पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३१७

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मन के बदले सौज दिखावत । मेरे गल भुज दे दे लटकत मुख चूमत मन-मानी सी । पासा खेलत हँसत हसायत्त | नाम रटत अपुनो राधे क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी ।९ जानि बुझि पिय अपुन हरावत । नन्द-भवन नहिं भानु-भवन यह इत क्यों रहत लजानी सी। 'हरीचंद' पिय प्यारी मिलि के पूंघट तानि बिलोकत केहि तू हिय हरषित रस-सानी सी। एहि बिधि नित त्यौहार मनावत २ | मैं ही एक अरी तू केहि इत आदर देत विकानी सी । सेज सजत क्यों आँगन में क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी।१० समस्या-क्यौं प्यारी फिरत दिवानी सी।' की पूर्ति कहा भयो मद है पीयो के गहिरी बिजया छानी सी । समस्या- रोम मोम रूस फूस है।' की पूर्ति लाल लाल दृग केस विथुरि रहे सूरत भई निवानी सी । भुक मुक भूमत अल-बल बोलत चाल मस्त बोरानी सी। जीते हैं गुराई सों अनेक अरमनी काके रंग रंगी ऐसी क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी ११ जरमनी जरमनी मन रहत मसूस हैं। चित्र लिखे चीनी भए पारसी सिपारसी से छूट्यौ केस खुलौ है अंचल पीक-छाप पहिचानी सी। टूटी माल हार अरु पहुँची कुसुम-माल कुम्हिलानी सी । संग लगे डोलैं अंगरेज से जलूस 1 भौंह के हिलाये सों बिलात तेरे चेरे ऐसे नैन लाल अधरा रस चूसे सुरतिह अलसानी सी । जानी जानी नेकु लाजु क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी १२ हेरे नित नित फरासीस और प्रस हैं । जदपि कहावै बल भारी पै तिहारी सौंह बन बन पात पात करि डोलत बोलत कोकिल बानी सी। प्यारी तेरे आगे रोम मोम रूस फूस हैं ।१ {दि मंदि दृग खोलि खोलि के कहूं रहत ठहरानी सी । उझकति झुकति जगी सी सब छिन मोहन हाय बिकानी सी। हबसी गुलाम भये देखि कारे केस तेरे धीरज धरि बलि गई अरी क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी।३ चीनी लखि गालन को फोरत फनूस हैं। मौन रहत कबहूँ कबहूँ तू बोलत अलबल बानी सी । मिसरी सुनत मीठे बोल बिना दाम बिके । ठगी उगी रस पगी श्याम रट लगी कबहुँ अकुलानी सी । तन की सुबास रहे मिलय भसूस हैं । फरासीसी मद्य सीसी द्वारि मतवारे भए तन की सुधि गुरु जन की भै बिनु 'हरीचंद' रस सानी सी। काके मद माती डोलत क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी।४ नैन पेखि काफरी ह होइ रहे इस हैं। बरमा हिये के काम घरमा चलायो प्यारी उफनत तक्र चुअत चहुँ दिसि तें खींचत पथ कह पानी सी। तेरे रूप आगे रोम मोम रूस फूस हैं ।२ बार बार नंद-द्वार जाइ के ठाढी रहत बिकानी सा । तन की सुधि नहि उघरत आंचर डोलत पथहि भुलानी सी। भाजे से फिरत शत्रु इत उत दौरि दौरि दबत जमानी जाको जोहत जलूस है। मुख सों कहत गुपालहि लै क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी १५ ब्रह्म अस्त्र ऐसी तोपें तोपें एक बार फौज नैहर सासुर बाहर भीतर सब थल की बै रानी सी । बिमल बंदक गोली दारू कारतूस लाज मेटि अन-कही भई अपवादनहु न डरानी सी । ऐसो कौन जग में बिलोकि सकै जौन इन्हें कुलहि कलंक लगाय भली बिधि होइ गई मन-मानी सी। देखि बल बैरी-दल रहत मसूस है । अबहूँ तो कछु सम्हरि अरी क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी । प्रबल प्रताप भारतेश्वरी तिहारै क्रोध बिलखि बिलखि मति रोवै प्यारी ह्वै के दुख बौरानी सी। सीस धुनत क्यों अभरन तोरत फारत अंचल तानी सी । ज्वाल काल आगे रोम मोम रूस फूस है।३ गहिरी लेत उसास भरी दुख भई मीन बिनु पानी सी । जनम लियो है जाने मरनो अवस ताहि कहुं बैठत कहुँ उठि धावत क्यों प्यारी फिरत दिवानी सी ७ राजा है के रंक है चतुर है कि इस है। 'हरीचंद' एक हरी नाम जग साँचो जानौ आजु कुंज मैं कौन मिल्यो जिन लूटी सब रस खानी सी । चूसे अधर अंगूर दोउ गालन पै प्रगट निसानी सी । बाकी सब झूठो चार दिन को जलूस है 1 बिथुरे बार सिंगार हार 'हरिचंद' माल कुम्हिलानी सी । काफरी कपूर चरबी से अरबी है अंगरेज घर धर छतिया क्यों धरकत क्यौप्यारी फिरत दिवानी सी। आदि काठ तृन तूल पूस भूस है। सकला सी सकल सकल काल ज्वाल आगे बंसी मुकि झुकि कहा बजावत झूठहि अंचल तानी सी । आपुहि आपु हँसत अस रीझत यह गति अलख लखानी सी। हिंद घृत-विंदू रोम मोम रूस फूस है।४ 1 स्फुट कविताएँ २७५