पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३२८

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97,963 WOX सुना । इसकी दोनो हाथ से बलैया लेने की जी चाहता क्या उपकार होगा कि इस परदेश में हमको आप से है । लोग सच कहते हैं कि चन्द्रमा को सिंगार न | आप मिलने को घर मिले । तुमने हम पर बड़ी कृपा चाहिए । हमको जान पड़ता है कि चन्द्रमा ही पृथ्वी पर | की । आज से तुम हमारी मौसी और हम तुम्हारे भांजे उतर के बैठा है । क्या कामदेव इस रूप की बराबरी कर सकता है । ऐसी कौन स्त्री है जो इसको देख के ही.मा.- यह हमारे भाग्य की बात है कि आप धीरज धरेगा । हम सोचते हैं कि यह कोई परदेशी है | ऐसे कहते हो और यों तो आप हमारे बाप के भी क्योंकि इस नगर में ऐसा कोई नहीं है जिसको हीरा अन्नदाता हो । दया करके जो चाहो पुकारो । तौ हम मालिन न जानती हो । हाय हाय इसके मां बाप का आज से तुमको बेटा कहेंगे । (स्वगत) हाय हाय, कलेजा पत्थर का है कि ऐसे सुकुमार पुरुष को घर से हसका मुख कैसा सूख गया है । (प्रकाश) तो अब बेटा निकलने दिया । निश्चय इसकी स्त्री नहीं है नहीं तो अपने घर चलो, हमारा जो कुछ है सो सब तुम्हारा है । ऐसे पति को कभी न छोड़ती । जो कुछ हो एक बेर -हां चलो। जवनिका गिरती है इससे पूछना तो अवश्य चाहिए । (पास जाकर हंसती हुई) क्यों जी तुम कौन हो । हमको तो कोई परदेशी जान पड़ते हो। सुं. (स्वगत) अब यह कौन आई । (प्रकाश) हमारा घर दक्षिण है और विद्या को खोजते खोजते यहाँ तीसरा गर्माक तक आए हैं। सुंदर और हीरा मालिन आती है ही. मा.- उतरे कहा हो। .- रनिवास का समाचार सब मैंने सुना । तो -अभी कहां उतरे हैं क्योंकि हम इस नगर | मौसी राजा को क्या केवल एक ही कन्या है। में किसी को नहीं जानते । इसी हेतु अब तक उतरने ही.मा.- हां बेटा केवल एक ही कन्या है पर का निश्चय नहीं किया और इसी वृक्ष की ठंडी छाया में | वह कुछ सामान्य कन्या नहीं है मानो कोई देवता की विश्राम करते है और सोचते है कि अब कौन उपाय कन्या श्राप से पृथ्वी पर जनमी है और राजा रानी दोनों करें । तुम कौन हो। उसको वैसा ही प्यार भी करते हैं। घर में सब से ही. मा.- हम राजा के यहां की मालिन है, विशेष उनको वही प्यारी है । यहां तक कि उसको प्राण हमारा नाम हीरा है । हमारा घर यहां से बहुत पास | से भी अधिक समझते हैं । है । मैया, हमारा दुख कुछ न पूछो । (पास बैठ जाती सुं.- मला मौसी वह राजकन्या कैसी है। है) हमारे दोनों कुल में कोई नहीं है, जमराज सबको तो ही.मा.-बेटा उसकी कथा कोई एक मुंह से ले गए पर न जाने हमको क्यों भूल गए । (लम्बी सांस | नही कह सकता । (गाती है) लेती है) पर रानी और राजकुमारी हम पर बड़ी दया गा योरठ तिताला रखती हैं और उन्हीं के पास जाकर हम अपना जी कहौ यह कैसे बरने रूप । बहलाती हैं । अभी तो आपने अपने रहने का निश्चय नख सिख लौं सब ही बिधि सुंदर सोभा अति ही कहीं नहीं किया है । (रुक कर) हमें कहने में लाज अनूप ।।१ लगती है क्योंकि हमारे यहां बड़ी बड़ी अटारी तो है | नैन धरे को कौन सुफल जो नैन न देख्यौ वाहि । नहीं केवल एक झोपड़ी है जो आप दुःखिनी जान कर कोटि चंबहू लाज करत है तनिक बिलोकत जाहि ।२ हमसे बचना न चाहिए तो चलिए हम सेवा में सब धुंधरारे सटकारे कारै बिथुरे सुथरे केस । भांति लगी रहेंगी। एड़ी लौ लांब अति सोभित नव जलघर के मेस ।३ सुं.- (स्वगत) तो इसमें हमारी क्या हानि, जो लचकीली कटि अतिही पातरी चालत झोंका खाय ।। रहने का ठिकाना होगा तो काम का भी ठिकाना हो रहेगा | अति सुकुमार सकल अंग वाके कवि सो नहिं कहि जाय ४ क्योंकि यह रात दिन रनिवास में आती जाती है इससे दिन दिन जोबन बढ़त उमंग अति पूरि रहे सब गात । वहाँ के सब समाचार मिलते रहेंगे और ऐसे कामों में लाज भरी चितवन चित चोरति जब मुसुकाह जंभात ।। जहां अच्छा बिचवई मिला तहां उसके सिद्ध होने में | तरुनाई अंगराई अंग अंग नैन रहत ललचाय । विलंब नहीं होता । (प्रकाश) अब इससे बढ़कर हमारा | मनु जग जुवजन जीतन एकहि बिधिना रची बनाय । भारतेन्दु समग्र २८६