पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३०२

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हेरो करे । तबै मुधि मूल वहाँ है। टै सबै धन-धाम अली हिय व्याकुलता सुनि होत महा है । बेनु के बंस भई बसुरी जो अनर्थ करै तो अचज कहा है ।११ लै बदनामी कलंकिनि होइ चवाइन को कब लौं मुख चाहिए । सासु जेठानिन की इनकी उनकी कब लौं सहि के जिय दाहिए । ताहू पै एती रुखाई पिया 'हरिचंद' की हाय न क्यौहूँ सराहिए । का करिए मरिए केहि भातिन नेह को नातो कहाँ लौं निबाहिए 12 HOKA तुव बाट बिलोकत ही 'हरिचंद' जू बैठि के सांझ सबेरो करै । पै सही नहिं जात भई बहुतै सो कहाँ कह लौं जिय छोरो करै। पिय प्यारे तिहारे लिये कब लौं अब इतिन को आइयो मो घर प्रान पिया मुखचंद दया करि कै दरसाइये । प्याइये पानिय रूप सुधा को बिलोकि इतै दृग प्यास बुझाइये। छाइये सीतलता हरीचंद जू हा हा लगी हियरे की बुझाइये । लाइये मोहि गरे हसि कै उर ग्रीषमै प्यारे हिमन्त बनाइये ।७ कोऊ कलंकिनि भाखत है कहि कामिनिह कोऊ नाम धरैगो । त्रासत हैं घर के सिगरे अब बाहरीह्र तो चवाव करैगो । इतिन की इनकी उनकी 'हरिचंद' सबै सहते ही सरैगो । तेरेई हेत सुन्यो न कहा कहा औरह का सुनिबो न परैगो ।८ मन लागत जाको जवै जिहिसों करि दाया तो सोऊ निभावत है। यह रीति अनोखी तिहारी नई अपुनो जहाँ दूनो दुखावत है । 'हरिचंद जू' बानो न राखत आपुनो दासह हवै दुख पावत है । तुम्हरे जन होइ के भोगें दुखै तुम्हें लाजा हाय न आवत है । देखत पीठि तिहारी रहेंगे न प्रान कबौं तन बीच नवारे । आओ गरे लपटौ मिलि लेहु पिया 'हरिचंद' जू नाथ हमारे । कौन कहे कहा होयगो पाछे वने न बने कछु मेरे सम्हारे । जाइयो पाछे विदेस भले करि लेन दे भेंट सखीन सों प्यारे ।१० लखिकै अपने घर को निज सेवक भी सबै हाथ सदा घरिहैं। हल सों सब दूषन बैंचि झटै सब बैरिन मूसल सों मरिहै । अनुजै प्रिय जो सो सदा उनको प्रिय कारज ताको न क्यों सरिहै। जिनके रछपाल गोपाल धनी तिनको बलभद्र सुखी करिहै ।१३ अब प्रीति करी तौ निबाह करो अपने जन सों मुख मोरिए ना । तुम तो सब जानत नेह मजा अब प्रीति कहूँ फिर जोरिए ना । 'हरिचंद' कहै कर जोर यही यह आस लगी तेहि तोरिए ना । इन नैनन माहँ बसो नित ही तेहि आँसुन सों अब बोरिए ना ।१४ यह काल कराल अहै कलि को 'हरिचंद'कों नेक सोहातो नहीं । धन धाम अराम हराम करो अपनो तो कोऊ दरसातो नहीं । चित चाहत है चित चाह कर पर वाको निबाह लखातो नहीं । दिल चाहत है दिल देइबे को दिलदार तो कोऊ दिखातो नहीं ।१५. कवित्त आजु बृषभानुराय पोरी होरी होय रही दौरी किसोरी सबै जोबन चढ़ाई मैं । पीवै सदा अधरामृत स्याम को भागन याको सुजात कहा है। भारतेन्दु समग्र २६०