पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६

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  • ONE भारतेन्दु जी ने केवल लोकगीतों की रचना ही नहीं किी, लावानी बाजों के बीच बेठकर वे गाते भी थे। इससे लोगों का आकर्षण बढ़ा और लोक-साहित्य को प्रतिष्ठा प्राप्त हुई।

(६) काष्य भाषा के लिए ब्रजभाषा का चमत्कार भारतेन्दु काल तक और उसके बाद भी हिन्दी रचनाकारों पर छाया था । भारतेन्दु ने खड़ी बोली में नई चाल की रचनाएं तो लिखी थी, पर उन्हें खड़ी बोली में काव्य रचना की सफलता पर सुद विश्वास नहीं था। इसके लिए लगता है, उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिला। भारत मित्र में प्रकाशनार्थ उन्होंने खड़ी बोली की अपनी कुछ रचनाएं भेजी थी। सितम्बर सन् १८८१ के भारत मित्र के अंक में वे छपी थी। साथ में उनका यह पत्र भी छपा कि "प्रचशित साधु भाषा में कुछ कविता भेजी है । देखिएगा कि इसमें क्या कसर है और किस उपाय के आलम्बन करने से इसमें काव्य सौन्दर्य बन सकता है । इस सम्बन्ध में सर्व साधारण की सम्मति ज्ञात होने से आगे से वैसा परिश्रम किया जायेगा।" इस मन्तव्य से स्पष्ट है कि वह कविता के लिए साधुभाषा और उन भाषा के हिमायती थे। इस जन भाषा के लिए वे प्रयत्न करने के लिए भी तैयार थे, जब कि कविता के लिए उन्हें किसी प्रकार का प्रयत्न नहीं करना पड़ता था । ये आशुकवि थे । जब मौज आयी, कपिता हो गयी । घनानंद की यह उक्ति कि लोग है लाग कवित्त बनावत मोहि तो मेरे कवित्त बनावत ।" -भारतेन्दु पर बिल्कुल चरितार्थ होती है।... भारतेन्दु का निर्माण ही भारतेन्दु की कविता कर रही थी।... ऐसा व्यक्ति भी साधुभाषा में रचना के लिए व्यग्र था। वस्तुतः भाषा के मामले में भारतेन्दु की अवधारणा काफी साफ थी । वे निज भाषा के विकास के हिमायती थे। उनका नारा था - निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल । बिन निग भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल ।। उनकी "निवभाषा" केवल हिन्दी नहीं थी। वह बंगालियों के लिए बंगला, मराठियों के शिए मराठी, पंजाषियों के लिए पंजाबी थी तो दूसरे के लिए दूसरी थी। भाषा सन्दर्भ में उनका दिमाग बहुत साफ था: - प्रचलित करहु अहान में,निज भाषा करिजल्न । राजशज दरबार में, फैलाबहु यह रन । भाषा सोपहु आपनी, होई सबै एकत्र । पढ़तु पढ़वह लिचहु मिलि, छपवायहु कछु पत्र । सभी भाषा की उन्नति चाहते हुए भी वे उर्दू के कुछ खिलाफ लगते हैं । इसके दो मुख्य कारण एक तो भाषाई संदर्भ में उनके परम विरोधी शिवप्रसाद "सितारे हिन्द" का उद्र के प्रति लगाव । उनका व्यक्तिगत विरोध उर्दू के दुराव का कारण बना । दुसरे उई भाषी लोगों की साम्प्रदायिकता भी उन्हें उर्द से दर खींच ले गयी । यद्यपि वे स्वयं उर्दू में कविताएं लिखते थे । उनका उपनाम "रसा" man FOR चौबीस