पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२५७

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जब लौ सुमन सुवास पर मत्त भंवर संचार । लोहा गृह के काम मैं कलह दंपती माहि । जब लौ कामिनि-नयन पर होहिं रसिक बलिहार ।३४ बाद बुधनही मैं सदा तुव राजत रहि जाहिं ।३८ जब तौ तत्व सबै मिले गठे सबै परमानु । जाति एक सब नरन की जदपि बिबिध व्यौहार । जब लौं ईश्वर अस्तिता तब लौं तुम नरभानु ।३५ | तुमरे राजत लखि परै नेही सब संसार ।३९ जिओ अचल लहि राज-सुख नीरुज बिना विवाद । रसना इक आसा अमित कह लौं देहिं असीस । उदय अस्त जौं मेदिनी पालहु लहि सुख स्वाद ।३६ रहौ सदा तुम छत्र ते होइ हमारे सीस ।४० पहरू कोउ न लखि परै होय अदालत बंद । भ्रात मात सह सुतन जुत प्रिया सहित जुवराज । ऐसो निरुपद्रव करौ राज-कुँअर सुख-कंद ।३७ | जिओ जिओ जुग जुग जिओ भोगौ सब सुख-साज ।४१ भारत-भिक्षा* अहो आज का सुन परत भारत भूमि मैझार । चहुँ ओर आनंद-धुनि कहा होत बहु बार ।१ बृटिश सुशासित भूमि मैं आनंद उमगे जात । सबै कहत जय आज क्यों यह नहिं जान्यो जात ।२ बृटिश-राज-चिन्हन सजी नगरन-अटा अटारि । धुजा-पताका फरहरहिं सहसन आज संवारि ।३ गंग-जमुन न-गोदावरी-पथ हवै बै बहु जान । ख्यौं सब आवत है सजे देव-विमानसमान ।४ घर बाहर इत उत सबै सजे वसन मनि साज । चातक और चकोर से खरे अरे क्यों आज ।५ पूर्न कोरस मृदंगादि बाजे बजाओ बजाओ। सितारादि यंत्र सुनाओ सुनाओ । अरे ताल दै लै बढ़ाओ बढ़ाओ । बधाई सबै धाइ गाओ सुनाओ । कहाँ हैं रबानी मृदंगी सितारी । कहाँ हैं गवैये कहाँ नृत्यकारी । कहाँ आज मौलाबकस वाजपेई । कहाँ आज हैं क्षेत्रमोहन गुसाई । कहाँ भाट नाटकपती स्वागधारी । कहाँ नट गुनी चट कर सब तयारी । कहो रागिनी आज भारी जमाव । मिले एक लै मैं सु-गा३ बजावै । कहाँ भाँड कत्थक छिपे हैं बुहलाओ । मुबारक कहाओ बधाई गवाओ । कहाँ हैं सबै सुंदरी बार-नारी । कहो पेशवाजै सबैं आज भारी । लगै दून मैं आज आवाज प्यारी । सरगी बजै राग रंगी सँवारी । छिडै भैरवी सारंगी सिंध काफी । शाखा आवत मारत आज कुँअर बृटनहि सुखदानी । सुनहु न गगनहि भेदि होत जै जै धुनि-बानी ।६ जै जै जै बिजयिनी जयति भारत-महरानी । जै राजागन-मुकुट-मनी धन-बल-गुन खानी १७ जाकी कृपा-कटाक्ष चहत सिगरे राजा-गन । जा पद भारत-भुवन लुठत हवै बस कंपित मन ।८ आवत सोइ बृटन कुंअर जल-पथ सुनि एहि छन । ठाढ़ो भारत मग में निखरत प्रेम पूलक तन ।९

  • मई-सिम्बर १८७५ के हरिश्चन्द्र चन्द्रिका के सम्मिलित अंकों में छपी इस कविता को उस पत्र के

सम्पादक ने हेम चन्द्र बनर्जी की बंगला कविता की छापा पर लिखी कविता माना है । इसके बहुत से पद विजयिनी-विजय वैजयंती भारतवीरत्व में आ गये हैं जिन्हें यहाँ नहीं दिया गया है । छोटे प्रबध तथा मुक्तक रचनायें २१७