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MONJAN
- hokar था। इन उई रचनाओं में भी उनकी हार्दिकता और गम्भीरता किस हद तक थी, इसका एक ही उदाहरण काफी है।
तेरी रहमत का उम्मीदवार आया हूं. सर द्वाये कफन से शर्मसार आया है आने न दिया बारे गुनह ने पैदल, ताबूत में कांधे पर सवार आया हूँ। उई के प्रति इतना व्यक्तिगत लगाव होने के बाद भी वह उर्दू की मौत पर स्यापा पढ़ते है । अरबी, फारसी, पश्लो, पंजाबी आदि कई भाषाएं उर्दू को रो रही हैं: है है उर्दू हाय-हाय । कहाँ सिधारी हाय-हाय ।। मेरी प्यारी हाय-हाय । मुंशी मुल्ला हाय-हाय ।। बल्ला विल्ला हाय-हाय । रोये पीरे हाय-हाय ।। डादी नोचे हाय-हाय । दुनिया उल्टी हाय-हाय ।। रोजी बिल्टी हाय-हाय । सब मुखतारी हाय-हाय ।। किसने मारी हाय-हाय । खबरनसीबी हाय-हाय ।। दांत पीसी हाय-हाय । एडिटर पौसी हाय-हाय ।। यात फरोशी हाय-हाय । वह लस्सानी हाय-हाय ।। चरब जवानी हाय-हाय । शोख बयानी हाय-हाय ।। फिर नहीं आनी हाय-हाय ।। भारतेन्दु उर्द वालों की साम्प्रदायिकता से बेहद दुखी थे । वे इसे देश हित के विरुद्ध समझते थे। उन्होंने मुसलमान भाइयों को सलाह दी थी: "मुसलमान भाइयों को भी उचित है कि इस हिन्दुस्तान में बसकर वे लोग हिन्दुओं को नीचा समझना छोड़ दें। ठीक भाइयों की भांति हिन्दुओं से परताव करें, ऐसी बात जो हिन्दुओं का जी दुखाने वाली हो, न करें । घर में आग लगे तब जिठानी-दयोरानी को आपस में डाह छोड़कर यह आग बुझानी चाहिए । जो बात हिन्दुओं को नहीं मयस्सर है कर्म के प्रभाव से मुसलमानों का सहज प्राप्त है। उनमें जाति नहीं, खाने पीने में चौका हा नहीं, विलायत जाने में रोक टोक नहीं । फिर भी बड़े सोच की बात है कि मुसलमानों ने अभी तक अपनी दशा नहीं सुधारी । अभी तक बहुतों को यही ज्ञात है कि दिल्ली लखनऊ की बादशाहत कायम है। यारों वे दिन गये । अब आलस हठधर्मी यह सब छोड़ो । चलो हिन्दुओं के साथ तुम भी दौड़ोगे । एक-एक दो होंगे । पुरानी बातें दूर करों । ...अपने लड़कों को ... अच्छी से अच्छी तालीम दो । पिनशिन और वजीफा या नौकरी का भरोसा छोड़ो । लड़कों को रोजगार सिखलाओं । विलायत भेजो । छोटेपन से मेहनत करने की आदत दिलाओं । सौ महलों के लाड़प्यार, दुनिया से बेखबर रहने की राह मत दिखलाओ।" इतना होने पर भी वे हिन्दू मुस्लिम का रिश्ता "दयोरानी जेठानी का ही मानते थे। वे हिन्दु मसलमानों को आपस में लड़ाने की अप्रेजों की नीति को अच्छी तरह समझते थे । अन्त तक वे जातीय एकता के लिए प्रयत्नशील रहे । इस जातिय एकता की भावना का आधार उनकी व्यापक राष्ट्रीयता थी, जो सर्वधर्म सम भाव पर आधृत थी । किसी भी धर्म की अच्छाई को वे नजरअंदाज नहीं करते थे। उन्होंने करान का भी हिन्दी में अनुवाद किया था । उनकी धार्मिक सहिष्णुता कबीर, दादू, नानक रैदास आदि को भी परम वैष्णव मानती थी। पच्चीस -Here RO Green