पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२७८

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श्री नाथ -स्तुति (चना काल सन् १८६७ छप्प हुत । जय जय नंदानंद-करन बृषभानु-मान्यतर । जयति यशोदा-सुअन कीर्तिदा कीर्तिदानकर । जय श्री राधा-प्राण-नाथ प्रणतारति-भजन । जय बूंदाबन-चंद्र चंद्रवदनी-मनरंजन । जय गोपति गोपति गोपपति गोपीपति गोकुल-शरण । जय कष्ट-हरण करुनाभरण जय श्री गोवर्द्धन-धरण ।१ जय जय बकी-बिनाशन अघ-बक-बदन-विदारण । जय बूंदाबन-सोम व्योम-तमतोम-निवारण । जयति भक्त-अवलंब प्रलम्ब प्रलम्ब-बिनासन । जय कालिय-फन प्रति अति द्रुति गति नृत्य प्रकाशन । श्रीदाम-सखा घनश्याम-बपु वाम-काम-पूरन-करण । जय ब्रह्मधाम अभिराम रामानुज श्रीगिरिवर-धरण ।२ जयति बल्लभी-बल्लभ बल्लभ बल्लभ-बल्लभ । जय पल्लवदुति अघर भल्ल बरजित कटाक्ष प्रभ । उर-कृत मल्ली माल जयति ब्रज पल्ली-भूषन । ब्रजतरु-बल्ली-कुंज-रचित' हल्लीश मुदित मन । जय दुष्ट-काल बनमाल गर भक्तपाल गजचाल-चय । कृत ताल नृत्य उत्ताल गति गोप-पाल नंदलाल जय ।३ जय धृतवरहापीढ़ कुपलयापीड़ पोड़कर । चूर करन चानूर मुष्टिबल मुष्टि-दर्पदर । जयति कंस विध्वंस-करन बिधु-वंस-अंसधर । परम हंस प्रिय अति प्रशंस अवतंस लसित वर । जय अनिर्वाच्य निर्वाणप्रद नित अर्वाच्यहु प्राच्यतर । दुर्वारार्बुदकर्बुरदलन श्रुति-निर्वादित ब्रह्म-वर ।४ जयति पार्वती-पूज्यपूज्य पतिपर्व दत्त सुख । पांडबगुर्वीत्रातोर्वीपति सर्वरीश मुख। हृतसुपर्व बृषपर्वादिकबर्बरदर्वी जय अथर्वनुत गान्धर्वीयुत गन्धर्व-स्तुत । दुर्बासाभाषित सर्वपति अर्ब खर्ब जन-उद्धरण । जय शक्रगर्वकृत खर्व पर्वत पूजित पर्वतधरण ।५ जय नर्तनप्रिय जय आनत-नृपति-तनया-पति । तृनावर्तहर कृपावर्त्त जय जयति आर्तगति । कार्तस्वर-भूषण-भूषति धार्तराष्ट्र-दर । स्मार्तबृन्द-पूजित जय कार्तिक पूज्य पूज्य-तर । चय वर्हविराजित सीसवर गर्हदीनजन-उदरण । जय अर्ह अहर्निशिदुखदरण जय श्रीगोवर्द्धनधरण ।६ दोहा यह खट सुंदर खटपदी सुमिरि पिया नंदनंद । हरिपद-पंकज-खटपदी बिरची श्री हरिचंद । जय CUSTOMER मूक प्रश्न रचना काल सन् १८७७ छप्पय दस मुद्रा, मणि ग्यारह, बारहमो मिश्रित लहि । जीव एक, दै मृतक वनस्पति तीजो जानो । औषध तेरह, कृत्रम चतुरदस, पन्द्रह लेखन सकल । धातु चतुर्थी, शून्य पांच. जल छठयों मानो । 'हरिचंद' जोड़ि दोहान को कहहु प्रश्न-फल अति रस सातों, आठवों पारथिन, नवों बसन कहि । विमल ।* इस छप्पय में पन्द्रह वस्तु हैं, यथा - जीव, मृतक, वनस्पतिए धातु, शून्य, जल, रस, पार्थिव, वस्त्र, द्रव्य, मणि, मिश्रित, औषध, कृत्रिम और लेख । इन्हीं पन्द्रहों में सारे संसार की वस्तु आ गई । जीव, भारतेन्दु समग्र २३६