पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२८१

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पूर्ण कोरस फूस-हृदय-पत्री पर बरबस । लिखै-लोह लेखनि भारत-जस ।१७" अरे ताल दै लै बढ़ाओ। सबै धाइ कै राग मारू सुगाओ ।६ आरम्म आरंभ परिकर कटि कसि उठौ धनुष पै धरि सर साधौ । केसरिया बाना सजि कर रन-कंकन बांधो ।१८ 'कहाँ सबै राजा कुँअर और अमीर नवाब । जासु राज सुख बस्यौ सदा भारत भय त्यागी । कहौ आज मिल सैन में हाजिर होहु सिताब ।७ जासु बुद्धि नित प्रजा-पुंज-रंजन महं पागी ।१९ धाओ धाओ बेग सब पकरि पकरि तरवार । जो न प्रजा-तिय दिसि सपनेहुँ चित्त चलावै ॥ लरन हेत निज सत्रु सों चलहु सिंधु के पार ।८ | जो न प्रजा के धर्महि हठ करि कबहुँ नसावें ।२० चढ़ि तुरंग नव चलहु सब निज पति पाछे लागि । बाँधि सेतु जिन सुरत किए दुस्तर नद नारे । "उडपति सँग उडुगन सरिस नृप सुख सोभा पागि"।९ रची सड़क बेधड़क पथिक हित सुख बिस्तारे १२१ याद करहु निज बीरता सुमिरहु कुल-मरजाद । ग्राम ग्राम प्रति प्रबल पहारू दिए बिठाई। रन-कंकन कर बाँधि के लरहु सुभट रन-स्वाद ।१०| जिन के भय सो चोर बृन्द सब रहे दुराइ ।२२ बज्यो बृटिश डंका अबै गहगह गरजि निसान । नृप-कुल दत्तक-प्रथा कृपा करि निज यिर राखी । कंपे थरथर भूमि गिरि नदी नगर असमान ।११ भूमि कोष की लोभ तज्यौ जिन जग करि साखी ।२३ शाखा करि वारड-कानून अनेकन कुलहि बचायो । विद्या-दान महान नगर पति नगर चलायो ।२४ राज-सिंह टे सबै करि निज देश उजार । सब ही बिधि हित कियो बिबिध बिधि नीति सिखाई। लरन हेत अफगान सों धाए बाँधि कतार ।१२ अभय बाँह की छाँह सबहि सुख दियो सोहाई ।२५ जिनके राज अनेक भाँति सुख किए सदाहीं । सुन्दर सैना सिबिर सजायो । समरभूमि तिन सों छिपनो कछु उत्तम नाहीं ।२६ मनहु बीर रस सदन सुहायो । जिन जवनन तुम धरन नारि धन तीनहुं लीनो । छुटत तोप चहुँ दिसि अति जंगी । तिनहुँ के हित आरजगन निज जसु तजि दीनो ।२७ रूप धरे मनु अनल फिरंगी ।१३ | मानसिंह बंगाल लरे परतापसिंह सँग । हा हा कोई ऐसो इते ना दिखावै । रामसिंह आसाम बिजय किए जिय उछाह रंग ।२८ अबै भूमि के जो कलकै मिटावै । छत्रसाल हाड़ा जूझ्यौ हितकारी। चलै संग में युद्ध को स्वाद चाखै । नृप भगवान सुदास करी सैना रखवारी ।२९ अबै देस की लाज को जाइ राखै ।१४ तो इनके हित क्यों न उठहि सब बीर बहादुर । कहाँ हाय ते बीर भारी नसाए । पकरि पकरि तरवार लरहिं बनि युद्ध चक्रधुर ।३० कितै दर्प तें हाय मेरे बिलाए । शाखा रहे बीर जे सूरता पूर भारे । सुनत उठे सब बीरबर कर महँ धारि कृपान । भए हाथ तेई अब कर कारे ।१५ सजि सजि सहित उमंग किय पेशावरहि पयान ।३१ तब इन ही को जगत बड़ाई। चली सैन भूपाल की बेगम-प्रषित धाइ । रही सबै जग कीरति छाई । अलवर सों बहु ऊंट चढ़ि चले बीर चित चाइ ।३२ तित ही सब ऐसो कोउ नाहीं । सैन सस्त्र धन कोष सब अर्पन कियो निजाम । लरै छिनहुँ जो संगत माहीं ।१६ दियो बहावल पूर-पति सैन-सहित निज धाम ।३३ प्रगट बीरता देहि दिखाई । बीस सहन सिपाह हिय जम्बूपति सह चाह । छन महं काबुल लेइ छुड़ाई। सैन सहित रन-हित चढ्यौ आपुहि नामा-नाह ।३४ पूर्ण कोरस दारा पृष्ठ दस और पंक्तियाँ २५ हैं। इसमें विजयिनी-विजय-वैजयंती और भारत शिक्षा आदि के पद भी सम्मिलित है, जो व्यर्थ पुनरावृत्ति के भय से नहीं दिए गए हैं । छोटे प्रबंध तथा मुक्तक रचनायें २३९