पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३२

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भोake "A monthly journal published in connection with the Kavivachansutha containing articles on literary, scientific, political and religious subjects, antiquities reviews, dramas, history, novels, poetical selections gossip, humour and wit." इस घोषणा से ही स्पष्ट है कि भारतेन्दु का साहित्यिक विषयों के प्रति जितना लगाव था, साहित्येतर विषयों में भी उनकी चिन्ता कम नहीं थी । बे विज्ञान, पुरातत्व राजनीति ऐसे विषयों को हिन्दी में लिखना लिखाना चाहते थे । समस्त राष्ट्रीय चिन्तन को आधुनिक परिवेश में लाना चाहते थे । इतना ही नहीं वे एक विधि पत्रिका भी "नीतिप्रकाश" के नाम से निकालना चाहते थे । उन्होंने सन् १८७५ के अप्रैल की 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' में एक विज्ञापन प्रकाशित किया था: - "हिन्दी में बहुत से अखबार हैं, पर हमारे हिन्दुस्तानी लोगों को उनसे कानूनी खबर कुछ नहीं मिलती और न हिन्दी में कानूनों का तर्जुमा है, जिसे देखकर और पढ़कर वे अदालत की बातें समझ सकें । आदलत वह चीज है जिससे छोटे बड़े किसी को छुट्टी नहीं । इससे सब गृहस्थों को इसका जानना बहुत जरूरी है। बहुत से बेचारे कानून जाने बिना लोगों के जाल में पड़कर खराब हो जाते हैं । तो इस आपत्ति से लोगों को बचाने के लिए एक माहवारी पत्र 'नीति प्रकाश' नाम का बनारस से जारी होगा । इसमें अंग्रेजी और उर्दू कानूनों का तर्जुमा छपा करेगा । और इसके सिवाय विलायत और हाई कोर्ट के फैसले छपेंगे । मुन्शी ज्वालाप्रसाद गवर्नमेंट प्लीडर हाईकोर्ट, बाबू तोताराम हाईकोर्ट प्लीडर इत्यादि लायक दोस्त इसके मददगार होंगे।" इस विज्ञापन में दस विभिन्न कालमों के नामों की भी घोषणा की गयी थी । साथ एक शर्त भी लगायी गयी थी "बिना ५०० ग्राहक ठहरे इसका काम शुरू न होगा और ग्राहक ज्यादा होंगे तो इसके पन्ने बढ़ा दिये जायेंगे।" मूल्य भी निश्चित कर दिया गया था । ६ रुपये वार्षिक और डाक व्यय था मात्र ६ आने वार्षिक ।। अब पत्रों की बिक्री का हाल सुनिए । "हरिश्चन्द्र चन्द्रिका" की सौ प्रतियां सरकार खरीदती था। सरकार उसकी नीतियों से नाराज थी। कोई न कोई बहाना ढूंढ ही रही थी कि इसमें "यती वश्या संवाद" छपा । सरकार ने उसे अश्लील करार दिया। पत्रिका की सरकारी खरीद बन्द हो गया । . . . उस समय बहुत सी ऐसी भी पत्रिकाएं थी जिनकी ग्राहक संख्या दस-बीस से अधिक नहीं था । खुद "हरिश्चन्द्र चन्द्रिका" ऐसी पत्रिका भी १५० से अधिक लोगों के यहां नहीं पहुंचती थी। महान स्वप्नदृष्ट्रा के बहुत से स्वप्न साकार नहीं होते । भारतेन्दु का विधि पत्रिका निकालने का स्वप्न भी साकार नहीं हो सका । न पांच सौ ग्राहक बने और न पत्रिका प्रकाशित हुई । फिर भी हिन्दी वाड्.मय को विविध विषयों से भरने की उनकी लालसा बनी रही। उन्होंने बनारस कालेज के गणिताध्यापक पं. लक्ष्मीशंकर मिश्र से त्रिकोणमिति पर एक पुस्तक लिखवायी थी । उसका स जून १८७४ की चंद्रिका में करते हुए उन्होंने लिखा थाः - "हिन्दी भाषा में विज्ञान, दर्शन, अंकादि के ग्रंथ बहुत थोड़े हैं और जो १०-पांच छोटे मोटे है भी, वे पुरानी चाल के हैं और उनके परिभाषिक शब्द ठीक नहीं है। इस ग्रंथ के अन्त में एक निघंह भी है। जिसमें परिभाषिक शब्दों के पर्यायवाचक अंग्रेजी शब्द भी दिये हैं । यह इस विधा के नये-नये ग्रंथ बनाने वालों को बहुत उपयोगी होंगे, पर हम यह कहना चाहते हैं कि लोग त्रिकोणमिति के नये तीस