पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२९१

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को वह फूल है, जिसमें वह बतावै उन ताशों को अलग । ५ अंक हुए तो मान लीला में पांचवें दोहे में चंपा का अलग करके उनके ऊपर लिखी गिनती जोड़ लो वर्णन है इससे चपा उसने लिया है समझो और जिसमें कि कितने अंक आते हैं । मान लीला के उसी अंक के सबके समझ मैं न आवै इसके वास्ते स्पष्ट अंक के दोहे में जिस फूल का नाम हो वही उसने जी में लिया है । बदले छिपे अंक रखे हैं यथा चंद्र १ नेत्र २ बेद ४ वमु८ जैसा चंपा अगर किसी ने लिया है तो वह ४ और १ श्रृंगार १६ । एक अंक वाला ताश बतावैगा तो उसके जोड़ने से SEBS बन्दर सभा* रचना काल सन् १८७९ इन्दर सभा उरद् में एक प्रकार का नाटक है वा नाटकाभास है और यह बन्दर सभा उसका भी आभास है 1 1 (आना राजा बन्दर का बीच सभा के) गोया महमिल से व लेलो उतरी आती है सभा में दोस्तो बन्दर की आमद जामद है। तैल औ पानी से पट्टी है सँवारी सिर पर । गधे औ फूलों के अफसर की आभद आमद 1 मुंह पै माँझा दिये जल्लादो जरी आती है। मरे जो घोड़े तो गदहा य बादशाह बना । झूठे पढे की है मूबाफ पड़ी चोटी में । उसी मसीह के पैकर को आमद आमद है। देखते ही जिसे आँखों में तरी आती है। व मोटा तन व धुंदला धुंदला मू व कुच्ची आँख पान भी खाया है मिस्सी मी जमाई हैगी। व मोटे ओठ मुछन्दर की आमद आमद है हाथ में पायंचा लेकर निखरी आती है। है खर्च खर्च तो आमद नहीं खर-मुहरे की मर सकते हैं परिन्दे भी नहीं पर जिस तक । उसी बिचारे नए खर की आमद आमद है ।१ चिड़िया-वाले के यहाँ अब व परी आती है। जाते ही लूट लूँ क्या चीज खसो, क्या शै । [चौबोले जवानी राजा बन्दर के बीच बस इसी फिक्र में वह सोच भरी आती है। अहवाल अपने के पाजी हूँ मैं कौम का बन्दर मेरा नाम । [ गजल जबानी शुतुरमुर्ग परी हसब बिन फुजूल कूदे फिरे मुझे नहीं आराम । बाल अपने को) सुनो रे मेरे देव रे दिल को नहीं करार । गातो हूँ मैं औ नाज सदा काम है मेरा। जल्दी मेरे वास्ते करो सभा शुतुरमुर्ग परी नाम है मेरा । लाओ जन्ना को मेरे जलदी जाकर या । फन्दे से मेरे कोई निकलने नहीं पाता । सि मू. गारत करै मुजरा करै यहाँ ।र इस गुलशने आलम में बिछा दाम है मेरा । दो चार टके ही पै कभी रात गवा दें। [ आना शुतुरमुर्ग परी का बीच सभा के] | कारूं का खजाना कभी इनआम है मेरा । आज महफिल में शुतुरमुर्ग परी आती है। पहले जो मिले कोई तो जी उसका लुभाना । तैयार । ए लोगो

  • हरिशचंद्र चंद्रिका सं. १३ जुलाई सन् १८७९ ई. में छपा

1 छोटे प्रबन्ध नथा मुक्तक रचनाये २४९