पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६१

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श्री पंचमी फरवरी १८७५ की 'कवि वचन सुधा' में प्रकाशित श्री पंचमी प्रथम बिहार-दिन मदन महोत्सव भारी । जसुमति फगुआ देत सबनि कों भूषन बसन संवारी । भरन चलीं सब मिलि पीतम को घर घर तें ब्रज-नारी । | सो सुख सोभा निरखि होत तहं 'हरीचंद' बलिहारी । नव-सत साज-सिंगार सजे कंचुकि सुदृढ़ संवारी । अंबर उमत अबिर अरगजा चलत रंग पिचकारी । लकति तन-दुति नवजोबन तें तापे तनसुख सारी । डफ बाजत गाजत मनु मेरी जीति जगत-गति सारी । गावत गीत उमगि ऊंचे सुर मनहुँ मदन-मतवारी । बहुंची नंद-भवन सब मिलि के नव नव जोबनवारी । गलिन गलिन प्रति पायल झमकति निरख्यौ मुख ससि प्रान-पिया को दीनो तन-मन वारी । दमकति तन दुति-न्यारी । कियो खेल आरंभ प्रथमहीं पिय सों भानु-कुमारी । मदन दुहाई फेरति डोलै बिरद बसंत पुकारी । केसर छिरकि चंद मुख माइयो आम-मौर सिर धारी । सजे सैन सी उमड़ी आवहिं जीतन को गिरधारी । तिय के भरत खेल माच्यौ मधि नर-नारिन के भारी । ललिता, चंद्रभगा चंद्रावलि, ससिरेखा सुकुमारी । | उड़यो रंग केसर चहुँ दिसि ते भइ अबीर अँधियारी । स्यामा, मामा, बाम, बिसाखा, चम्पक-ललिका प्यारी । निलज भरत अंकम आपसु मैं देत उचारी गारी । सब मधि राधा सुछबि अगाधा श्रीबृषभानु-दुलारी । हो हो करि धावत गावत मिलि देत परस्पर तारी । कर मैं लै चम्पक तबला सी सोहत प्रान-पियारी । SERTA अथ श्री सर्वोत्तम-स्तोत्र (भाषा) लीथों में छपे इसके प्रथम संस्करण की सूचना 'कवि वचन सुधा' के सं. १९३४ सन् १८७७ । के अंक द्वारा दी गयी थी। जयति आनंद रूप परमानंद कृष्णमुख कृपानिधि दैवि उतारकारी । स्मृति मात्र सकल आरतिहरन गूढ़ गुन भागवत अथ लीनो बिचारी ।। एक साकार परब्रह्म स्थापन-करन चारहु वेद के पारगामी । हरन मायावाद बहुवाद नास करि भक्ति-पथ-कमल को दिवस स्वामी ।२ शूद्र ललना लोक उद्धरन सामर्थ गोपिकाधीश कृत अंगिकारी। बल्लभी कृत मनुज अंगिकृत जनन पै धरन मर्याद बहु करुनधारी ।३ जगत-व्यापक दान करत सब वस्तु को चरित जाके सकल अति उदारा । आसुरी बनन मोहन करन हेत यह ब्याज सों प्रकृति इव रूप धारा ।४ अगिनि अवतार बल्लभ नाम शुभ रूप सदा सज्जनन-हित करत जानी। लोक-शिक्षा-करन कृष्ण की भक्ति करि । निखिल जग इष्ट के आपु दानी ।५ छोटे प्रबध तथा मुक्तक रचनायें २२१