पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२८६

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कैयौं जुग हंस एकै मुक्त-माल लीने के सवैया सिया बू करन माह चारु जयमाल है ।१९ वेदन की बिधि सों मिथिलेस करी सवैया सब व्याह की रीति सुहाई। मन्त्र पढ़े 'हरिचंद' सबै द्विज टूटत ही धनु के मिलि मंगल गावत मंगल देव मनाई। गाइ उठी सगरी पुर-बाला । ले चलीं सीतहि राम के पास हाथ मैं हाथ के मेलन ही सब सबै मिलि मन्द मराल की चाला । बोलि उठे मिलि लोग लुगाई । देखत ही पिय को 'हरीचंद' जोरी जियो दुलहा दुलही की बधाई बधाई बधाई बधाई ।२३ महा मुद पूरित गात रसाला । प्यारी ने आपुने प्रेम के जाल सी मौर लसै उत मोरी इतै उपमा प्यारे के कण्ठ दई जयमाला ।२० इकह नहिं जातु लही है। बस चारों ओर आनंद ही आनंद हो गया। केसरी बागी बनो दोउ के इत फिर अयोध्या से बरात आई । यहाँ जनकपुर में चन्द्रिका शरु उतै कुलही है। सब ब्याह की तैयारी हुई । वैसी ही मण्डप की रचना मेंहदी पान महावर सों वैसा ही सब सामान । 'हरिचंद' महा सुखमा उलही है। श्री रामचंद्र दुलह बन कर चारों भाई बड़ी शोभा लेहु सबै दृग को फल देखहु से ब्याहने चले मार्ग में पुर-बनिता उनको देख कर दूलह राम सिया दुलही है ।२४ आपुस में कहने लगीं। बिधि सों जब ब्याह भयो दोउ को मनि मण्डप मंगल चांवर भे । कवित्त मिथिलेस कुमारी भई दुलही एई अहै दसरथ-नन्द सुखकन्द तारी नव दुलह सुन्दर साँवर में। गौतम की नारी इनहीं मारि राछसनि । 'हरिचंद' महान अनन्द बढ़यौ कौसला के प्यारे अति सुंदर दुलारे सिया । दोउ मोद भरे जब भाँवर भे। रूप रिझवारे प्रेमी जनक प्रान धनि । तिनसों जग मैं कछु नाहिं बनी जेन सुंदर सरूप नैन बाँके मद छाके 'हरिचंद' ऐसी बनी पैं निछावर भे २५ धुंघराली लट लटकै अहो सी बनि । फिर जेवनार हुई सब लोग भोजन को बैठे स्त्रियाँ कहा सबै उझकि बिलोको बार बार देखो ोल मंजीरा लेकर गाली गाने लगी। नजरि न लागै नैन भरि के निहारौ जनि ।२१ सुंदर श्याम राम अभिरामहि गारी का कहि दीजै जू । सवैया अगुन सगुन के अनगन गुनगन कैसे कै गनि लीजै जू । एई है गौतम नारि के तारक मायापति माया प्रगटावन कहत प्रगट श्रुति चारी । कौसिक के मख के बारे। जो पति पितु सिसु दोउ मैं व्यापत ताहि लगै का गारी। कौसलानंदन नैन-अनंदन मात पिता को होत न निरनय जात न जानो जाई । एई हैं प्रान जुड़ावत-हारे । जाके जिय जैसी रुचि उपजे तैसिय कहत बनाई। अज के दसरथ सुने रहे किमि दसरथ के अज आये । प्रेमन के सुखदैन महा 'हरिचंद' के भूमिसुता पति भूमिनाथ सुत दोऊ आप सोहाये । प्रानहुँ ते अति प्यारे । राज-दुलारी सिया जू के दुलह धन्य धन्य कौशिल्या रानी जिन तुम सों सुत जायो । मात पिता सों बरन बिलच्छन श्याम सरूप सोहायो । एई हैं राघव राजदुलारे ।२२ कैके की जो सुता कैकई ताको सुकृत अपारा । मण्डप में पहुंच कर सब लोग यथास्थान बैठे। भरतहि पर अति ही रुचि जाकी को कहि पावै पारा । महाराज जनक ने यथाविधि कन्यादान दिया । जैजै नाम सुमित्रा परम पवित्रा चारू चरित्रा रानी । धुनि से पृथ्वी आकाश पूर्ण हो गया । अतिहि विचित्रा एक साथ जेहि द्वै सन्तति प्रगटानी । भारतेन्दु समग्र २४४