पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२९७

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लोह-लेखनी लिखहु आर्य बल जवन-हृदय पर ।६७, निसाना सबै लै लगाओ । मारू बाजे बजै कहो घौसा घहराहीं । अरे लै बँदकै चलाओ चलाओ । उड़हि पताका सत्रु-हृदय लखि लखि थहराहीं ।६८ सबै युद्ध भारी मचाओ मचाओ । चारन बोलहिं विजय-सुजस बंदी गुन गावै । अरे शत्रु-सेनै भगाओ भगाओ ।७९ छुटहि तोप घनघोर सबै बंदूक चलावे ।६९ कोरस चमकहिं जस भाले दमकहिं ठनकहिं तन बखतर । मगी शत्रु की सैन रहयो कहुँ नाहि ठिकाना । हीसहिं हय झमकहिं रथ अज चिक्करहिं समर थर ।७० नासहु अरबी शत्रु-गनन कह कह करि छन मह छय । के जमपुर के गिरि बन कबुरन कियो पयाना ।८० करहु सबहि बिजयिनी-राज महँ भारत की जय ।७१ सुख सो बस्यौ खदीव प्रजागन अति सुख पायो । ब्रिटिश क्रोध को फल सब कह परतन्छ लखायो ।८१ आरंभ मथ्यो समुद्रहि जिन ब्रिटानिया निज कटाक्ष-बल । सुनत उठे सब बीर-बर कर महँ धारि कृपान । जग महँ जिनको निरभय बिचरत कठिन प्रबल दल ।८२ कियो सबन मिलि जुद-हित धारि उमंग पयान ।७२ जिन भारत महं आइ तोप-बल दहयौ व्रज कह । पहिरि जिरह कटि कसि सबै तौलत चले कृपान । अग्नि-वान जय-पत्र लिख्यो जिन भारत-अंग मह ।८३ लै बंदूक साधत चले लच्छ बीर बलवान ७३ | कठिन छत्रियन जीति लए जिन बह गढ सहजहि । निरभय पग आगहिं परत मुख तें भाखत मार । सिक्खन दीनी हार लियो मुलतान तनिक चहि ।'८४ चले बीर सब लरन हित मिसरिन सों इकबार ।७४ तर्जनि अग्र हिलाइ लखनऊ दिन महं लीनो । चंद्र-सूर्य-बंसी जिते प्रमर. अनल, चौहान । तनिक दृष्टि की कोर सकल साजन बस कीनो ।८५ घोड़न चढ़ि आए सबै छत्री बीर सुजान ।७५ ठिन सिपाही द्रोह-अनल जा जल-बल नासी । सुमिरि सुमिरि हत्री सबै निज पुरुषन की बात । जिन भय सिर न हिलाइ सकत कहुँ भारतवासी ।८६ धाए ऐंठत मोछ निज उमगि बीर रस गात ७६ जासु सैन-बल देखि रूस समयहिं जिय हार्यो । उमगी भारत-सैन जब सुमद-सरिस घनघोर । बरलिन संघिहि मानि होउ बिधि समयहि टार्यो ।८७ तब मिसरी चीनी कहा का सैंधव को जोर ७७ सहजहि निज बस कीनी जिन सिप्रस को टापू । बजी बृटिश रन-दुंदुभी गरजे गहकि निसान । छाइ दियो सब नृपनन पै निज प्रबल प्रतापू ।८८ कंपे थर थर भूमि गिरि नदी नगर असमान ७८ काबुल अरु कंधार कठिन महँ हलचल पार्यो । शाखा शेरअली-याकूब-अयूबहि सहज दमामा सनाई बजाओ बजाओ। खैबर दर अरगला कठिन गिरि-सरित करारे । अरे राग मारू सुनाओ सुनाओ। सत्रु-हृदय सह तोड़ि तोड़ि रिजु कीन्हे सारे ।९० सबै फौज आगे बढ़ाओ बढ़ाओ । रूम-रूस-उर सूल दियो ईरान दबायो। अरे जै-पताका उड़ाओ उड़ाओ । बृटिश सिंह को अटल तेज करि प्रगट दिखायो ।९१ कहाँ बीर हो बेग धाओ सु-धाओ । सिंह चिन्ह की धुजा चढ़ी बाला हिसार पर । अरे वीरता को दिखाओ दिखाओ । जय देवी बिजयिनी सोर भो काबुल घर घर ।९२ अरे म्यान सों शस्त्र खोलो सु-खोलो । ताके आगे कहा मिसिर का अरबी को बल । अरे मार मारी धरी मार बोलो । इन सों सपनहु बैर किए पावे परतछ फल ।९३ अरे शत्रु सीस काटो सु-काटो । बज्यो बृटिश डंका गहकि धुनि छाई चहुँ ओर । अरे कायरै दौरि डाँटो सु-डाँटो । जयति राजराजेश्वरी कियो सबनि मिलि सोर ।२४ उखार्यो ।८९ छोटे.प्रबन्ध तथा मुक्तक रचनायें २५५