पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२८९

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होइ बिलग हरि-रूप-उपासी हरि-पद मैं अनुरागी । | सब सों पूजित चरन-कमल जो रास बिलास हास रस बिहरत प्रभ-मगन मन फूली । तासु चरन हम चाहै। तनमय भई तनिक सुधि नाही देह दसा सब भूलीं । तिन हरि मो कहं अब अपनायो । भाव-बिबस भगवान भक्त्त-प्रिय सबही विधि सुखदाई। निज नख-चंद्र-प्रकास मोह-तम मेरोसबहि नसायो । सोई बसो सदा इन नैनन सुंदर कुँअर कन्हाई । सबके हिय मैं अंतर-जामी हवे है जो ईस समायो । अहो मम भाग्य कयौ नहिं जाई । सोई अब मम उर अंतर मैं निज प्रकास प्रगटायो 1 जो देखत त्रिभुवनपति माधव नैनन तें ब्रजराई । हरयौ मोह-तम अमय दान दैनिज स्वरूप दरसायो । धरम-सभा मह जेहि लखि कहि 'हरिचंद' भीष्म हरि-पद-बल रिषि-मुनि अपनों भाग सराहै 1 परम अमृत-फल पायो ।१० 6 I -लीला फूल-बुझौअल रचना काल सन् १८७९ छिरकि केवरा सों पयहि चलन पाँवरे डारि । अमल कमल-कर-पद-बदन जमल कमल से नैन । क्यौं न करत कमला बिमल कमल-नाभ-सँग सैन । कब सों मोहन बैठि के मारग रहे निहारि ।१२ निसि बीती मनवत सखी तू न नेक मुसकात । करत न हरगिस लाडिले वा बिन सेज न सैन । चटकत कली गुलाब की होन चहत परभात ।२ | नरगिस से कब के खुले तुअ मग जोहत नैन ।१३ वह अलबेला कुज मैं पर्यो अकेला हाय । विमल चाँदनी भुव बिछी नभ चाँदनी प्रकास । उठि चलि बहु बेला गई करु दृग-मेला धाय । तऊ अंधेरो तुब बिना पिय अति रहत उदास ।१४ अरी माधवी-कुंज मैं माधव अति बेहाल । बैठि रही क्यों कुंद एवे चलु मकुद के पास । मधु रिपु माधव मास मैं तो बिनु व्याकुल बाल ।४ कुंद-दमल दरसाइ क्यों करत मंद नहिं हास ।१५ पहिरि नवल चंपाकली चंपकली से गात । अरी माधुरी कुंज मैं बचन माधुरी भाखि । रस-लोभी अनुपम भँवर हरि-ढिग क्यौं नहिं जात ।५ | मधुर पिया के प्रान को क्यों न लेत तू राखि १६ रुप रंग ऐसो मिल्यौ तामै ऐसी मान । कयौ न मानत मो तिया पहिरि मोतिया-हार । बिनु सुगंध के पूल तू भई कनेर समान ।६ लाउ गरे मोहन पिया सुंदर नंद-कुमार ।१७ तुव कुच परसन लालसा गेंदा ले कर श्याम । सारी तन सजि बैजनी पग पैजनी उतारि । खरे उछारत कुंज मैं क्यों न चलत तू बाम ।७ / मिलु न बैजनी-माल सों सजनी रजनी चारि ।१८ कह पायन मिहदी लगी जासों चल्यौ ना जाय । मदन-बान पिय उर हनत तो बिनु अति अकुलात । धाय कुंज मैं पियहि क्यों लेत न कंठ लगाय ।८ तू निरमोहिन इत परी मूठे ही अनखात ।१९ दाऊ दीठि बचाय हरि गए कुंज के भौन । मानिनि वारी बेग चलि प्यारी मान निवारि । बजवत दाऊदी उतै क्यों न करत तू गौन ।९ सहिन न सकत अब बेदना तो विनि मदन मुरारि ।२० बृथा बकुल-पन कर रही उत व्याकुल अति लाल । रमन रेवती के अनुज तो बिनु अति अकुलात । चलि न मौलि बारन गुथे मौलिसिरी की माल ।१० पिय-पद क्यों नहिं सेवती करत मान बिनु बात ।२१ खबर न तोहि संकेत की कही केतकी बार । जदपि सबै सामाँ जुही कल न लहत तउ लाल । चलि पथ कुंज निकेत की कित की ठानत आर ।११ । सोनजुही सौं भावती चलि उठि याही काल ।२२, छोटे प्रबन्ध तथा मुक्तक रचनायें २७