पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२५२

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गाय दूध बहु देहिं तिनहिं कोउ न नवावै । तजि छुद्र बासना नरसवै निज उछाह उन्नति करहिं। द्विज-गन आस्तिक होइ मेघ सुभ जल बरसावै । | कहि कृष्ण राधिका-नाथ जय हमहूँ जिय आनंद भरहिं ।२५ प्रात-समीरन अक्टूबर १८७४ की हरिश्चन्द्र चन्द्रिका में प्रकाशित । इसका छंद बँगला का पयार है । पावै गात मन्द मन्द आवै देखो प्रात समीरन मित्र उपदेस बन्यो भोर पौन आय । करत सुगन्ध चारो ओर विकीरन । पराग को मौर दिए पच्छी बोल बाज गात सिहरात तन लगत सीतल ब्याहन आवत प्रात-पौन चल्यो आज । रैन निद्रालस जन-सुखद चंचल । आप देत थपकी गुलाब चुटकार नैन सीस सीरे होत सुख बालक खिलावै देखो प्रात की बयार । आवत सुगन्ध लिए पवन प्रभात । जगावत जीव जग करत चैतन्य वियोगिनी-विदारन मन्द मन्द गौन प्रान-तत्व सम प्रात आवे धन्य धन्य । बन-गुहा बास करै सिंह प्रात-पौन । गुटकत पच्छी घुनि उड़े सुख होत नाचत आवत पात पात हिहिनात प्रात-पौन आवे बन्यो सुंदर कपोत । तुरग चलत चाल पवन प्रभात । नव-मुकुलित पा-पराग के बोझ आवै गुजरत रस फूलन को लेत भारवाही पौन चलि सकत न सोम। प्रात को पवन भौर सोभा अति देत । दुअत सीतल सबै होत गात आत सौरभ सुमद धारा ऊँचौ किए मस्त स्नेही के परस सम पवन प्रभात । गज सो आवत चल्यौ पवन प्रसस्त । लिए जात्री फूल-गंध चले तेज धाय फुलावत हिय-कंज जीवन सुखद रेल रेल आवै लखि रेल प्रात-वाय । सज्जन सो प्रात पवन सोहै बिना मद । बिविध उपमा धुनि सौरभ को भौन दिसा प्राची लाल कर कुमुदी लजाय उड़त अकास कवि-मन किधौ पौन । होरी को खिलार सो पवन सुख पाय । आग सिहरात ए उड़त अंचल भौर-शिष्य मंत्र पढ़ें धर्म-कर्म-वन्त कामिनी को पति प्रात-पवन चंचल । प्रात को समीर आवे साधु को महंत । प्रात समीरन सोभा कही नहिं जाय सौरभ को दान देत मुदित करत जगत उद्योगी करै आलस नसाय । दाता बन्यो प्रात-पौन देखो री चलत । जागे नारी नर लगें निज निज काम पातन कंपावे लेत पराग खिराज पंछी चहचह बोलें ललित ललाम । आवत गुमान भज्यौ समीरन-राज । | कोई भजे राम राम कोई गंगा न्हाय गावै भौर जि पात खरक मृदंग कोई सजि वस्त्र अंग काज हेत जाय । गुनी को अखारो लिए प्रात-पौन संग । | चटकै गुलाब फूल कमल खिलत काम में चैतन्य को देत है जगाय कोई मुख बंद करै परन हिलत । भारतेन्दु समग्र २१२