पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३२६

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प्रथम अंक -भारतेन्दु ग्रन्थावली- विद्यासुन्दर उत्पन्न करता हो तो उसका वर भी उसीके साथ उत्पन्न कर देता है । अतएव आपको सोच करना न चाहिए पहिला गर्भाक (प्रतिहारी के सहित गंगा भाट का प्रवेश) गंगा भाट वीरसिंह महाराज को, (राजा और मंत्री का प्रवेश) दिन दिन ही जय हो। राजा-(चिन्ता सहित) यही तो बड़ा आश्चर्य है तेज बुद्धि बल नित ब? शत्रु. कि इतने राजपुत्र आए पर उनमें मनुष्य एक भी नही रहे नहिं कोय ।। आया । इन सबों का केवल राजवन्श में जन्म तो है पर वास्तव में ये पशु है । जो मैं ऐसा जानता तो अपनी राजा-कविराज अब तक तुमने अनेक देशों में भ्रमण किया और अनेक राजपुत्रों को यहां ले आए परन्तु कन्या को ऐसी कड़ी प्रतिज्ञा न करने देता पर अब तो उसे मिटा भी नहीं सकता । अब निश्चय हुआ कि हमारी उनमें सुपात्र एक भी न आया । अब हम सुनते हैं कि विद्या की विद्या केवल दोषकारिणी हो गई। हा, क्यों कांचीपुर के राजा गुणसिन्धु के पुत्र सुन्दर ने अनेक विद्या उपार्जित की है इससे हम सोचते हैं कि वही हमारी विद्या मंत्री तुम कोई उपाय सोच सकते हो। मंत्री-महाराज आप जो आज्ञा करते हैं सो सच के योग्य भी होगा इससे तुम शीघ्र वहां गमन करो और है । लक्ष्मी और सरस्वती दोनों एक स्थान पर नहीं राजपुत्र को अपने साथ ही लेते आओ तो अति उत्तम हो जिसमें विलंब न हो क्योंकि राजकन्या विवाह योग्य हो रहतीं इससे ऐसा भाग्यशाली वर मिलना अत्यंत कठिन है। इन दिनों मैंने सुना है कि कांचीपुर के राजा चुकी है। भाट-महाराज यह कौन बड़ी बात है, मैं अभी गुणसिन्धु का पुत्र युवराज अत्यन्त सुन्दर अनेक शास्त्रों में शिक्षित और बड़ा कवि है और अनेक पंडितों को जाता हूं । (जाता है। शास्त्रार्थ में जीता है। राजा-(मंत्री से) गुणसिन्धु राजा को एक पत्र भी देना उचित है । तुम यह सब वृतान्त इस रीति से राजा-क्या गुणसिन्धु राजा को ऐसा गुणवान लिख दो कि जिसमें हमारा सब कार्य सिद्ध हो जाय और पुत्र हो और उसका समाचार हम अब तक न जानें। मंत्री- महाराज मैंने निश्चय सुना है वह अपूर्व | जिसमें उसे विलम्ब न हो । अब बेला ढल चली, हम गंगा भाट की यात्रा की सब वस्तु शीघ्र ही सिद्ध कर दो सुन्दर और अद्वितीय पंडित है । इससे मैं अनुमान भी रनिवास को जाते हैं। करता हूँ कि जिसने संसान की सब विद्या पाई है वही मंत्री-जो आज्ञा । हमारी राजकुमारी विद्या को भी पावैगा । यद्यपि ईश्वर की इच्छा और होनहार अत्यन्त प्रबल है तथापि जवनिका गिरती है हमको निश्चिन्त होके बैठ रहना उचित नहीं है। इस कहने का अभिप्राय यह है कि आप कांचीपुर में किसी को समाचार लेने के हेतु भेजिए । राजा-ठीक है, तो विलम्ब क्यों करते हो । शीघ्र ही वहाँ किसी को भेजना चाहिए । (द्वार की ओर देखकर) कोई है ! गंगा भाट को अभी बुला लाओ । सुन्दर-(स्वगत) वर्द्धमान की शोभा का वर्णन मैंने जैसा सुना था उससे कहीं बढ़कर पाया । आह कैसे (प्रतिहारी आकर) सुन्दर सुन्दर घर बने हैं, कैसी चौड़ी चौड़ी सुन्दर प्रतिहारी -जो आज्ञा महाराज । (जाता है) स्वच्छ सड़कें हैं, वाणिज्य की कैसी बृद्धि हो रही है, राजा (खेदपूर्वक) विद्यावती का केवल यह दुकाने अनेक स्थान की अनेक प्रकार की सब वस्तुओं अदृष्ट है कि अब तक कहीं विवाह नहीं ठहरता । देखें से पूर्ण हो रही हैं, सब लोग अपने अपने काम में लगे क्या होता है। हुए हैं और बहुतेरे लोग नदी के प्रवाह की भांति इधर मंत्री-महाराज आज तक कोई कन्या क्वारी | उधर दौड़ रहे हैं, स्थान स्थान पर पहरेदार लोग। नहीं रही । सीता और द्रौपदी इत्यादि जिनके बड़े कठिन | सावधानी से पहरे दे रहे हैं, प्रजा लोग सुख से अपना प्राण थे उनका तो विवाह हो ही गया । जब ईश्वर कन्या 'कालक्षेप करते हैं। निश्चय यहां का राजा बड़ा/ दूसरा गर्भाक सुन्दर आता है। भारतेन्दु समग्र २८४