पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२३७

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A प्रात:स्मरण मंगल-पाठ: हरि प्रकाश यंत्रालय, नेपाली खपरा. काशी से प्रकाशित । रचना काल सन् १८७३ प्रातः स्मरण संगल-पाठः मंगल व्यारूं पैपान करि बीरी खात जभात है। मंगल राधा-कृष्ण-नाम-गुन-रुप सुहावन । 'हरिचंद' सैन आरति करत मंगल जुगल-बिहार रसिक-मन-मोद-बढ़ावन । सखि सब निरखि सिहात है। मंगल गल भुज डारि बदन सों बदन मिलावनि । मंगल बूंदा-विपिन कुंज मंगलमय सोहै। मंगल चुंबन लेनि बिहंसि हसि कंठ लगावनि । मंगल गिरि गिरिराज वृक्ष मंगल मन मोहै । आलिंगन परिरभन मिलनि मंगल कोक-कलानि कढ़ि। मंगल बन सब ओर झरत भरना सब मंगल । 'हरिचंद' महा मंगलमयी जुगल-केलि रसरेलि बढ़ि।१ मंगल पच्छी बोल सुमंगल फूल पत्र फल । मंगल प्रातहि उठे कछुक आलस रस पागे । मंगल अलि-कुल गावत फिरत मंगल केकी नाचहीं । सिथिल बसन अरु केस नैन घूमत निसि जागे । 'हरिचंद' महामंगल सदा नित बूंदाबन मांचहीं ७ भुज तोरनि जमुहानि लपटि के अलस मिटावनि । मंगल जमुना-नीर कमल मंगलमय फूले । भूखन बसन सँवारि परस्पर नन मिलावनि । मंगल सुंदर घाट बंधे भवरे जहं भूले। कछु हंसनि सीकरनि लाज सो मुरि अंग पर गिरि परनि। मंगलमय नंद-गाँव महाबन मंगल भारी। 'हरीचंद' महा मंगलमयी प्रात उठनि पग धरि धरनि।२ मंगल गोकुल सबै ओर उपबन सुखकारी । मंगल सखी-समाज जानि जागे उठि धाई। मंगल बरसानो नित नवल मंगल रावलि सोहई । जल-झारी पिकदान वस्त्र दरपन ले आई। 'हरीचंद' कुंड तीरथ सबै मंगलमय मन मोहई ।८ करि मुजरा बलिहार भई लखि नैन रिसाई । मंगल श्री नंदराय सुमंगल जसुदा माता । प्रगट सुरत के चिन्ह देखि कछु हंसी-हंसाई । मंगल रोहिनि मंगलमय बलदाऊ भ्राता। मुख धोइ पाग कसि आरसी देखत अलक संवारहीं। मंगल श्री बृषभानु सुमंगल कीरति रानी । 'हरिचंद' भोग मंगल धर्यो आरोगत मन वारहीं ।३ मंगल गोपी ग्वाल गऊ हरि को सुखदानी । मंगल मेरि मृदंग पनव दुंदुभि सहनाई । मंगल दधि दूध अनेक विधि मंगल हरि-गुन गावहीं । चंग मुचंग उपंग झांझ झालरी सुहाई । 'हरिचंद' लकुट अरु मुकुट धरि मंगल धेनु बजावहीं।९ गोमुख आनक ढोल नफीरी मिलि के साजै । मंगल वल्लभ नाम जगत उधरो जेहि गाए । मंगलमयी मुरलिका बिच बिच अजुगुत बाजै । विष्णु स्वामि पथ परम महा मंगल दरसाए । जे करति हाथ जोरे सबै मुरछा बिजन द्वारहीं । मंगल विठ्ठलनाथ प्रेम-पथ प्रगटि दिखायो । हरीचंद' महामंगलमयी मंगल-आरति बारहीं ।४ | मंगल दैवी जन दुखी लखि शन चलायो नाम को । मंगल जुगल नहाइ बिविध सिंगार बनायत । 'हरिचंद' महामंगल भयो दुख मेट्यौ सब जाम को।१० मंगल आरसि देखि फूल-माला पहिराषत । मंगल गोपीनाथ रूप पुरुषोत्तम धारी । मंगल गोपी गोपी-बल्लभ भोग लगावत । श्री गिरिधर गोविंद राय भक्त्तन-दुखहारी । मंगल ग्वालिन आइ दूध मथि धैया प्यावत । बालकृष्ण श्री गोकुलेस रघुनाथ सुहाए । मंगल भोजन बहु बिधि करत उठि बीरी मुख मैं धरत || श्री जदुपति घनस्याम सात बपु प्रगट दिखाए । मंगल उगार 'हरिचंद' ले राज-भोग आरति करत ।५ मंगलमय बल्लभ बस अटल प्रेम-मारग रहयो । मंगल बन के फल अनेक भीलिनि ले आई। 'हरिचंद' महा मंगलमयी बेद-सार जिन मथि कयौ।११ मंगल जुगल समेत फूल-माला पहिराई । मंगल संध्या भोग अरपि आरति मिलि करहीं । मंगलमय सिंगार बहुरि निसि हलको घरहीं । छोटे प्रबंध तथा मुक्तक रचनायें १९७