पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६४

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मति 90 (सर्व लक्षननि-संपन्न श्रीकृष्ण को ज्ञान प्रभु देत गुरु रूप धारी । सदा सानद तुंदिल पादल-सरिस नयन जुग जगत संतापहारी । कृपा करि दृष्टि की वृष्टि बर्पित किए दासिका दास पति परम प्यारे । रोग दंग करन मुरछित भक्ति देषिगन भक्तजन चरन सेवित दुलारे । भक्तजन सुख-सेव्य अति दुराराध्य दुरलभ कुंज पद अग्र तेजधारी । वाक्य रस-करन पूरन सकल जनन मन भागवत-पय-सिंधु-मथनकारी । सार ताको बनि रास बनितान के भाव सों पूरित सुभेसा। होत सनमुख देत प्रेम श्रीकृष्ण को अविमुक्ति देत लखि बहत देसा ।९ रास लीकैक तात्पर्य्य-मम रूप सुनि देत करि कृपा बहु कथा ताकी । त्यागि सब एक अनुभव करहु बिरह को यह उपदेस बानी सु जाकी ।१० भक्ति आचार उपदेस नित करत पुनि कर्म मारग प्रवर्तन सु कीनो । सदा यागादि मैं भक्ति मारग एक करहु साधनहि उपदेस दीनो ।११ पूर्ण आनंद-माय सदा पूरन काम । वाक्य-प्रति निखिल जग विबुध भूपा । कृष्ण के सहस शुभ नाम निज मुख कहे भक्ति पर एक जाको सरूपा ।१२ भक्ति आचार उपदेस हित शास्त्र के वाक्य नाना निरूपन सु कीने । भक्त-जन सदा घेरे रहत जिनन निज प्रेम-हित प्रान-प्रन त्यागि दीने ।१३ निज दास अर्थ-साधन अनेकन किए जदपि प्रभु आप सब शक्तिकारी । एक मुव लोक प्रचलित करन भक्तिपथ कियो निज वंश पितु रूप धारी ।१४ निज विमल वंस में परम माहात्म्य प्रभु धर्यो सब जगत संदेहहारी । पतिव्रता पति परलौकिकैहिक दान करन अधिकार जन को बिचारी ।१५ गूढ़ हृदय निज अन्य अनभक्त को सकल आशय आपु कहत प्यारे । जग उपासन आदि मारगादीन मैं मुग्ध जन-मोह के हरनवारे ।१६ सकल मारगन सों भक्ति मारग वीच अति विलक्षण सु अनुभवहि मान । पृथक कहि शरण को मार्ग उपदेस करि कृष्ण के हृदय की बात जाने ।१७ प्रति क्षण गुप्त लीला नव निकुंज को भरि रही चित्त मैं सदा जाके । सोइ कथा स्मरण करि चित्त आक्षिप्तवत भूलि गइ सकल सुधि आये ताके ।१८ ब्रज जिय व्रजवास अतिहि प्रिय पुष्टि लीला-करन सदा एकांत-चारी । भक्तजन सकल इच्छा सुपूरन-करन अतिहि अज्ञात लीला बिहारी ।१९ अतिहि मोहन निरासक्त जग मक्त्त मात्रासक्त पतित पावन कहाई। जस-गान करत जे भक्त तिनके हृदय कमल मैं वास जाको सदाई ।२० स्वच्छ पीयूष लहरी सदृस निज जसनि तुच्छ करि अन्य रस दिये बहाई । पर रूप कृष्ण-लीला अमृत रस अखिल जन सीचि प्रेम में दिए मिंजाई २१ सदा उत्साह गिरिराज के वास में सोई लीला प्रेम-पूर गाता । यज्ञ हवि हरत पुनि यज्ञ आपुहि करत अति बिसद चारहू फल के दाता १२२ सुम प्रतिज्ञा सत्य जगत उद्वार की प्रकृति सौ दूर बहु नीति-ज्ञाता । कीर्ति वर्दन करी सूत्र को भाष्य करि कृष्ण इक तत्व के ज्ञान-दाता ।२३ तूल मायावाद दहन-हित अग्नि वपु ब्रह्म को वाद जग प्रगट कीनो । निखिल प्राकृत रहित गुनन भूषित सदा मंद मुसुकानि मन चोरि लीनो ।२४ तीनहूँ लोक भूषन भूमि भाग्य वर सहज सुंदर रूप बेद-सार । सदा सब भक्त पार्थित चरन कमल रज धन रूप नौमि लक्ष्मण-कुमार ।२५ भारतेन्दु समग्र २२२