पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३०४

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दीने गल-बाहीं बाढ़े मैन के उमाह में । हँसि हँसि बातें करें परम प्रमोद भरे रीझे रूप-जाल भीजे गुनन अथाह में । कान में कहन मिस बात चतुराई करि मुख ढिग लाई प्रान प्यारे भरि चाह में । चूमि के कपोलन हँसावत हसत छबि छावत छबीलो छैल छल के उछाह में ।११ रंग-भौन पीतम उमंग भरि बैठ्यौ आज साजे रति-साज पूर्यो मदन-उमाह में । 'हरीचंद' रीझत रिझावत हँसावत हंसत रस बाढ़यौ अति प्रेम के ग्रवाह में । बोरी देन मिस छुए आँगुरी अधर पुनि चूमै चुपचाप ताहि पान खान चाह में लाहि छड़ावत छकावत छकत छबि छावत छबीलो छैल छल के उछाह में ।१२ आजु लौं न आए जो तो कहा भयो प्यारे याकों सोच चित नाहिं धारि मति सकुचाइये । औधि सों उदास हवै कै गमन तयार यह ताते अब लाज छोड़ि कृपा करि धाइये । 'हरीचंद' ये तो दास आपुही के प्रान कडू और न कियो तो अब एतो ही निभाइये । चाहत चलन अकुलाइकै बिसासी इन्हें आह प्रान-प्यारे जू विदा तो करि जाइये ।१३ जोग जग्य जप तप तीरथ तपस्या ब्रत ध्यान दान साधन समूह कौन काम को । वेद औ पुरान पढ़ि ज्ञान को निधान भयो कर मगरूर पाइ पंडिताई नाम को । 'हरीचंद' बात बिना बात को बनाइ हारौ चेरो रह्यो जाम दाम काम धन धाम को । जानै सब तऊ अनजाने है महान जाने राम को न जाने ताहि जानिये हराम को ।१४ साँझ समै साजे सज ग्वाल-बाल साथ लिए मोहन मनहिं हरि आवत हरू हरू । सीम मोर-मुकुट लकुट कर लीने ओढ़े पीत उपरेना जामै टॅक्यो चारु गोखरू । 'हरीचंद बेनु को बजावत हैं गावत सुआवत है लिए साथ साथ गाय बालरू । नाचत गुवाल मध्य लाजत मनोज लखि आवै सखि बाजत गुपाल पाय पूंघरू ।१५ दासी दरबानन की झिरकी करोर सही इतिन नचाये नची नौ-नौ पानि नेजे पर । दिवस बिताये दौरि इत उत दुरि दुरि रोइह सकी न खुलि हाय दुख सेजे पर । 'हरीचंद' प्रानन पै आय-बनी सबै भांति अंग अंग भीनी पीर परी विष रेजे पर । हाय प्रान-प्यारे नेक बिछुरे तिहारे दुख कोटिन अंगेजे याही कोमल करेजे पर ।१६ मेष मायावाद सिंह वादी अतुल धर्म बृख जयति गुण-रासि बल्ल्भ-सुअन । कलि कुवृश्चिक दुष्ट जीव जीवन-मूरि करम छल मकर निज.वाद धनु-सर-समन । गोप-कन्या भाव प्रगटि सेवा बिसद कृष्ण राधा मिथुन भक्ति-पथ दृढ़-करन । हरन जय-हिय-करक मीन धुज-भय मेटि दास 'हरिचंद' हिय कुम्भ हरि-रस भरन ।१७ कुंभ-कुच परस दृग-मीन को दरस तजि तुच्छ सुख मिथुन को हिय बिचारै । छल मकर छाँड़ि सब तानि बैराग-धनु सिंह हवै जगत के जाल जारै। कृष्ण बृखभानु-कन्या सहित भजन करि कलि कुवृश्चिक समुझि दूर टारै । छाँड़ि अन आस बिस्वास हिय अतुल धरि करम को रेख पर मेख मारे ।१८ फूलैंगे पलास बन आगि सी लगाइ कर कोकिन कुहुकि कल सबद सुनावैगो । त्यौंही 'नरीचंद' सबै गावैगो धमार धीर हरन अबीर बीर सबही उड़ावैगो । सावधान होहरे वियोगिनी सम्हारि तन अतन तनक ही में तापन ते तावैगो । धीरज नसावत बावत बिरह काम कहर मचावत बसंत अब आवैगो ।१५ खेलौ मिलि होरी ढोरी केसर-कमोरी फैको भरि भरि झोरी लाज जिम मैं बिचारौ ना । डारी सबै रंग संग चंगह बजाओ गाओ सबन रिझाओ सरसाओ संक धारौ ना । कहत निहोरि कर जोरि हरिचंद' प्यारे मेरी विनती है एक हाहा ताहि टारौं ना । नैन है चकोर मुख-चंद तें परेगी ओट यातें इन आँखिन गुलाल लाल डारौ ना ।२० लोक बेद लाज करि कीजे ना रुखाई एती द्रविये पियारे नेक दया उपजाइ कै बिरह विपति दुख सहि नहिं जाय कहि जाय ना कङ्क रहौं मन बिलखाइ के । 'हरीचंद, अब तो सहारो नहिं जाय हाय । भारतेन्दु समग्र २६२