पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३२७

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/ भाग्यमान है । यद्यपि हमारे पिता की राजधानी भी जो विद्या सब में प्रधान है। अत्यन्त अपूर्व हैं परन्तु इस स्थान सा तो मुझे पृथ्वी में चो.-सन में प्रधान विद्या! सब में प्रधान कोई स्थान ही नहीं दिखाई देता । इसका वर्द्धमान नाम विद्या तो चोरी है। बहुत ठीक है क्यों कि इसमें रूप और धन दोनों की 'सुं.- (मुसक्याकर) तुम्हारे यहां यही विद्या वृद्धि है । (हंसकर) परन्तु हमारा अभिलाष भी वर्द्धमान | प्रधान होगी । हो तो हम जाने (चारो ओर देखकर) वाह, यह उद्यान चौ.- (सोटा उठाकर पैंतरे से चलता हुआ) हां भी कैसा मनोहर है, इसके सब वृक्ष कैसे फले फूले हैं | रे, यही तो हमारा काम है कि जो इस विद्या के पंडित और यह सरोवर कैसे निर्मल जल से भरा हुआ है मानों | हों उन्हें हम वैसा पुरस्कार दें । सब वृक्षों ने अपने अनेक रंग के फूलों की शोभा देखने सुं.- क्या पुरस्कार देता है । को इस उद्यान के बीच में एक सुन्दर आरसी लगा दी चौ. - इस विद्या के पुरस्कार हेतु एक यंत्र बना है । पक्षी भी कैसे सुन्दर स्वर से बोल रहे है मानो जिसका नाम काठ तुडुम हर और चोर शत्रु है । पुकारते हैं कि इससे सुन्दर संसार में और कोई उद्यान सुं.- कैसा है। नहीं है। आहा. कैसा मनोहर स्थान है। हम इस चौ.- दो बड़े बड़े काठ एकत्र करके चोर भाई बकुल के कुंज में थोड़ा विश्राम करेंगे । (बैठता है) का पांव बसके भीतर डाल देते हैं । (सुन्दर का दाहिना अहा, शरीर कैसा शीतल हो गया । निश्चय यह पौन | पैर बल से खींचकर अपनी दोनों जांघ में रखकर (सांस लेकर) हमारी प्राणप्यारी त्रिभुवनमोहिनी विद्या | दबाता है) अब जब तक हमरी पूजा न दोगे तब तक न का अंग स्पर्श करके आता है, नहीं तो ऐसी मधुर | छटोगे । सुगंध इसमें न होती है । (कुछ सोचकर) यह तो .- (चौकीदार को बल पूर्वक लात मारता है सब ठीक है परन्तु जिस काम के हेतु मैं यहां आया हूं और चौकीदार पृथ्वी पर गिरता है) लो तुम्हारी यही पूजा उसका तो कुछ सोच ही नहीं किया । यहां मैं किसी को है। जानता भी नहीं कि उससे कुछ उपाय पूछ्रे क्योंकि मैं चौ.- (उठाकर) हां हां बचा, अभी तुमको तो यहां छिपकर आया हूं । (चिन्ता नाट्य करता है) | दूसरा पुरस्कार नहीं दिया । चार पांच कोड़े तुम्हारी एक चौकीदार आता है पीठ पर लगे तब जानो। चौकीदार- (स्वगत) ई के हौ भाई. कोई सुं.- बस अब बहुत भई, मुंह सम्हाल के बोलो परदेसी जान पड़डला । हमहन के कुछ घूस फूस देई | नहीं तो एक मुक्का ऐसा मारूंगा कि पृथ्वी पर लोटने की नाहीं । भला देखी तो सही (प्रकाश) कोन है। लगोगे और दक्षिण दिशा में यमराज के घर की ओर सुंदर- हम एक परदेशी हैं 1 गमन करोगे । जिसके हेतु तुम इतना उपद्रव करते हो चौ. - सो क्या हमें नहीं सूझता पर कहाँ | सो मैं जानता हूं परंतु धमकी दिखाने से तो मैं एक रहते हौ। कौड़ी भी न दूंगा और तुमको भी परदेशियों से झगड़ा सुं.- हमारा घर दक्षिण हैं। करना उत्तिा नहीं है । (कुछ देता है) इसे लो और -- दक्षिण तो जमराज के घर तक सभी हैं। अपने घर चल दो। तुम किस दक्षिण में रहते हो । चौ.- (आनन्द से लेकर) नहीं, नहीं, हमने

- सो नहीं, हमारा घर इतनी दूर नहीं है। आपको जाना नहीं निस्संदेह आप बड़े योग्य पुरुष हैं

चौ.- तो फिर कहते क्यों नहीं कि तुम्हारा घर | हम आशीर्वाद देते हैं कि आप अनेक विद्या लाभ करें, कहां है। राजकुमारी विद्या भी आपको मिले । (हसता हुआ जाता सुं.- कांचीपुर । है) चौ.- काशी कांची जो सुनते है सोई काची ! सु-आज बहुत बचे नहीं तो यह दुष्ट बहुत सुं.- काशी दूसरा नगर है कांची दूसरा । काशी | कुछ दुख देता । जिस काम को चलो पहले अनेक कांची एक ही कैसी । प्रकार के बिघ्न होते हैं । देखें अब क्या होता है । (पेड़ चौ.- तो फिर यहां क्यों आए हौ। के नीचे बैठ जाता है । हीरा मालिन आती है।) सुं.- यहां विद्याप्राप्ति के अर्थ आए हैं। ही.मा.- (आश्चर्य से) अरे यह कौन है । हाय चौ.-कौन विद्या। हाय ऐसा सुन्दर रूप तो न कभी आंखों देखा न कानो चौ. विद्या सुन्दर २८५