पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३१४

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अय जाने-जहाँ आपका जाना नहीं अच्छा । ध्यान आ गया जो शाम को उस जुल्फ का 'रसा' । आ जा शबे फुर्कत में कसम तुमको खुदा की । उलझन में सारी रात हमारी बसर हुई ।१३ ऐ मौत बस अब देर लगाना नहीं अच्छा । बाल बिखेरे आज परी तुरबत पर मेरे आएगी । पहुंचा दे सबा कूचए जाना में पसे मर्ग । मौत भी मेरी एक तमाशा आलम को दिखलाएगी । जंगल में मेरी खाक उड़ाना नहीं अच्छा । मद्ये अदा हो जाऊंगा गर वस्ल में वह शरमाएगी । आ जाय न दिल आपका भी और किसी पर । बारे खुदाया दिन की हसरत कैसे फिर बर आएगी। देखो मेरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा । कहीदा ऐसा हूँ मैं भी ढूँढ़ा करे न पाएगी । कर दूँगा अमी हन' बपा देखियो जल्लाद । मेरी खातिर मौत भी मेरी बरसों सर टकराएगी । य मेरे खू का छुड़ाना नहीं अच्छा । इश्के बुता में जब दिल उलझा दीन कहाँ इसलाम कहाँ। ऐ फाख्त : उस सर्वसिही २ कद का हूँ शैदा । वाअज १० काली बुल्फ की उल्फत सब को राम बनाएगी। कू कू की सदा मुझको सुनाना नहीं अच्छा । चंगा होगा जब न मरीजे काकुले शबरों हज़रत से । होगा हरेक आह से महशर ३ बपा 'रसा' । आपकी उलफत ईसा की अब अज़मत आज मिटाएगी। आशिक़ का तेरे होश में आना नहीं अच्छा ।११/ बड़े अयादत भी जो आएँगे न हमारे बाली पर । बरसों मेरे दिल की हसरत सिर पर खाक उड़ाएगी। रहै न एक भी बेदादगर४ सितम ५ बाकी । सके न हाथ अभी तक है दम में दम बाकी । देखूगा मिहराबे हरम याद आएगी अबरूए सनम । मेरे जाने से मसजिद भी बुतखाना बन जाएगी । उठा दुई का जो परदा हमारी आँखों गाफिल तो कावे में भी रहा बस वही सनम बाकी । हुस्न प गर्ग ११ ध्यान किधर है तौबा कर । आखिर इक दिन सूरत यह सब मिट्टी में मिल जाएगी। बुला लो बाली प हसरत न दिल में मेरे रहे । अभी तलक तो है तन में हमारे दम बाकी । आरिफ १२ जो हैं उनके है बस रंज व राहत एक 'रसा' । जैसे वह गुज़री है यह भी किसी तरह निभ जाएगी ।१४ लहद प आएंगे और फूल भी उठाएँगे। ये रंज है कि न उस वक्त होंगे हम बाकी । फसादे दुनिया मिटा चुके हैं यह चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के । हुसूले हस्ती उठा चुके हैं। रहा जहाँ में सिकन्दर न और न जम २ बाकी । खुदाई अपने में पा चुके हैं। तुम आओ तार से मरकद प हम कदम चूमें । मुझे गले यह लगा चुके है। फकत यही है तमन्ना तेरी कसम बाकी । नहीं नज़ाकत से हम में ताकत उठाएँ जो नाजे हूरे जन्नत १३ । 'रसा' ये रंज उठाया फिराक में तेरे । रहे जहाँ में न आखिर को आह हम बाकी 1१२ कि नाड़े शमशीर पुर नज़ाकत बैठे जो शाम से तेरे दर पर सहर हुई । हम अपने सर पर उठा चुके हैं। अफसोस अय कमर "कि न मुतलक खबर हुई । नजात हो या सज़ा हो मेरी मिले अरमाने वस्ल यों ही रहा सो गए नसीब । जहन्नुम १४ कि पाऊँ जन्नत । जब आँख खुल गई तो यकायक सहर हुई। हम अब तो उनके कदम प अपना दिल आशिकों के छिद गए तिरछी निगाह से । गुनह भरा सिर झुका चुके हैं। मिज़गाँ' की नोक दुशमने जानी जिगर हुई । नहीं ज़बां में है इतनी ताकत पछताता है कि आँख अबस तुम से लड़ गई । जो शुक्र लाएँ बजा हम उनका । बरछी हमारे हक में तुम्हारी नजर हुई । कि दामें हस्ती १५ से मुझको अपने । छानी कहाँ न खाक, न पाया कहीं तुम्हें । इक हाथ में वह छुड़ा चुके हैं। 'मिट्टी मेरी खराब अबस दर-बदर हुई। वजूद १६ से हम अदम में आकर । १. प्रलय, २. सरो पौधे के समाव सीधा, ३. प्रलय, ४. अत्याचारी, ५. कष्ट, अत्याचार, ६. ईरान का एक राजा जमशेद, ७. चंद्र, ८. पलकें, ९. कृश, १०. उपदेशक, ११. घमंड, १२. ज्ञानी, १३. स्वर्ग, १४. नर्क, १५. जीवन भारतेन्दु समग्र २७२