पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३२९

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सु-हा मौसी यह सब बात तो हम जानते हैं पर वि.- (माला हाथ में लेती है) अभी आज तो हम चाहते हैं कि एक बेर राजसभा में जाकर विद्या के माला बड़ी सुन्दर है ! (पत्ते की पुड़िया में फूल के विद्या की परीक्षा करें । जो जीत गए तो सकाम सिद | धनुषवाणा देखकर) क्यों रे, इसमें यह फूल के भया और जो हार गए तो कुछ लाज नहीं क्योंकि हमें | धनुषबाण कहां से आए क्या तू हम से ठठोली करती इस नगर में कोई पहिचानता नहीं । भला एक दिन है। सच्च बतला यह माला किसने बनाई है। मौसी हमारे हाथ की गूंथी माला तू वहां ले जा सकती ही. मा.-मेरे बिना कौन बनावेगा । वि.- नहीं नहीं तू तो नित्य ही बनाती थी पर ही. मा.- (हंसकर) वाह बेटा तुम क्या माला | ऐसी माला तो किसी दिन नहीं बनी । आज निश्चय बनाने भी जानते हो । तुम लोगों का तो यह काम नहीं किसी दूसरे ने बनाई है। है । क्या माला गूंथ कर राजकन्या के गले के हार हुआ ही. मा.- मैं तो एक बेर कह चुकी कि हमारे चाहते हो। सुं. नहीं मौसी हम केवल एक ही माला गूंथना | देंगे । (आकाश देखकर) अब सांझ होती है हमको घर में दस बीस देवर जेठ तो बैठे नहीं हैं कि बना जानते हैं जिसे तुम देख लेना जो अच्छी बने तो राजकन्या के पास ले जाना । आज्ञा दो! ही. मा.- (हंसकर) अच्छा, कल तुम माला वि.- वाह वाह आज तो आप मारे अभिमान के गूंथना देखें कैसी बनती है । अब रात बहुत गई उठो | फूली जाती हैं । ऐसा घर पर कौन बैठा है जिसके और कुछ भोजन करके सो रहो । इतनी घबड़ाती है । बैठ तुझे मेरी सौगन्द है । बता यह जवनिका गिरती है माला किसने बनाई है । (मालिन का अंचरा पकड़ के खींचती है।) ही.मा.-नहीं भाई नहीं, मैं कुछ न कहूंगी। जड़ काट के पल्लव सींचने से क्या होगा । बैठे बैठाये चौथा गर्भाक दु:ख कौन मोल ले क्योंक प्रीत करनी तो सहज है पर निबाहना कठिन है इस हेतु इससे दूर ही रहना उचित (विद्या बैठी हुई है डाली हाथ में लिए हीरा मालिन आती है) ही. मा.- (हंसकर) राजकुमारी कहां हैं वि.- वाह वाह तू बड़ा हठ करती है। एक (सामने देखकर) अहा यहां बैठी है । आज मुझको इस छोटी सी बात मैंने पूछी सो नहीं बताती । क्या मुझसे माला के गूंथने में बड़ी देर लगी इससे मैं दौडी आती | छिपाने की कोई बात है जो नहीं बतलाती । हूं। यह माला लीजिए और आज का अपराधर क्षमा ही.मा.-मैं तो तुम्हारे लिए प्राण देती हूं और भगवान से नित्य मनाती हूं कि हमारी राजकुमारी को वि.- चल बहुत बातें न बना । जो रात भर चैन | सुन्दर वर मिले जिसे देख के मैं अपनी आंख ठद्वी करू करेगी तो सबेरे जल्दी कैसे आ सकेगी । तेरा शरीर बूढा और आप उसके बदले मुझ पर क्रोध करती हो । इसी हो गया है पर चित्त अभी बारही बरस का है । इतना | के जतन में तो मैं रात दिन लगी रहती है। दिन हो गया अब तब मैंने पूजा नहीं किया । पर तुझे वि.- तो खुलकर क्यों नहीं कहती । आधी बात कहती है आधी नहीं कहती व्यर्थ देर करती है। क्या । तू तो रंग में रंग रही है । मेरी पूजा हो या न हो । ही.मा.- वाह वाह बाल पके दांत टूटे पर अभी ही. मा.- सुनिए दक्षिण देश के काचीपुर के हम बारही बरस की बनी हैं । आप धन्य हैं, हमने तो | गुणसिंधु राजा का नाम आपने सुना ही होगा । उसका आज बड़े परिश्रम से माला गूंथी कि राजकुमारी उसको पुत्र सुन्दर जिसे ले आने के हेतु राजा ने गंगा माट को देख कर अत्यन्त प्रसन्न होगी । उसके बदले आपने | भेजा था यहां आप से आप आया है। हमको गाली दिया । सच्च है अभागे को कहीं भी सुख वि.- (घबड़ाकर) कहां कहां ? (फिर कुछ नहीं है । अब हमने अपना कान पकड़ा । अब की बार लज्जित होकर) नहीं क्या वह सचमुच यहां आया है ही. मा.- (हंसकर) मैं उसको बड़े यत्न से क्षमा कीजिए. ऐसा अपराध फिर कभी न होगा । यह लाई हूं क्योंकि मैं सर्वदा खोजा करती थी कि मेरी बेटी, माला लीजिए।

विद्या सुन्दर २८७ कीजिए। .