पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२९५

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yosima 'क्यों दुंदुभि हुंकार सों छायो पूरि अकास । स्वामिभक्तिकिरतज्ञता दरसावन-हित आज। क्यों कपित करि पवन-गति छई नफीरी-आस ।५ | छोड़ि प्रान देखहिं खरो आरज बस समाज ।२४, बृटिश सुशासित भूमि में रन-रस उमगे गात । तुमरी कीरति कुल-कथा साँची करबे हेतु । सबै कहत जय आजु क्यों यह नहिं जानौं जात 15 लखहु लखहु नृप-गन सबै फहरावत जय-केतु ।२५ छुटत तोप गंभीर रब ब्रजनाद सब जोर । | मेटह जिय के सल्य सब सफल करहु निज नैन । गिरि कंपत थर थर खरे सुनि धर धर धर सोर ।७ | लखह न अरबी सी लरन ठाढ़ी आरज-सैन ।२६ विध्य हिमालय नील गिरि सिखरन चढ़े निसान । शाखा फहरत 'रूल ब्रिटानिया' कहि कहि मेघ समान १८ सुनत बीर इक वृद्ध नरन के संमुख आयो । अटक कटक लौं आजु क्यों सगरो आरज देस । श्वेत सिंह जिमि गुहा छौड़ बाहर दरसायो ।२७ अति आनंद मैं भरि रह्यौ मनु दुख को नहिं लेस ।९ सुन मोछ फहरात सुजस की मनहुँ पताका । क्यों अ-जीव भारत भयो आजु सजीव लखात । सेत केस सिर लसत मनहूँ थिर भई बलाका ।२८ क्यों मसान मुव आजु बनि रंगभूमि सरसात ।१० अरुन बदन ढिग सेत केस सुंदर दरसायो । सहसन बरसन सों सुन्यौ जो सपनेहु नहि कान । वीर रसहिं मनु घेरि रह्यो रस सांत सुहायो ।२९ जो जय भारत शब्द क्यों पूर्यो आजु जहान ।११ रचि-ससि मिलि इक ठौर उदित सी कांति पसारे । शाखा पी हृदय आजानुबाहु स्वेताम्बर धारे ।३० कहा तुम्हें नहिं खबर खबर जय की इत आई। कटि पै माथा कंघ धनुष कर मैं करवाला । जीति मिसर मैं शत्रु-सैन सब दई भगाई ।१२ परी पीठ पैं ढाल गुलाबी नैन बिसाला ।३१ तड़ित तार के द्वार मिल्यो सुभ समाचार यह । सिंह ठवनि निरभय चितवनि चितवत समुहाई । भारत-सेना कियो घोर संग्राम मिन मह ।१३ तन दुति फैली श्रुटि परत घानी पर आई ।३२ जेनरल मकफरसन आदिक जे सेनापति-गन । नभ मधि ठाढ़े होइ कही यह घन सम बानी । नि ले भारत सैन कियो भारी अति ही रन ।१४ अति गंभीर कछु करुना कछु बीर-रस-सानी ।३३ बोलि भारती-सैन दयी आयसु उठि धायो । कोरस अभिमानी अरबी बेगहि गहि लाओ ।१५ | श्यों बहरावत झूठ मोहिं और बढ़ावत सोग । सुनि के सबही परम बीरता आजु दिखाई । अब भारत मैं नाहिं वे रहे बीर जे लोग ।३४ शत्रु-गगन सों सनमुख भारी करी लराई ।१६ | जो भारत जग मैं रह्यौ सब सो उत्तम देस । छिन मैं शत्रु भगाइ गयौ अरबी पासा कह । ताही भारत मैं रह्यौ अब नहिं सुख को लेस ।३५ तीन सहस रन-बीर करे बंधुआ संगर मह ।१७ याही भुव मैं होत हैं हीरक, आम, कपास । आरजगन को नाम आजु सब ही रखि लीनो । इतहीं हिमगिरि, गंग-जल, काव्य-गीत-परकास ।३६ पुनि भारत को सीस जगत महँ उन्नत कीनो ।१८ | याही भारत देस मैं रहे कृष्ण मुनि व्यास । जिनके भारत-गान सों भारत-बदन प्रकास ।३७ आरंभ जासु काव्य सों जगत-मधि ऊंचो भारत-सीस । कित अरजुन, कित भीम कित करन नकुल सहदेव । जासु राज-बल-धर्म की तृषा करहिं अवनीस ।३८ कित बिराट, अभिमन्यु कित द्रुपद सल्य नरदेव ।१९ सोई व्यास अरु राम के बस सबै संतान । कित पुरु, रघु, अज, यदु कितै परशुराम अभिराम । अब लौं ये भारत भरे नहिं गुन-रूप-समान ।३९ कित रावन, सुगीव कित हनूमान गुनधाम ।२० कोटि कोटि ऋषि पुन्य-तन, कोटि कोटि नृप सूर । कोटि कोटि बुध, मधुर, कवि मिले यहाँ की धूर ।४० कित भीषम, कित द्रोन कित सात्यकि अति रनधीर । कित पोलस, कित चन्द्र, कित पृथ्वीराज, हम्मीर २१ आरंभ कित सकारि विक्रम, कितै समरसिंह नरपाल । हाय वहै भारत भुव भारी। कित अंतिम नर-वीर रन-जीतसिंह भूपाल ।२२ सब ही बिधि तें भई दुखारी । कहहु लखहिं सब आह निज संतति को उत्साह । रोम-ग्रीस पुनि निज बल पायो । सजे साज रन को खरे मरन-हेत करि चाह ।२३ सब विधि भारत दुखित बनायो ।४१ छारे प्रबन्ध तथा मुक्तक रचनायें २५३ SPEAK