पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३१९

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समस्या- बीस रवि दस ससि संग ही उदय भये' की पूर्ति ठाढ़ नंदनंदन कलिंदजा निकट लिये दोऊ ओर ब्रजबाल कंठ में भुजा दये । अंग अंग माधुरी निकाई सुकुमारताई पूरन प्रकास परिहास सुख सों छये । 'हरीचंद' धारि उर सेत रतनारे नख ध्यान करि प्रेम भरि मूदि दृग द्वै लये । करत प्रकास मेरे हिय उदयाचल मैं बीस रवि दस ससि संग ही उदे भये ।१ देख्यो आजु आली ब्रजराज के कुँअर जू को राधा लिये संग ठाढ़े अति सुखमा छये । प्रीति रीति पूरे धरे दोऊ हाथ कुच पर एक टक देखत चकोर नैन हवे गये। 'हरीचंद' आँगुरीन मानिक अंगूठी दै दै तैसे नख सेत मिलि सोभा बेलि से बये । मानौं आजु प्रात उदयाचल सिखर पर बीस रवि दस ससि संग ही उदै भये ।२ आजु जलकेलि मैं बिलोकी ब्रजबाल दस खेलें जमुना मैं सोभा कमल मनो बये । जलन उछारै छोड़े हाथ सों फहारै गहि भुजा कंठ डार महामोद मन मैं लये। कर मेहदी सों रंगे तैसे मुखमंडल दिखात 'हरिचंद' सब अंग जल मैं दये। मानौं नभ छोड़ि अनहोनी कर होनी आजु बीस रवि दस ससि संग ही उदै भये । ताप अधिकात कबौं जिय सियरात आली जब तें पियारे मनमोहन जुदै भये । कबहुं प्रकास औ अंधेरो सो कबहुँ हिय जल खिलत खिलत कबहुँ कबहुँ मुदै भये । प्यारे 'हरिचंद' के बियोग सो प्रथम दसा दूजी ध्यान माझ मानों संगम सुदै भये । ताप दूनो ताहू पैं न जानि परै मोहि कहा बीस रवि दस ससि संग ही उदै मये।३ 60064 स्फुट कविताएँ २७७