पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६५

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एक सत आठ ए नाम अभिराम नित प्रम सों जे जगत माहि गावै। परम दुरलभ कृष्ण-अधर-अमृत-पान स्वाद करि सुलभ ते सदा पावै ।१६ नाम आनंदनिधि वल्लभाधीश को बिष्टलेश्वर प्रकट करि दिखायो । छोड़ि साधन सकल एक यह गाइके परम संतोष 'हरिचंद' पायो ।२७ इति श्री मविट्ठलनाथ-चरण-पंकज-पराग-लेपना- पसारितनिखिलकल्मष हरिश्चन्द्रकृत भाषान्तरित कीर्तनस्वरूप श्री सर्वोत्तम स्तोत्र समाप्तिमगमत् ।। निवेदन-पंचक वर्षा न होने पर सोमवार आसाढ़ शुक्ल १२ सं. १९३३(सन् १८८६) की'कवि वचन सुधा' में यह रचना प्रकाशित की गयी थी। इसके अगले अंक में सूचना है कि जिस दिन यह कविता प्रकाशित हुई उसी दिन वर्षा हुई। श्याम घन अब तो जीवन देहु । तपत प्रचण्ड सूर निरदय हवे दूबहु हाय झुरानी । दुसह दुखद दावानल ग्रीषम सों बचाइ जग लेहु । 'हरीचंद' जग दुखित देखि के द्रवहु आपुनो जानी ।३ तनावर्त नित धूर उड़ावत बरसौ कह ना मेहु । कितै बरसाने-वारी राधा । 'हरीचंद' जिय तपन मिटाओ निज जन मैं करि नेहु ।१ हरहु न जल बरसाइ जगत की पाप-ताप-मय बाधा । श्याम घन निज छबि देहु दिखाय । कठिन निदाघ लता वीरुध तृन पसु पछी तन दाधा । नवल सरस तन साँवल चपल पीताम्बर चमकाय । चातक से सब नभ दिसि हेरत जीवन बरसन साधा। मुक्तमाल बगजाल मनोहर दृगन देहु बरसाय । तुम करुनानिधि जन-हितकारिनि-दया-समुद्र अगाधा। श्रवन सुखद गरजनि बसी धुनि अब तो देहु सुनाय । 'हरीचंद' यही तें सब तजि तुव पद-पदुम अराधा ।४ ताप पाप सब जग को नासौ नेह-मेह बरसाय । जगत की करनी पै मति जैये । 'हरीचंद' पिय द्रवहु दया करि करुनानिधि ब्रजराय ।२] करिके दया दयानिधि माधो अब तो जल बरसैये । श्याम घन अब तो बरसहु पानी । देखि दुखी जग-जीव श्याम घन करि करुना अब ऐये। दुनित सबै नर नारी खग मृग कहत दीन सम बानी । 'हरीचंद' निज बिरद याद करि सब को जीव बचेये । 0 OTELS छोटे प्रबध तथा मुक्तक रचनायें २२३