पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२६८

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2920 पं. बापूदेव शास्त्री, पं. सखाराम भट्ट, पं. वेंकटेश गणेशदत्त, पं. बस्ती राम द्विवेदी, पं. दामोदर भरद्वाज शास्त्री, पं. विष्णुदत्त, पं. राजाराम गोरे, पं. कैलाशचंद्र | पं. शिवकुमार मिश्र पं. गंगाधर शास्त्री तैलंग, पं. शिरोमणि, पं. बालकृष्ण भट्ट, पं. गदाधर शर्मा रामकृष्ण पटवर्धन, पं. राजाराम, पं. राम मिश्र, पं. मालवीय, पं. आबा शास्त्री हलदीकर, पं. बिहारी शर्मा | सरयूप्रसाद, पं. शीतलाप्रसाद त्रिपाठी, श्री मकरध्यज' चतुर्वेदी, पं. गोपाल शर्मा, पं. लक्ष्मीनाथ द्रविड़, पं. सिंह, पं. कन्हैयालाल पांडेय, पं. बेचनराम त्रिपाठी, रामचंद्र शास्त्री, पं. रामशरण त्रिपाठी, पं. रामचंद्र, | पं. राधाकृष्ण, पं. कालीप्रसाद शिरोमणि, पं. पं. अनंतराम भट्ट, पं. चित्रधर मैथिल, पं. गोविंद | लक्ष्मीनाथ कवि, पं. माधोदास और पं. राधाकृष्ण ने शर्मा, पं. माधव राम, पं. भवानीप्रसाद, पं. रामप्रसाद संस्कृत में श्लोक लिखे थे, जो इकतीस पृष्ठों में मिश्र, पं. गोविन्द मिश्र, पं. श्रीधर मैथिल, पं. छपे थे। शालिग्राम, पं. हरिनाथ द्विवेदी, गोस्वामी रामगोपाल इसके अनंतर सत्रह पृष्ठों में तालिब, अहकर, शर्मा, पं. ईश्वरदत्त, पं. दामोदर शास्त्री, पं. रामकृष्ण ! संतलाल, हसन, नज्म, अमीर और जिया की उर्दू, पटवर्धन, पं. कान्तानाथ भट्ट, पं. शिवनारायण शर्मा | ४८ पृष्ठों में बंगला, ४ पृष्ठों में अंग्रेजी और ८ पृष्ठों ओझा, पं. विश्वनाथ शर्मा, पं. गोविंद भरद्वाज, | में तेलगू आदि भाषाओं की रचनाएं संगृहीत हैं। पं. राम ब्रह्म शास्त्री, पं. विश्वनाथ शास्त्री, पं. सन् १८७६ ई. में प्रिंस ऑफ वेल्स ने काशी में परमेश्वर मैथिल, नारायण पं., पं. विजयनाथ, पं. अस्पताल की नींव डाली थी। जिसका नाम किंग नंदकुमार शर्मा, पं. सोहन शर्मा, पं. मनु शास्त्री एडवर्ड हास्पीटल रखा गया था । यही नाम बदल कर अष्टपुत्र, प. विश्वेश्वरनाथ, पं. उदयानंद शर्मा, | शिवप्रसाद गुप्त अस्पताल हुआ । उस पर तीन तारीखें पं. राजेश्वर द्रविड़, पं. केशव शास्त्री पर्वतीय, पं. भी उर्दू में है और अमीर ने हरिश्चंद्र की प्रशंसा भी काशीनाथ भट्ट, पं. बापू शर्मा, पं. शीतला प्रसाद, पं. मुसबस के अंत में की है। प्रातः स्मरण स्तोत्र* रचना-काल-सन्-१८७७ सुमिरौं राधाकृष्ण सकल मंगलमय सुंदर । श्री चंपकलतिका, इंदुलेखा राधा-सहचरि सहित । सुमिरौं रोहिनि-नंदन रेवतिपति कर हलधर । श्री स्वामिनि की आठौ सखी नित सुमिरौ करि प्रेम हितार जसुदा, कीरति, भानु, नंद, गोपी-समुदाई । अष्ट सखा-छप्पय बृन्दावन गोकुल गिरिवर बृज-भूमि सुहाई । कालिन्दी कलि के कलुष सब हारिनि सुमिरौं प्रेम-बल। श्रीदामा सुखधाम कृष्ण को परम प्रान-प्रिय । ब्रज गाय बच्छ तृन तरुलता पसुपंछी सुमिरौं सकल।१ वसुदामा शुभ नाम दाम मनिमय जाके हिय । सुबल ब्रबल परिहास-रसिक मंगल मधु मंगल | श्री गोपीजन-रमण लोक-सुखद ब्रज-लोक कृष्ण अनुरूप कृष्ण-फल । सुमिरौं श्री चंद्रावली मोहन-प्रान पियारी । अरजुन-पालक गोवत्स बहु ऋषभ बृषभ जूथाधिपति । श्री ललिता रस-सलिता परम जुगल हितकारी । हरिजू के आठ सखा सदा सुमिरत मंगल होत अति ।३ रस-शाखा हरिप्रिया विशाखा पूरन-कामा । द्वारिका की लीला स्मरण परम सभागा चंद्रमगा, रस-धामा भामा । धाम द्वारिका कनक-भवन जादव नर-नारी ।

  • हरिप्रकाश यंत्रालय में पत्राकार छपा था, पर उसमें समय नहीं दिया है । कवि-वचन

सुधा (९-४-१८७७) में छपने की सूचना निकली थी। भारतेन्दु समग्र २२६