पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२५१

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4401 Wax अंजन मुख सों सीस महावर-बिंदु छुड़ाओ । अब सोवहु होय अचेत तुम दीनन के गल फाँसि कै।१८ जुग कपोल सों पीक पोछि के छाप मिटाओ । कह गए विक्रम भोज राम बलि कर्ण युधिष्ठिर । उर हार चीन्ह परि पीठ पर ककन उपर्यो देत छवि। जागौ दुराउ तेहि बात अब जामें कछ् बरनै न कवि।१२/ चंद्रगुप्त चाणक्य कहाँ नासे करिकै थिर । कहँ क्षत्री सब मरे जरे सब गये कितै गिर । आलस पूरे नैन अरुन अब हमहिं दिखावहु । कहाँ राज को तौन साज जेहि जानत है चिर । सुरत याद दै प्रिया-दृगन भरि लाज लजाबहु । कहें दुर्ग-सैन-धन-बल गयो धूरहि धूर दिखात जग । चुटकी दै बलिहार बोलि कदु अलस जंभावहु । जागो अब तो खल-बल-दलन केलि-कहानी बिबिध भाखि कछु हँसहु-हँसाबहुः । रक्षहु अपुनो आर्य-मग ।१९ भरि प्रेम परस्पर तन चितै आलस मेटहु लागि हिय । अँगरानि मुनि लपटानि लखि जहाँ बिसेसर सोमनाथ माधव के मंदिर । सखिगन सर्व सिराहि जिय ।१३ तहँ महजिद बनि गई होत अब अल्ला अकबर । जहँ भूसी उज्जैन अवध कन्नौज रहे बर । जागौ जागौ नाथ कौन तिय-रति रस भोए । सिगरी निसि कहुँ जागि इतै आवत ही सोए । तहँ अब रोवत सिवा चहुँ दिसि लखियत खंडहर । जह धन-विद्या बरसत रही सदा अबै वाही ठहर । च्यौं न सामुहें नैन करत क्यों लाज समोए । बरसत सब ही विधि बे-बसी अब तौ जागौ चक्रधर ।२० आधे आधे बैन कहत रस-रंग भिगोए । बलिहार और के भाग-सुख हमैं प्रात दरसन मिलन । गयो राज धन तेज रोष बल ज्ञान नसाई । ताहू पै सोवत लाल बलि जागी कंज चहत खिलन ।१४ | बुद्धि बीरता श्री उछाह सूरता बिलाई । आलस कायरपनो निरुद्यमता अब छाई। जुगल कपोलन पीक छाप अति शोभा पावत । रही मूढ़ता बैर परस्पर खंडित अधरन पै अंजन जावक सरसावत । कलह लराई। सब विधि नासी भारत-प्रजा कहुँ न रह्यो अवलंब अब। सिर नूपुर घुघरू अंक छबि दुगुन बढ़ावत । जागो जागो करुनायतन फेर जागिही नाथ कब ।२१ अंग अंग प्रति अभरन-गन चिन्हित दरसावत । कंकन पायल सों पीठ खचि गाल तरौनन सों चुभित। सीखत कोउ न कला, उदर भरि जीवत केवल । कंचुकी छाप सह माल बहू बिनु पसु समान सब अन्न खात पीअत गंगा-जल । गुन कोमल हिय खुभित ।१५ धन बिदेस चलि जात तऊ जिय होत न चंचल । रहे नील पट ओढि चूरिकन जहँ लपटाए । जड़ समान वैरहत अकिल हत रचि न सकत कल। सेंदुर बिदुली पीक चित्र तहँ बिबिध बनाए । जीवत बिदेस की वस्तु लै ता बिनु कछु नहिं करि सकत। बिथुरी अलकन मैं बेसर क्यों सरस फंसाए । जागो जागो अब साँवरे सब कोउ रुख तुमरो तकत।२२ खसित पाग मैं गलित कुसुम मिलि पेंच बंधाए । पृथ्वीराज जयचंद कलह करि जवन बुलायो । बलिहार आरसी जल लिए दासी बिनय-बचन कहत। तिमिरलंग चंगेज आदि बहु नरन कटायो । जागो पीतम अब निसि बिगत अलादीन औरंगजेब मिलि धरम नसायो । गर लागो मनमथ दहत ।१६ बिषय-बासना दुसह मुहम्मद सह फैलायो । ड्रबत भारत नाथ बेगि जागो अब जागो । तब लौं सोए बहुत नाथ तुम जागे नहिं कोऊ जतन । आलस-दव एहि दहन हेतु चहुँ दिसि सों लागो । अब तो जागो बलि बेर भइ हे मेरे भारत-रतन ।२३ महा मूढ़ता वायु बद्मवत तेहि अनुरागो । जागो हौं बलि गई बिलंब न तनिक लगावहु । कृपा-दृष्टि की बृष्टि बुझावहु आलस त्यागो । आपुनो अपुनायो जानिकै करहु कृपा गिरिवर-धरन । चक्र सुदरसन साथ धारि रिपु मारि गिरावहु । जागो बलि बेगहि नाथ अब देहु दोन हिंदुन सरन ।१७ थापहु थिर करि राज छत्र सिर अटल फिरावहु । मूरखता दीनता कृपा करि बेग नसावहु । प्रथम मान धन बुधि कोशल बल देइ बढ़ायो । क्रम सो विषय-बिदूषित जन करि तिनहिं घटायो । गुन विद्या धन बल मान बहु सबै प्रजा मिलि के लहैं। आलस मैं पुनि फाँसि परसपर बैन चढ़ायो । जय राज राज महराज की आनंद सो सब ही कहें ।२४ ताही के मिस जवन काल सम को पग आयो । सब देसन की कला सिमिटि के इतही आवै । तिनके कर की करबाल बल बृद्ध सब नासि के कर राजा नहिं लेइ प्रजन 4 हेत बढ़ावै । 1 छोटे प्रबंध तथा मुक्तक रचनायें २११