पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६६

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सन् १९९८ मानसोपायन अर्थात् युबराज श्रीप्रिन्स आफ वेल्स के मारतवर्ष में शुमागमन के महोत्सव में हिन्दी, महाराष्ट्री, बंगाली आदि विविध देश भाषा तथा फारसी, अंगरेजी, आदि विदेश भाषा और संस्कृत छन्दों में अनेक कवि पंडित चतुर उत्साही राजभक्त जन निर्मित कविता संग्रह रूपी उपायन । भारत राजराजेश्वरी नन्दन युवराज कुमार प्रिंस आफ वेल्स के चरण कमलों में संस्कृत भाषादि अनेक कविता ग्रन्थाकार तथा श्रीयुक्त राजकुमार ड्यूक आफ एडिनबरा को सुमनोजिलि समर्पण कर्ता हरिश्चन्द्र समर्पित तथा तखारैव संग्रहीत और प्रकाशित। "रत्नाकरोति भवनं गृहिणी च पया देयं किमस्ति भवते जगदीश्वराय॥ गोपीगृहीतमनसो मनसो स्तिदैन्यम् दत्तं मया निजमनस्तदिदं गृहाण।।" पटना- 'खंगविलास-प्रेस-बांकीपुर। साहब प्रसाद सिंह ने मुद्रित किया। मानसोपायन अग्रजोपम स्नेह-पूजास्पद प्रिय कुमार, क्या आनंद हुआ है, वह कौन जान सकता है । प्रिय ! जब आपसे कुछ भी कहने की इच्छा करते हैं तो हम सब स्वभावसिद्ध राजभक्त है । बिचारे छोटे पद के चित्त में कैसे विविध भाव उत्पन्न होते हैं। कभी | अंगरेजों को हमारे चित्त की क्या खबर है, ये अपनी ही | मारतवर्ष के पुरावृत्त के प्रारंभ काल से आज तक जो तीन छटॉक पकाने जानते है । अतएव दोनों प्रजा एक- बड़े बड़े दृश्य यहाँ बीते है और जो महायुद, महा शोभा रस नहीं हो जाती ; आप दूर बसे, हमारा जी कोई और महा दुर्दशा भारतवर्ष की हुई है, उनके चित्र नेत्र के देखनेवाला नहीं, बस छुट्टी हुई । आपके आगमन के सामने लिख जाते हैं । कभी हिंदुओं की दशा पर करुणा केवल स्मरण से हृदय गद्गद् और नेत्र अश्रुपूर्ण हमी उत्पन्न होती है, कभी स्नेह कहता है कि हाँ यही अवसर लोगों के हो जाते है और सहज में आप पर प्राण | है खूब जी खोल कर जो कुछ हृदय में बहुत काल से भाव न्योछावर करनेवाले हमी लोग हैं, क्योंकि राजभक्ति और उद्गार संचित है, उनको प्रकाश करो । पर साथ भरतखंड की मिट्टी का सहज गुण और कर्तव्य धर्म है, ही राजभक्ति और आपका प्रताप कहता है कि खबरदार पर कोई कलेजा खोल कर देखनेवाला नहीं । जाने दो हद से आगे न बढ़ना, जो कुछ बिनती करना बड़ी नम्रता इन पचड़ों से क्या काम । जब आप का आगमन सुना और प्रमाण के साथ । इधर नई रोशनी के शिक्षित युवक तभी से आपके यश-रूपी कीर्तिस्तंभ को आपके | कहते है - "दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो' । सुनते | सुभागमन के स्मरणार्थ स्थापन करने की इच्छा थी, पर सुनते जी थक गया, कोई मस्तिष्क की बात कहो । आधि-व्याधि से वह सुयोग तब न बना । यद्यपि उधर प्राचीन लोग कहते हैं हमारे यहाँ तो 'सयदेवमयो कविता-कलाप तो उसी समय समाचार पत्रों में सूचना नृप :' लिखा ही है जितना बन सकै इनका आदर करो। देकर एकत्र किया था, परन्तु उनका प्रकाश न भया था कितने यहां के निवासी ऐसे मूढ़ है कि इन बातों को अब सो अब जब कि हम दीनों की अवलंब अब श्रीमती तक जानते ही नहीं । जानें कहां से, हजारों बरस से महारानी ने भारत-राजराजेश्वरी का पद ग्रहण किया राज-सुख से वंचित है । आज तक ऐसा शुभ संयोग | और इस महत् महान से भारतवर्ष को अपनी अपार कृपा आया ही न था कि आप सा सुखद स्वामी इनके नेत्र से सहज कृतकृत्य किया तो इसी शुभ मंगल अवसर पर गोचर हो । इसी से तो आप के आगमन से हम लोगों को यह पुस्तक प्रकाश करके हम भी आपके कोमल चरणों, भारतेन्दु समग्र २२४