पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२४८

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कान्ह कान्ह गोहरावति हो ।१३, पावस रितु नहिं जानति हो चूरी खनकन मैं बसी को 'हरिचंद' बृथा भ्रम पावति हो । नाहक धोखा लावति हो । पिया नहीं ये धन उनये क्यों बिना बात इन मोरन पै कान्ह कान्ह गोहरावति हो ।१५ जिय मुकुट-सक उपजावति हो । कबहूँ नारी पुरुष के अजगुत भाव दिखावति हो । जाहु जाहु 'हरिचंद' बुथा क्यों कबहुँलाज करि बदन ढकत हो कबहूँ बेनु बजावति हो। जल में आगि लगावति हो । भई एक सोंदै सजनी 'हरिचंदहि'अलख लखावति हौ। सुनिहें लोग सबै घर के क्यों राधे राधे कबौं कबौं तुम कान्ह कान्ह गोहरावति हो।१६ कान्ह कान्हा गोहरावति हो ।१४ श्याम सलोनी मूरति अँग अँग बिना बात ही अटा चदी क्यों अद्भुत छबि उपजावति हो 1 आँचर खोले धावति हो। नारी होय अनारी सी क्यों बरसाने में आवति हौ। सेज साजि अनुराग उमगि क्यों जानि गई हरिवंद सबै जब तब क्यों बात छिपावति हो। रचि रचि माल बनावति हो । राधे राधे कहो अहो क्यों कान्ह कान्ह गोहरावति हो।१७ GERO GUTTERS मुँह-दिखावनी* रचना काल सन् १८७४ राज कुमार श्री ड्यूक आफ महरानी विक्टोरिया ! धन धन तुमरो भाग । एडिनबरा की नववधू को। लख्यौ बधू मुख-चंद तुम पूरौ भाग सुहाग १७ आजु अतिहि आनंद भयो बढ्यो परम उछाह । रूस रूस सब के हिये भय अति ही हो जौन । राज-दुलारी सों सुनत राजकुंवर को ब्याह ।१ बधू ! तुम्हारे ब्याह सों उड़यो फूस सो तौन 1८ बसे राज-घर सुख भयो मिटे सकल दुख-दुद । धन यह संबत मास पख धन तिथि धन यह बार । मेरी बहू सुलच्छिनी प्रजन दियो आनंद ।२ | धन्य घरी छन लगन चेहि ब्याहे राजकुमार ।९ द्वार बंधाई तोरने मनिगन मुकता-माल । आए मिलि सब प्रजा-गन नजर देन तुव धाम । धाई घाई फिरत है कहत बधाई बाल ।३ ठाढ़े सनमुख देखिए नवत जुहारत नाम ।१० विद्या लक्ष्मी भूमि अरु तुव प्यारी तरवारि । कोउ मनि मानिक मुकुत कोउ कोऊ गल को हार । राज-कुँवर 4 सौत लखि मोही हारि निहारि ।४ कनक रौप्य महि फूल फल लै लै करत जुहार ।११ 'देह दहिया के बढ़े ज्यों ज्यो जोबन-जोति । तब हम भारत की प्रजा मिलिकै सहित उछाह । त्यौं त्यौं लखि सौते-बदन अतिहि मलिन दुति होति"।५ लाए 'आशा' दासिका लीजै एहि नर-नाह ।१२ मांगी मुख-दिखरावनी दुलहिन करि अनुराग । सेवा मैं एहि गसियो नवल बधू के नाथ । सास सदन मन ललनई सौतिन दियो सुहाग ।६ | यह भाग निज मानिकै छनक न तजिहै साथ ।१३

  • सन् १८७४ ई. में क्वीन विक्टोरिया के द्वितीय पुत्र इयूक ऑव एडिनबरा का विवाह रूस की

राजकुमारी ने डचेज़ मेरी के साथ हुआ था, जिसके उपलक्ष्य में यह मुंह-दिखावनी लिखी गई थी । १५ फरवरी सन १८७४ ई. की हरिश्चंद्र मैगजीन मेंयह प्रकाशित है। भारतेन्दु समग्र २०८