पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दशरथ विलाप हवा और (दशरथ विलाप) कहाँ हो ऐ हमारे राम प्यारे । किधर तुम छोड़ कर मुझको सिधारे । बुद्यपे में य दुख भी देखना था । इसी के देखने को में बचा था । छिपाई है कहां सुन्दर व मूरत । दिखा तो सांवली सी मुझकों सूरत । छिपे हो कौन से परदे में बेटा । निकल आवो कि अब मरता हु बुड्ढा । बुढ़ापे पर दया मेरे जो करते । तो बन की और क्यों तुम पैर धरते । किधर वह वन है जिसमें राम प्यारा । अजुब्या छोड़ कर सूचना सिधारा । गई संग में जनक की जो लली है। इसी में मुझकों और बे कली है। कहेंगे क्या जनक यह हाल सुनकर । कहां सीता कहां वन वह भयंकर । गया लक्ष्मण भी उसके साथ ही साथी । तड़फता रह गया मैं मलते ही हाथ । मेरी आंखों की पुतली कहां है । बुढापे की मेरी लकड़ी कहा है 1 कहां ढूंढों मुझे कोई बता दो । मेरे बच्चों को बस मुझसे मिला दो । लगी है आग छाती में हमारे । बुझाओ कोई उनका हाल कह के। मुझे सूना दिखाता है जमाना । कहीं भी अब नहीं मेरा ठिकाना । अंधेरा हो गया घर हाथ मेरा । हुआ क्या मेरे हाथों का खिलौना । मेरा धन लूट कर के कौन भागा । मेरे घर को मेरें किसने उजाड़ा । हमारा बोलता तोता कहा है 1 अरे वह रामा सा बेटा कहाँ है। कमर टूटी न बस अब उठ सकेंगे। अरे बिन राम के रो रो मरेंगे। कोई कुछ हाल तो आकर के कहता । है किस वन में मेरा प्या कलेजा । धूप में कुम्हला के थक कर । कहीं साये में बैठे होंगे रघुवर । जो डरती देखकर मट्टी का चीता । व वन वन फिर रही है आज सीता। कभी उतरीन सेजों से जमीं पर । वे फिरती है पियोदे आज दर दर । न निकली जान अब तक बेहया हूँ। भला मैं राम बिन क्यों जी रहा हैं। मेरा है वज्र का लोगों कलेजा । कि इस दुख पर नहीं अब भी य फटता । मेरे जीने का दिन बस हाय बीता । कहा है राम लक्ष्मण और सीता । कहीं मुखड़ा तो दिखला जायें प्यारे । न रह जाये हविस जी में हमारे । कहां हो राम मेरे राम ये राम । मेरे प्यारे मेरे बच्चे मेरे श्याम । मेरे जीवन मेरे सरबस मेरे प्रान । हुए क्या हाय मेरे राम भगवान । कहां हो राम हा प्रानों से प्यारे । यह कह दशरथ जी सुरपुर को सिधारे । भारतेन्दु समग्र २७८