पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२७५

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सो पूजी तुम बिजयिनी महरानी बनि ठौर । ३ विजय मित्र जय विजयपति अजय कृष्ण भगवान । करहिं बिजयिनी विजय नित दिन दिन सह कल्यान ।४ नारी दुर्गा रूप सब ? राजा कृष्ण समान २ । शक्ति शक्तिमत तुम दोऊ यासों अतिहि प्रधान ।५ और देश के नृप सबै कहवावत महराज । सो मोटी जिय सत्य तुम हवै के राजधिराज । होइ भारतााधीश्वरी आरज-स्वामिनि आज । तुम द्वै३ आरज जाति कह मिलयो धन यह राज ।७ रंग-चित्र -दुति करि बैरिझट --मुख मसि लाय । -पीरजन-लित -हि इत पठवाय 1१ श्री राज-राजेश्वरी-स्तुति संस्कृत छन्द में आर्यावर्त जमर्त्य भाग्य निवहेभूयो धुनोदित्वरैः | स्वीकृत्या जनयन्मुदं मनसिन : सा.येश्वरीति प्रथाम् ।३ श्रीमत्सर्वगुणाम्बुधेर्जनमनो वाणी विदूराकृते - | नित्यानंदधनस्य पूर्ण करुणा सारैर्जनान् सिंचित : शक्ति: श्रीपरमेश्वरस्य जनताभाग्यैरवाप्तोदया साम्राज्यैकनिकेतनं विजयिनी देवी वरी बुध्यते ११ नानाद्वीप-निवासिनो नृपतय: स्वैरुत्तमाइ.गैर्नतै | रादेशाक्षरमालिकां यदुदिता मालामिवाबिनति । | यत्कीर्ति : शरदिंदुसुन्दरचिाप्नोति कृत्स्ना-महीं । सेय सर्व जनातिगस्वविभवा कासा गिरा गोचरां । २ कर्णाकर्णिकया गते श्रुतिपथं वार्ता मृते स्मिन्वयं । विन्दामो यममन्दमात्तपुलका आनंदधु संततम् । अप्राप्यातितनौ तनाववसरं तेनेव संचोदिता: । श्रीमत्या: परमेश्वराचिरतर संप्रार्थयाम : शिवम् ।४ दीनानाथ जनावनोद्यतमना मानादिनानाविध- । श्रीमत्सर्वगुणावनिर्नयघना संमोदयित्री "बुधान् । जीयादुज्ज्वल कीर्तिरातिशमिनी मूर्ति : परस्ये शितु : पुत्रैरात्मसमै : समं विजयिनी देवी सहस्त्रं समा : ।५ एषा यद्यपि सार्वभौमपदवी प्राप्ता प्रतापैनि- वैरिव्रातमहीधराशनिसमै पालनैकवतैः । गजल रचना काल सन् १८६७ होवे । भावये तारीख एक इस्तूद में है शेखो बिरहमन दोनों । सिजद : हनको उन्हे जुन्नार मुबारक होवे । [विक्टोरिया शाहेशाहान हिन्दोस्तान ] मुजदऐ दिल कि फिर आई है गुलिस्ताँ में बहार । उसको शाहनशही हर बार मुबारक होवे । मैकशो खानये खुम्मार मुबारक होवे। कैसरे हिंद का दरबार मुबारक होवे । दोस्तों के लिये शादी हो गुलज़ार मुबारक होवे । बाद मुखत के है देहली के फिरे दिन या रब । खार उनको इन्हें गुलज़ार मुबारक होवे । तख्त ताऊस तिलाकार मुबारक बाग़वाँ फूलों से आबाद रहे सहने चमन । ज़मज़मों ने तेरे बस कर दिए लब बंद 'रसा' । बुलबुलो गुलशने बे-खार मुबारक होवे । यह मुबारक तेरी गुफ्तार मुबारक होवे । १. स्त्रिय : समस्ता : सकला जगत्सु-दुर्गा पाठ । २. नराणां च निराधिप:- श्री गीता । ३. हिंदू और अंग्रेज । ४. (पीरे) दुति करि बैरि झट (कारे) मुख मसि लाय । (हरे) पीर जन (नील) लित (लाल) हि इत पठवाय । छोटे प्रबध तथा मुक्तक रचनायें २३३