पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२४४

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आली । हँकारे । कीनो। न सुहाए। श्री प्यारी के मन अति भाए । पग परि बोली सब तिमि प्यारीह जीज बिचारयौ । यह हाजिर बन-माली। पियहि ठगो यहि चित निरधारयो । भयो हाजिर द्वार पै करि कृपा मुजरा लीजिए निरधारि जिय कदि छदम-लीला सखिन को आज्ञा दई। जो हुकुम याके होइ लायक महारानी कीजिए बनि कक ठगिए आजु लालहि रीति यह कीजे नई । लखि भूमि में तन प्रान-प्रिय को कछु दया जिय मैं लई नव भेस रानी को मनोहर सबन सँग मिलि कीजिए । कछु जानि आयो नारि के ढिग कोप निज मन में भई । अति चतुर मोहन तिनहुँ को चलि आजु धोखा दीजिए । उत मोहन श्री राधिका सी रानी को देखि । यह जिय सोच बिचारि कै गई एक बन माहि । कछु जिय मैं संकित भए भौंह तनेनी देखि । बृंदा को आज्ञा दई सजौ सबै चि चाहि । तब बोले मोहन प्यारे। तब तहँ आज्ञा पाई। कहिए केहि हेत सब सामग्री सजी सुहाई। हम तो कछु दोष नव खंडन के महल बनाए। तो क्यों मोहिं दूषन दीनो । राज-साज तह सजे सजि साज के सब साज बिच मैं सुभग सिंहासन धर्यो। क्यों दियो दुषन मोहिं सुनि के राधिका बोलत भई । धरि क्रीट बैठी मध्य राधा भेष रानी को कर्यो । कछु क्रोध मैं निज छद्म को नहिं ध्यान करि जिय में लई। बहु छड़ी मुरछल चंवर सूरजमुखी पंखा छत्र ले । जो झूठ बोले नितहिं तासों और अपराधी नहीं । तेहि दंड देनो उचित राजहि नीति यह जग की कही । भई सखी ठाढ़ी अदब सों चहुँ ओर सब मिलि नजर दै। परवानो जारी कियो बन-देविन के नाम । सुनि रुखे तिय के बचन भरे श्याम जुग नैन । अबहिं पकरि के बिन सखन हाजिर लाओ श्याम । हाथ जोड़ि गद्गद गिरा बोले मोहन बैन । झूठ कही कब सुनि चहुँ दिसि सखियाँ धाई । मोहिं कहि मिलि दीजै वृन्दाबन मैं तह राधिका सुनि बचन हरि सखन संग गाँठि रहे जिय आपनी आपु गाई। चरावत जहँ आप चारत गाय हे तह सखि सबै मिलि के गई। जिय गाँठि आपनी खोलि राधा बात प्रीतम सों कही। करि साम दाम सुदंड भेदहि बात यह बरनी नई । तुम कहत हम श्री राधिका तजि और तिय देख नहीं । जदु-वंश की रानी नई इक कुमुद-बन में है रही । तो आजु सुनि क्यों नाम रानी को यहाँ आए कहौ । जागीर मैं तिन कंस नृप सों कुमुद बन की महि लही । हो परम कपटी श्याम तुम अब दरस नहि मेरो लहौ। तिन हम को आज्ञा दई करि के 'टेढो डीठ । यह कहि के मुख फेरि के राधा रही रिसाय । कौन श्याम उधम करै मेरे बन में ढीठ । तब ब्याकुल हवे धाइ पिय परे तिया के पाय । विन मेरो भरि नैन अरज यह कीनी । उन क्यों बन गाय चरायो । कर जोरि बिनय-बिधि लीनी । फूल-फूल बिपिन के जेते । नित को अपराधी उन तोरि लिए क्यों तेते । तजि चरन कित प्यारी। उन तोरि बन के फूल फल सब घास गउवन को दई । कित जाहिं तनिकै चरन यह दृग वारि भरि मोहन कह्यौ। तेहि पकरि हाजिर करो वह हम सबन को आज्ञा भई । सुनि दीन बोलन प्रान-पति की धीर नहिं कोउ को रह्यो। यह सुनि हुकुम बिन सखा गन चलि तहाँ उत्तर कीजिए। हँसि मिली प्यारी मान तजि निज रूपले संग श्याम के। जो हुकुम रानी देहिं ताको अदब सो सुनि लीजिए || मिलि करी क्रीड़ा बिबिध बिधि सुनि आज्ञा जिय संग धरि कुछ तौ भय हिय लीन । नव कुंज सुख रस-धाम के । कछु रानी को नाम सुनि लालचहु मन कीन । एहि बिधि पीतम सों मिली नव बन छद्म बनाइ । तब संग सखिन के आए। 'हरीचंद' पावन भयो यह रस-लीला गाइ । मुजरा करि नाम सुनाए । आई। जाई । बानी । महरानी । बोली। खोली। हुकुम बतायो । बारी। जाय भारतेन्दु समग्र २०४