पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(सुरति करत जिय अति जरत मरत रोय करि हाय । सब धर्मन सों श्रेष्ठ है परम अहिंसा धर्म ।२४ बलि यह बलिजा नीम सौ हीयो उलटत जाय ।१६ पूजा लै कहं तुष्ट नहिं धूप दीप फल अन्न । गुख गदगद तन स्वेद-कन कंठहु रुंध्यो जात । जौ देबी बकरा बधे केवल होत प्रसन्न २५ उलट्यौ परत करेजवा जिय अतिही अकुलात ।१७ | हे बिस्वभर ! जगत-पति जग-स्वामी जगदीस । कहाँ जायँ कासों कहें कोउ न मुनिबे जोग । हम जग के बाहर कहा जो काटत मम सीस ।२६ खाँव खाँव करि धाय सब हमहिं लगावत भोग ।१८ जगन्मात ! जगदम्बिके ! जगत, जननि जग-रानि । जदपि नारि दुख जानहीं मेरो सहित बिबेक । तुव सन्मुख तुव सुतन को सिर काटत क्यों जानि ।२७ पैते पति-मति मैं रंगी बरजहिं तिन्हैं न नेक ।१९ क्यों न खींचि के खड़ग तुम सिंहासन तें धाइ । मानुष-जन सों कठिन कोउ जन्तु नाहिं जग बीच । सिर काटत सुत बधिक को क्रोधित बलि ढिग आई।२८ बिकल छोड़ि मोहिं पुत्र लै हनत हाय सब नीच ।२० त्राहि त्राहि तुमरी सरन मैं दुखिनी अति अम्ब । वृथा जवन को इसहीं करि बैदिक अभिमान । अब लम्बोदर-जननि बिनु मोकों नहिं अवलम्ब ।२९ जो हत्यारो सोइ जवन मेरे एक समान २१ निर-अपराध गरीब हम सब बिधि बिना सहाय । धिक धिक् ऐसे धरम जो हिंसा करत बिधान । हे षटमुख-गजमुख-जननि तुम समझौ मम हाय ।३० धिक घिक ऐसो स्वर्ग जौ बध करि मिलत महान ।२२ पुत्रवती बिनु जानई को सुत-बिछुरन-पीर । शास्त्रन को सिद्धांत यह पुण्य सु पर-उपकार । यासों मोहिं अब दै अभय जननि धरावहु धीर ।३१ पर-पीड़न सों पाप कछु बढ़ि के नहिं संसार २३ एहि बिधि बहु बिलपत परी बकरी अति आधीन । जज्ञन में जप-जल बढि अस सुभ सात्विक धर्म । हे करुना-बरुनायतन द्रवहु ताहि लखि दीन ।३२ Gall shade Smame स्वरूप-चिन्तन दिसंबर सन् १८७४ ई० हरिश्चन्द्र चन्द्रिका में प्रकाशित । जय जज गिरवर-धरन जयति श्री नवनीत-प्रिय । नित नव निकुंज लीला-करन जय जय श्रीगिरिवरधरन।२ जयति द्वारिकाधीश जयति मथुरेश माल हिय । जय जय श्री नवनीत-प्रिय जय जसुदानंदन । जय जय गोकुलनाथ मदनमोहन पिय प्यारे । जय नंदांगन रिंगन कर जुवती-मन-फंदन । जय गोकुल-चंद्रमा सु बिट्ठलनाथ दुलारे । जय कृत मृगमद-तिलक भाल जय युक्त माल गल । श्री बालकृष्ण नटवर नवल श्री मुकुद दुख-द्वंद-हर । मुख मंडित दधि-लेप घुटुरुवन चलत चपल चल । स्वामिनि सह ललित तृभंग जय बाल ब्रह्म गोपाल जन-पालक केहरि करज हिय। गोपाललाल जय जयतिवर ।१ जदुनाथ नाथ गोकल-बसन जै जै श्री नवनीत-प्रिय ।३ जय जय श्री गिरिराज-धरन श्रीनाथ जयति जय । जय जय मथुरानाथ जयति जय भव-भय-भंजन । वेद-दमन जय नाग-दमन जय शमन भक्त-भय । जय प्रनतारति-हरन जयति जय जन-मन-रजन । जय श्री राधा-प्राणनाथ श्री वल्लभ प्यारे । भुज बिसाल सुभ चार भक्त-जन के रखवारे । श्री बिट्ठल के जीव जयति जसुदा के बारे । शंख चक्र असि गदा पद्म आयुध कर धारे । श्रीवल्लभ कुल के परम निधि श्री गिरिधर-प्रिय आनंदनिधि जयति चतुर्विध जूथपति। भक्तन के बहु दुख-दरन । गावत श्रुति गुन-गन-गाथ जय मथुरानाथ अनाथ-गति।४। UNDER भारतेन्दु समग्र २१४