक आवत इक जात नगर तें भीर भई लाखन की भारी । जो जोइ मांगत सो सोइ पावत सखियन को तहं दियो पठाई । बैठि आसन करि मंदिर में सखियन की दै भुजा बनाई। भारतेन्दु समग्र १९४