पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२९९

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जातीय संगीत रचनाकाल सन् १८८४ रहै प्रसन्न प्रभु रच्छह दयाल महरानी । बहु दिन जिए प्रजा-सुखदानी । हे प्रभु रच्छह श्री महारानी। सब दिसि में तिनकी जय होई। सकल भय खोई। राज कर बह दिन लौ सोई । हे प्रभु रच्छह श्री महरानी ।१ उठह उठहु प्रभु त्रिभुवन राई । तिनके अरिन देह अकलाई । रन महं तिनहिं गिरावह मारी । सब सुख दारिद दर बहाओ । विद्या और कला फैलाओ । हमरे घर महँ शाति बसाओ । असीस हमें सुखकारी ।२ प्रभु निज अनगन सुभग असीसा । बरसह सदा बिजयिनी-सीसा । देहु निरुजता जस अधिकारा। कृषक, राजसुत, के अधिकारी । करहिं को संभ्रम भारी । निकट दर के सब नर नारी । करहिं नाम आदर विस्तारा ।३ रच्छहु निज भुज तर सह साजा । सब राजन के राजा । अलख राज कर सब बल-खानी । बिनय सुनह बिनवत सब कोई । पूरब सों पच्छिम लौं जोई। राजभक्त-गन इक मन होई । हे प्रभु रच्छह श्री महारानी ।४ (युद्ध के समय योधागण के गाने की) उठहु उठहु प्रभु त्रिभुअन-राई । तिनके शत्रु देह छितराई। रन महँ तिनहिं गिरावहु मारी । स्वामिनि स्वत्व हेतु जे बीरा । लड़हिं हरहु तिनकी सब पीरा । यह बिनबत हम तुव पद तीरा । हे प्रभु जग-स्वामी सुखकारी । (अकाल और उपद्रव के समय गाने को) उठहु उठहु प्रभु ! त्रिभुवन-राई । कठिन काल में होहु सहाई। हहि अवलबन भारी। अभय हाथ मम सीस फिराओ । मुरझी भुव पर सुख बरसाओ । पिता बिपति सों हमहिं बचाओ । आइ सरन तुव रहे पुकारी । समर्थ रिपनाष्टक [रचना काल सन् १८८४] जय जय रिपन *उदा जयति भारत-हितकारी। जयति सत्य-पथ-पथिक जयति जन-शोक-बिदारी । जय मुद्रा-स्वाधीन-करन सालम दुख-नाशन । भृत्य-वृत्ति-प्रद जय पीड़ित-जन दया-प्रकाशन ।

  • जार्ज फ्रेडरिक सैमुएल रॉबिन्सन. मारक्किस ऑव रिपन का जन्म सन १८२७ ई. में लंदन में हुआ था ।

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